उत्तर प्रदेश के 10 राज्यसभा सीटों के चुनाव को लेकर हर घंटे राजनीतिक तापमान में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है. हर घंटे एक नए राजनीतिक समीकरण बनते हैं और अगले ही पल उसकी बिगड़ने की खबर आ जाती है. ताजा घटनाक्रम में बीएसपी के विधायक मुख्तार अंसारी और एसपी के विधायक हरिओम यादव के वोट डालने पर रोक लगा दिया गया है. दोनों विधायक इस समय जेल में बंद हैं.
बांदा जेल में बंद बीएसपी विधायक मुख्तार अंसारी को जहां इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वोट डालने पर रोक लगा दी है तो वहीं हरिओम यादव को राज्य प्रशासन ने वोट डालने से मना कर दिया है. ऐसे में माना जा रहा है कि इस फैसले का असर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक होगा. एसपी और बीएसपी इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट या फिर सुप्रीमकोर्ट जा सकती है.
23 मार्च को देश के छह राज्यों में राज्यसभा की 25 सीटों पर मतदान होने हैं. इन 25 सीटों पर होने वाले चुनाव को लेकर देश की नजरें हैं. खासकर उत्तरप्रदेश की 10 सीटों पर होने वाले चुनाव को लेकर देश की राजनीतिक सियासत चरम पर है. बीजेपी और विपक्षी पार्टियां सिर्फ एक सीट को जीतने-हारने को लेकर अपने प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है. ऐसा कहा जा रहा है कि इस एक सीट की जीत-हार से यूपी के राजनीति में काफी बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा.
बीजेपी की राह आसान नहीं
एसपी और बीएसपी के एक-एक विधायकों को वोट नहीं डालने के फैसले ने विपक्षी एकता को एक और झटका दे दिया है. राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले यह फैसला विपक्ष की लामबंदी को जबरदस्त नुकसान पहुंचा सकता है. इसके बावजूद बीजेपी के लिए अपने 9वें प्रत्याशी को जीत दिलाना पापड़ बेलने के सामान है. अगर जीत हो भी जाएगी तो अदालती कार्रवाई से गुजरना पड़ सकता है.
इस एक सीट की जीत-हार की अहमियत समझते हुए गुरुवार शाम से ही उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में राजनीतिक नेताओं का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है. हर पार्टी के दिग्गज ने शतरंज की बिसात बिछाने के लिए लखनऊ में डेरा डाल दिया है.
निर्वाचन आयोग द्वारा पिछले महीने ही देश में 58 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया गया था. 58 सीटों में से 33 सीट पर प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं. शुक्रवार को राज्यसभा की सिर्फ 25 सीटों पर ही चुनाव होगा.
राज्यसभा की 10 सीटों के चुनाव को लेकर सबसे दिलचस्प और रोचक मुकाबला उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रहा है. प्रदेश की दस सीटों के राज्यसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना 9वां प्रत्याशी उतार कर मुकाबले को काफी रोचक बना दिया है.
लगातार रणनीति में फेरबदल कर रहे हैं बीएसपी-एसपी
बीजेपी और समाजवादी पार्टी राज्यसभा की 10 सीटों के चुनाव को लेकर लगातार रणनीति में फेरबदल कर रही है. समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने राज्यसभा चुनाव में एक-एक प्रत्याशी उतारे हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा की ताजा स्थिति को देखते हुए एक प्रत्याशी को जीत के लिए 37 विधायकों के वोटों की जरूरत पड़ती है.
विधानसभा की वर्तमान स्थिति को देखते हुए बीजेपी अपने दम पर 8 प्रत्याशियों को राज्यसभा भेजने में खुद ही सक्षम है. एसपी भी अपनी एकमात्र प्रत्याशी जया बच्चन को राज्यसभा आराम से भेज सकती है. लेकिन, मामला अटक गया है बीएसपी के उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर को लेकर. बीएसपी के पास सिर्फ 19 ही विधायक हैं. बीएसपी को एसपी, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल और कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन चाहिए. जिसके लिए एसपी लगातार प्रयास कर रही है.
दूसरी तरफ बीजेपी के पास आठ प्रत्याशियों को जीताने के बाद भी 28 वोट बच रहे हैं. अनिल अग्रवाल 9वीं सीट पर उतार कर बीजेपी चाचा-भतीजे की लड़ाई और क्रास वोटिंग कर जीतना चाह रही थी. लेकिन, राजनीति ने एक नई करवट ली. बीएसपी के पूरे शासनकाल में जिस राजा भैया ने जेल में बिताया अचानक वह भी अखिलेश यादव की डिनर में शामिल हो कर बीएसपी उम्मीदवार के साथ में खड़े होने के संकेत दे दिए. अगर ये भी मान लिया जाए कि राजा भैया एसपी प्रत्याशी को वोट करेंगे, इसका भी फायद बीएसपी उम्मीदवार को ही मिलेगा. क्योंकि एक तो क्रास वोटिंग का खतरा नहीं रहेगा दूसरी तरफ बीएसपी को एक मोरल सपोर्ट भी मिलेगा.
चाचा-भतीजे की दोस्ती है बीजेपी की चिंता का सबब
बीजेपी को लग रहा था कि वह समाजवादी पार्टी में चाचा-भतीजे की लड़ाई का फायदा उठा कर अपना नौंवा प्रत्याशी राज्यसभा में भेज देगा, लेकिन एसपी नेता शिवपाल यादव और उनके समर्थक कुछ विधायकों के अखिलेश यादव के साथ मुलाकात के बाद क्रास वोटिंग की संभावना कुछ कम हो गई है.
दूसरी तरफ बीजेपी को जिस निषाद पार्टी के विधायक ने समर्थन देने का एलान किया है, उनका अचानक शिवपाल सिंह यादव से मिलना भी अपने आप में एक बड़ी घटना है. गुरुवार को निषाद पार्टी के इकलौते विधायक विजय मिश्रा शिवपाल सिंह यादव से मिलने उनके घर पहुंच गए.
शिवपाल सिंह यादव यूपी में जोड़-तोड़ के उस्ताद माने जाते हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि एसपी की तरफ से अखिलेश यादव की जगह वह खुद फ्रंटफूट पर बैंटिग करने लगे हैं. शिवपाल सिंह यादव का अचानक एकाएक अखिलेश के साथ आना बीजेपी के लिए एक और चिंता कारण बन गया है.
जानकारों का मानना है कि यूपी की 10 सीटों पर हो रहे राज्यसभा चुनाव को बहाने लखनऊ के किले को बचाने की कवायद चल रही है. लखनऊ की इस लड़ाई का परिणाम 2019 लोकसभा चुनाव पर साफ पड़ने जा रहा है.
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