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राजस्थान चुनाव 2018: जोधपुर में वसुंधरा को वचुंधरा क्यों कहते हैं, सचिन क्यों बन जाते हैं चशिन

जालौर में अधिकतर लोग आपसे कहेंगे कि 'वचुंधरा' राजे सत्ता में नहीं लौट रहीं. इस बार की लड़ाई 'अचोक' गहलोत और 'चशिन' पायलट में है

Updated On: Nov 27, 2018 08:06 PM IST

Sandipan Sharma Sandipan Sharma

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राजस्थान चुनाव 2018: जोधपुर में वसुंधरा को वचुंधरा क्यों कहते हैं, सचिन क्यों बन जाते हैं चशिन

अगर आप जोधपुर के आस-पास के मारवाड़ियों से राजस्थान के अगले सीएम पर सवाल पूछेंगे तो उनका जवाब होगा कि 'वचुंधरा' का सत्ता में लौटना मुश्किल है क्योंकि पढ़े-लिखे युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही और 'किचान' परेशान हैं.

जोधपुर के पास के इलाकों में रहने वाले मारवाड़ी लोगों की 'स' और 'श' से कुछ खास बनती नहीं. यहां लोग स को 'च' और 'ह' में बदल देते हैं. ये उनकी बोली में है. इसलिए अगर कभी कोई जोधपुरी आप पर 'हाफ झूठ' बोलने का आरोप लगाए तो ये मत समझिए कि आप आधा झूठ बोल रहे हैं क्योंकि आप 'हाफ झूठ' यानी 'साफ झूठ' बोल रहे हैं.

इसी क्रम में जोधपुर में सुई हूई, सच हच और सुपारी हुपारी बन जाता है. यहां तक कि अगर आप कहीं बोलियों के इतिहास में पहुंचें, तो भाषाविद् सिंधु के हिंदू होने तक का संबंध यहां से जोड़ते हैं. लेकिन ये एक अलग बहस है.

जालौर में 'स' और 'श' 'च' बन जाते हैं. और 'च' बन जाता है- 'स' और 'श'. मारवाड़ी बोलियों की बात करने के बाद अब आते हैं राजस्थान विधानसभा चुनावों पर.

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वचुंधरा, अचोक और चशिन

जालौर में अधिकतर लोग आपसे कहेंगे कि 'वचुंधरा' राजे सत्ता में नहीं लौट रहीं. इस बार की लड़ाई 'अचोक' गहलोत और 'चशिन' पायलट में है. उनका तर्क है कि पढ़े-लिखे युवा घर बैठे हुए हैं और 'किचान' बर्बाद होने की कगार पर हैं.

राहुल गांधी ने मारवाड़ की इसी दुखती रग को पकड़ा है. सोमवार को पोखरण में एक रैली में राहुल ने इन दोनों मुद्दों पर घोषणा की. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार बनने के बाद वो किसानों का कर्ज माफ कर देंगे और उनका सीएम युवाओं को रोजगार देने के लिए हर दिन 18 घंटे काम करेगा.

उधर, जोधपुर के लोग अपनी बोली को लेकर थोड़े आलसी हैं. वे 'स' की जगह 'ह' लगाते हैं (क्योंकि स बोलने में उनको ज्यादा मेहनत लगती है या फिर उन्हें मुंह में दबाई सुपारी के बाहर आ जाने का डर लगा रहता है), उन्हें ये ज्यादा व्यावहारिक लगता है.

ये ध्यान रखिए कि वो स की जगह ह तभी लगाते हैं कि जब स शब्द की शुरुआत में आता है. अगर स शब्द के बीच में आए तो वो इसे वैसे ही रहने देते हैं. ऐसे में वसुंधरा और अशोक वचुंधरा और अचोक नहीं बनते. लेकिन सचिन हचिन बन जाते हैं. (कहानियां सुनाई जाती हैं कि भारत ने यहां के बरकतुल्ला स्टेडियम में वन डे क्रिकेट खेला था. उस वक्त पूरे स्टेडियम में हचिन-हचिन की गूंज उठी थी)

अपनी व्यावहारिकता आजमा रहे हैं जोधपुरी वोटर्स

तो इन चुनावों में जोधपुरी वोटर सीधा और व्यावहारिक तरीका चुन रहे हैं. आसान रास्ता ये है कि वो बीजेपी को उन सीटों पर वरीयता दे रहे हैं, जहां कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, खासकर जोधपुर के सूरसागर में.

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यहां चुनाव शुरू होने से पहले ऐसी हवा बन रही थी कि बीजेपी की उम्मीदवार सूर्यकांता व्यास को इस बार विदा कहना पड़ सकता है. व्यास 75 साल की हैं, लेकिन अम्मा या दादी की उम्र में उन्हें अब भी जीजी (बड़ी दीदी) कहकर बुलाया जाता है. हालांकि, अब उनके सीट पर लौटने की संभावना बढ़ गई है क्योंकि कांग्रेस ने यहां एक स्थानीय गणित के प्रोफेसर डॉ. अयूब खान को उतारा है. जाति और समुदाय के समीकरण उनके पक्ष में नहीं लगते हैं.

जोधपुरी वोटर की व्यावहारिकता, उनकी गहलोत के साथ वफादारी में दिखाई देती है. जो 'हरदारपुरा' (सरदारपुरा) से अपनी उम्मीदवारी घोषित करने के साथ ही जीत जाते हैं. वोटरों को पता है कि राज्य भर में कांग्रेस भले ही मात खा जाए, लेकिन उनकी विधानसभा सीट पर उन्हें एक मजबूत शख्सियत मिलेगा. तो चुनावी रंग जो भी हो- मोदी लहर हो, एंटी इन्कंबेंसी हो या राम मंदिर का मुद्दा हो- गहलोत एक बड़े मार्जिन से जीतने वाले हैं.

जोधपुरियों को मिठाई, प्याज कचौरी और मिर्ची पकौड़ा खूब पसंद है. अधिकतर लोग दिन की शुरुआत ही तीखे मसालेदार व्यंजनों से करते हैं. उसी तर्ज पर यहां चुनावों का स्वाद भी फीका नहीं है.

तस्वीर: अशोक गहलोत के फेसबुक से

तस्वीर: अशोक गहलोत के फेसबुक से

अशोक गहलोत का चेहरा दोधारी तलवार

कांग्रेस को लगता है कि बढ़ती एंटी इन्कंबेंसी और गहलोत की मौजूदगी के चलते उन्हें बढ़त हासिल है. लेकिन कांग्रेस ने टिकट बंटवारे में फिर अपना पुराना फॉर्मूला अपनाया है- तीन मुस्लिम, चार जाट, तीन राजपूत और चार एससी जाति के उम्मीदवारों को टिकट. इससे चुनावी बहस राजे के कार्यकाल से अब जातिगत समीकरणों पर आ टिका है. और अब जब बात स्थानीय फैक्टरों पर आकर टिक गई है, तो बीजेपी फिर से रेस में शामिल हो गई है.

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इसके अलावा राजस्थान में कांग्रेस का मुख्य चेहरा बने गहलोत दोधारी तलवार भी साबित हो सकते हैं. जहां कुछ समुदाय उन्हें अंधभक्त की तरह समर्थन देते हैं, वहीं कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां उनका घोर विरोध होता है. ऐसे में गहलोत के साथ ये प्यार और नफरत वाला संबंध कांग्रेस के लिए नफा-नुकसान संतुलित कर सकता है.

एक वक्त था, जब मारवाड़ों को यकीन था कि उनके मजबूत नेता स्वर्गीय परसराम मदेरणा सीएम बनेंगे. लेकिन मदेरणा बहुत कम अंतर से गहलोत से हार गए, जिसकी कसक अब भी जाटों में है. लेकिन इस साल जाट वापस कांग्रेस की झोली में आ सकते हैं, क्योंकि पोखरण की रैली में उन्होंने राहुल गांधी से ठीक पहले भाषण दिया, जिससे जनता की निगाहों में उन्होंने पार्टी में अपनी ऊंची मौजूदगी जताई है. लेकिन बीजेपी भी जाट वोटरों को अपनी ओर करने में भी जोर लगा रही है.

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ऐसे में जब हालात अभी कुछ खास साफ नहीं है, तो किसी मारवाड़ी से ये पूछने का कोई मतलब नहीं है कि 'हच्ची हच्ची बोलो, अगला सीएम कौन बनेगा?' क्योंकि शायद आपको 'हाफ' तस्वीर न मिले.

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