राजस्थान उपचुनाव में कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की है. कांग्रेस ने अजमेर और अलवर लोकसभा सीटें तो जीती ही, साथ ही मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर भी कब्जा जमा लिया है. अजमेर उपचुनाव के नतीजे जैसे ही घोषित हुए, वैसे ही कांग्रेस के विजयी उम्मीदवार रघु शर्मा एक टीवी न्यूज़ चैनल पर हाजिर हुए, जहां सचिन पायलट का इंटरव्यू चल रहा था. सचिन पायलट को देखते ही रघु शर्मा उनके पैरों पर गिर पड़े. यानी शुक्राने और श्रद्धा में उन्होंने पायलट के पैर छुए. पायलट का इंटरव्यू ले रहा टीवी पत्रकार जब रघु शर्मा की ओर मुड़ा, तो वह दोबारा झुके और लाइव टीवी शो में ही पायलट के चरण स्पर्श कर डाले.
रघु शर्मा का सचिन पायलट का चरण स्पर्श करना और उनके आशीर्वाद की ख्वाहिश बताती है कि कांग्रेस ने बुधवार को उपचुनाव में अजमेर, अलवर और मांडलगढ़ में 3-0 की जीत से क्या हासिल किया है. दरअसल कांग्रेस की इस तिहरी जीत ने राजस्थान में नेतृत्व का सवाल हल कर दिया है। यानी राजस्थान में अगला विधानसभा चुनाव किस नेता के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, इस बात पर मुहर लग गई है.
बड़े अंतर से हार
महीनों से राजस्थान में मतदाता बीजेपी की मौजूदा सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर (एंटी इंकंबेंसी) की चर्चा कर रहे थे. राजस्थानी जनता की यह धारणा बुधवार को पुख्ता हो गई. बीजेपी अजमेर और अलवर की लोकसभा सीटें और मंडालगढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव बुरी तरह हार गई. बीजेपी की इस करारी हार की कई अहम वजहें हैं.
पहली वजह यह है कि उपचुनाव में बीजेपी काफी बड़े अंतर से हारी है. अलवर में बीजेपी को लगभग दो लाख वोटों से शिकस्त मिली है, वहीं अजमेर में करीब 90,000 और मांडलगढ़ में करीब 13,000 वोटों से हार का सामना करना पड़ा है. मांडलगढ़ में अगर कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़े एक उम्मीदवार ने 30,000 से ज्यादा वोट न काटे होते, तो बीजेपी इस विधानसभा क्षेत्र में और भी बड़े अंतर से हारती.
दूसरी वजह यह है कि उपचुनाव में 17 विधानसभा क्षेत्रों के करीब 40 लाख मतदाता शामिल थे. ये सभी विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण, अर्ध-ग्रामीण और शहरी इलाकों में आते हैं. इनमें से अजमेर (उत्तर) जैसे कुछ इलाके बीजेपी के गढ़ माने जाते हैं. लेकिन इन सभी क्षेत्रों में बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ा. वोटों के मामले में बीजेपी वहां कांग्रेस से काफी पीछे रही. राजस्थान के 17 विधानसभा क्षेत्रों में 17-0 की बढ़त ने कांग्रेस के हौसले बुलंद कर दिए हैं. इतने बड़े जनसांख्यिकीय और भौगोलिक विभाजन में कांग्रेस की बढ़त बहुत शुभ मानी जा रही है, क्योंकि इस साल नवंबर में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
प्रधानमंत्री का अच्छे दिनों का वादा
तीसरी वजह यह है कि उपचुनाव में बीजेपी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. बीजेपी ने अपने चुनाव अभियान की शुरूआत बड़े जोर-शोर से की थी. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाड़मेर रिफाइनरी परियोजना का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया गया था. हालांकि यह बात अलग है कि इस परियोजना का उद्घाटन राज्य की पूर्व कांग्रेस सरकार कई साल पहले ही कर चुकी थी. बाड़मेर रिफाइनरी परियोजना का दोबारा उद्घाटन करने पहुंचे मोदी ने राजस्थान के मतदाताओं को ज्यादा नौकरियां और अच्छे दिनों का वादा किया था. अपने भाषण में मोदी ने स्थानीय हीरो और बीजेपी से जुड़े राजपूतों की शान में जमकर कसीदे पढ़े थे. उन्होंने राजपूतों के साथ भावनात्मक रिश्ता कायम करने की भरपूर कोशिश की थी. उपचुनाव के प्रचार अभियान के दौरान राजस्थान की पूरी कैबिनेट ने तीनों निर्वाचन क्षेत्रों में डेरा डाल रखा था. प्रचार अभियान की कमान खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने संभाल रखी थी. उन्होंने सभी निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा करके कई जनसभाएं और रोड शो किए. लेकिन, मुख्यमंत्री वसुंधरा और उनके सिपहसालार बीजेपी को हारने से नहीं बचा पाए.
हिंदुत्व और सहानुभूति
चौथी वजह यह है कि बीजेपी ने हिंदुत्व का सहारा लेकर मतदाताओं की सहानुभूति पाने की भरपूर कोशिश की. अलवर में गौ रक्षकों ने स्थानीय मेव समुदाय पर हमले करके कई बार माहौल बिगड़ा, लेकिन बीजेपी इस मामले में लगातार चुप्पी साधे रही. प्रचार अभियान के दौरान बीजेपी उम्मीदवार जसवंत यादव ने दलील दी कि हिंदुओं को उनके पक्ष में वोट करना चाहिए और मुसलमानों को कांग्रेस का समर्थन करना चाहिए. वहीं अजमेर में बीजेपी ने पूर्व मंत्री सांवरलाल जाट के बेटे रामस्वरुप लांबा को अपना उम्मीदवार बनाया था. सांवरलाल के निधन की वजह से ही अजमेर सीट पर उपचुनाव हुए थे. दरअसल बीजेपी को उम्मीद थी कि रामस्वरुप लांबा को अपने पिता के असामयिक निधन पर मतदाताओं की सहानुभूति मिलेगी. लेकिन ऐसा न हो सका और बीजेपी के मंसूबे धरे के धरे रह गए.
दिसंबर 2013 में, राजस्थान विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने जबरदस्त जीत हासिल की थी. उस वक्त राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस महज 21 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. फिर मई 2014 में हुए चुनाव में भी बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया था. तब बीजेपी ने राज्य में 25 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन उसके चार साल बाद अब ऐसा लगता है कि राजस्थान के मतदाता बीजेपी को राज्य से उखाड़ फेंकना चाहते हैं.
उपचुनाव में करारी हार के बाद अब बीजेपी के लिए यह आत्म मंथन का समय है. बीजेपी को अपनी हार के मूल कारणों और उनके उचित समाधान का पता लगाना होगा, ताकि नवंबर में होने वाली बड़ी जंग मजबूती और पूरी तैयारी के साथ लड़ी जा सके. उपचुनाव में बीजेपी दो लोकसभा और एक विधानसभा क्षेत्र में हारी है. लिहाजा कहना मुश्किल है कि यह केंद्र सरकार के खिलाफ जनादेश है या राज्य सरकार के खिलाफ. साल 2014 के बाद से बीजेपी आठ में से छह उपचुनाव हार चुकी है. इसके अलावा बीजेपी को कई जगहों पर पंचायत और नगर पालिका चुनावों में भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है. इसलिए यह बात जाहिर है कि मतदाताओं के बीच हर स्तर पर बड़ा असंतोष है. ऐसे में बीजेपी को जल्द यह फैसला करना होगा कि क्या उसका मौजूदा नेतृत्व राजस्थान में पुनर्जीवित हो रही कांग्रेस से निबटने में सक्षम है. अगर ऐसा नहीं है तो फिर बीजेपी को गुजरात की तरह बड़े और कठोर उपायों की जरूरत है.
क्या है चरणस्पर्श का महत्व
राजस्थान बीजेपी में बदलाव की दरकार की बात से रघु शर्मा और सचिन पायलट का आशीर्वाद का किस्सा फिर से याद आ गया है. चलिए दोबारा उसी की बात करते हैं और रघु शर्मा द्वारा सार्वजनिक तौर पर पायलट के चरण स्पर्श के महत्व को जानने की कोशिश करते हैं.
रघु शर्मा कांग्रेस के काफी पुराने और दिग्गज नेता हैं. वह राजस्थान की राजनीति में शायद तब से सक्रिय है, जिस वक्त सचिन पायलट व्हार्टन में मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे थे. रघु शर्मा को कई सालों से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का विश्वसनीय सहयोगी के रूप में जाना जाता था. लेकिन अब रघु शर्मा ने अपने पूर्व संरक्षक यानी गहलोत से दामन झटक कर सचिन पायलट का हाथ थाम लिया है. रघु शर्मा के खेमा बदलने की घटना राजस्थान कांग्रेस में अहम बदलाव के संकेत दे रही है.
अब जबकि सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस ने बीजेपी को शिकस्त दे दी है, लिहाजा कांग्रेस के एक खेमे द्वारा चलाई जाने वाली वह मुहिम खत्म हो जाना चाहिए, जिसमें दलील दी जाती है कि कांग्रेस अशोक गहलोत के बिना राजस्थान में वसुंधरा राजे को हरा नहीं सकती है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सचिन पायलट में कांग्रेस का नेतृत्व करने की क्षमता है. वहीं यह भी स्पष्ट हो चुका है कि गहलोत उतने अडिग नहीं है, जितना कि उनके समर्थक दावा करते हैं. ऐसे में यह निश्चित है कि कांग्रेस आलाकमान अब राजस्थान में पार्टी की बागडोर सचिन पायलट को ही सौंपने वाली है. जहां तक अशोक गहलोत की महत्वाकांक्षाओं का सवाल है तो, कांग्रेस को इस मामले में सख्ती और समझदारी से निबटना होगा.
राजनीति में एक महीने का वक्त काफी लंबा माना जाता है. जिस वक्त राजस्थान में उपचुनावों की तारीखों का एलान हुआ था, तब सभी के मन में यह सवाल था कि वसुंधरा राजे के खिलाफ कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा? लेकिन अब उपचुनाव में कांग्रेस की 3-0 से जीत ने बाजी पलट दी है. अब बीजेपी के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा. जबकि दूसरी तरफ, रघु शर्मा की तरह कांग्रेस सचिन पायलट के सामने नतमस्तक होने के लिए तैयार है.
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