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Gurjar Andolan: आंदोलन और उग्र होने से पहले निकालना होगा रास्ता?

Rajasthan Gurjar Andolan: आरक्षण का ये मसला ऐसी पेचीदगियों में उलझा हुआ है, जिसे सुलझाना किसी भी सरकार के लिए टेढ़ी खीर ही बना हुआ है. लेकिन सामाजिक न्याय और समानता के लिए मुद्दे को सुलझाना तो पड़ेगा ही

Updated On: Feb 12, 2019 09:17 AM IST

Mahendra Saini
स्वतंत्र पत्रकार

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Gurjar Andolan: आंदोलन और उग्र होने से पहले निकालना होगा रास्ता?

पिछले 10-12 साल से चल रहा सिलसिला एक बार फिर रेल पटरियों और सड़कों पर दोहराया जा रहा है. आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जर समुदाय के लोग 5 दिन से रेलवे लाइनों और सड़कों पर डटे हुए हैं. मुख्य धरना सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन के पास मलारना डूंगर में दिया जा रहा है. दिल्ली-मुंबई रेल रूट के अलावा दिल्ली-जयपुर, जयपुर-आगरा और आगरा-मुंबई नेशनल हाइवे को बाधित किया जा रहा है.

सरकार गुर्जरों को बातचीत करने का संदेश भेज रही है. लेकिन समाज के नेता अब ऐसी बातचीत को जाल की संज्ञा दे रहे हैं. आरक्षण आंदोलन के अगुआ बने किरोड़ी सिंह बैंसला और उनके बेटे ने कहा कि किसी को भी बात करनी है तो उसे पटरियों पर ही आना होगा. किरोड़ी सिंह तो ये भी कह रहे हैं कि बात करनी ही क्यों है? सरकार हमारे 5% आरक्षण का नोटिफिकेशन जारी करे, हम फौरन आंदोलन खत्म कर देंगे. बैंसला ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि समाज के लोग उनके निर्देशों का इंतज़ार कर रहे हैं. सरकार जितनी जल्दी फैसला करेगी, उतना ही उसके लिए ठीक रहेगा.

विधानसभा में भी आरक्षण की आग

गुर्जर समेत गाड़िया लुहार, राइका-रैबारी जैसी 5 जातियों के आरक्षण के मुद्दे में हर कोई राजनीतिक हित भी देख रहा है. सोमवार को इस मुद्दे पर विधानसभा में जोरदार हंगामा हुआ. आरएलटीपी के हनुमान बेनीवाल, बीएसपी के जोगिंदर अवाना, वाजिब अली, सीपीएम के बलवान पूनिया और गिरधारी लाल ने ये मामला उठाया. इन विधायकों ने गहलोत सरकार से केंद्र को 5 फीसदी आरक्षण की सिफारिश वाला पत्र लिखने की मांग की. सदन में नारेबाजी के बाद ये लोग आसन के सामने धरने पर बैठ गए.

बीजेपी ने भी गुर्जर आरक्षण के साथ ही किसानों की कर्ज़ माफ़ी के मामले में भी सरकार पर गोलमोल रवैया अपनाने का आरोप लगाया. नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने पूछा कि गुर्जर आरक्षण पर अपना पक्ष स्पष्ट करने के अलावा सरकार ये भी बताए कि 2 महीने के कार्यकाल में सरकार ने कितने किसानों का कर्ज माफ किया. आधे घंटे तक हंगामे के बाद आखिरकार सदन को स्थगित करना पड़ा.

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गुर्जर आरक्षण का मामला जितना पेचीदा है, उतना ही लुभावना भी है. बीजेपी की सरकार में कांग्रेस ने इस मुद्दे को जमकर हवा दी. कांग्रेस की तरफ से जबतब बीजेपी पर गुर्जरों के साथ छल करने का आरोप भी लगाया जाता रहा. लेकिन अब जब कांग्रेस सत्ता में आ गई है तो वही काम बीजेपी कर रही है. लगता है जैसे आरक्षण का ये मुद्दा सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेंकने का जरिया मात्र बनकर रह गया हो.

आंदोलन पर सरकार कितनी संवेदनशील ?

वर्तमान आंदोलन के प्रति सरकार का रवैया उतना ही लापरवाही भरा है, जितना पहले की बीजेपी सरकारों में रहा है. कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इस मुद्दे को शामिल किया. अब जब उनकी सरकार बन गई तो गुर्जर समाज अपने वोट के बदले मांग को पूरा करने का दबाव बना रहा है. लेकिन हर बार की तरह ये सरकार भी शायद टालमटोल की नीति पर चल रही है..

गुर्जरों ने 8 फरवरी से रेल लाइनों और सड़कों को जाम कर देने का अल्टीमेटम दे रखा था. लेकिन सरकार की गंभीरता की एक बानगी देखिए, जयपुर में 6 फरवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब पत्रकारों ने इससे जुड़ा सवाल पूछा तो मुख्यमंत्री ने माइक को उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की तरफ सरका दिया. सचिन पायलट गुर्जर समाज से हैं.

असहजता से बचने के लिए उन्होंने गहलोत का तीर वापस उनकी तरफ ही मोड़ दिया. सचिन ने पत्रकार से पूछा कि आपने सवाल सरकार से किया है या पार्टी से. पत्रकार ने जब कहा कि सरकार से, तो पायलट ने माइक वापस गहलोत की ओर मोड़ दिया. गहलोत ने फिर बाजीगरी दिखाई और कहा कि सचिन आप सरकार भी हैं और पार्टी भी (सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री के साथ ही कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भी हैं). ये वाकया मामले को सुलझाने के प्रति सरकार की लापरवाही की प्रत्यक्ष मिसाल कहा जा सकता है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अब आरक्षण की गेंद को केंद्र के पाले में डालने की कोशिश की है. गहलोत ने बीजेपी नेताओं पर भड़काऊ बयान देने का आरोप लगाते हुए सड़कों और संचार को बाधित करने को गैरजरूरी भी करार दिया है. गहलोत ने कहा कि मुझसे जो हो सकता था, वो सब मै पहले ही कर चुका हूं.

गहलोत के मुताबिक किरोड़ी सिंह बैंसला को भी मालूम है कि संविधान में संशोधन किए बिना गुर्जरों को आरक्षण मिलना नामुमकिन है. संविधान संशोधन की शक्ति संसद में है. इसलिए राज्य सरकार से मांग करना एक तरह से गलत जगह अपनी बात रखने जैसा ही है.

लगातार उग्र हो रहा है आंदोलन

2007-08 के वर्षों में इस आंदोलन का बेहद खूनी रूप भी देखा जा चुका है. तब वसुंधरा राजे की सरकार थी. रेल पटरियों और हाईवे पर धरना दे रही युवाओं की उग्र भीड़ को काबू करने के लिए तब पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी थी. दौसा, सवाई माधोपुर, करौली और कोटपूतली जैसे कई शहर-कस्बों में करीब 70 लोग उस समय हिंसा की भेंट चढ़ गए थे.

अब एक बार फिर आंदोलन उग्र रास्ते की ओर बढ़ता नजर आ रहा है. रविवार को धौलपुर में पुलिस की तीन गाड़ियों को जला दिया गया. प्रदर्शनकारियों ने हवाई फायरिग और पुलिस पर पथराव भी किया. घटना में आधा दर्जन पुलिसकर्मी घायल हो गए. अफसरों को भागकर जान बचानी पड़ी.

धौलपुर की मोरोली पुलिस चौकी को जलाने की कोशिश की गई. ऐहतियातन कई शहर-कस्बों में धारा-144 लागू कर दी गई है. दर्जनों ट्रेन रद्द या डाइवर्ट की गई हैं. हिंसा के डर से सवाई माधोपुर, धौलपुर, भरतपुर, करौली, दौसा और जयपुर जिलों के संवेदनशील इलाकों में कई बाज़ार पूरी तरह खुल नहीं पा रहे हैं.

निकालना ही होगा रास्ता

गुर्जर समाज जहां खुद को पिछड़ा बताकर आरक्षण का लाभ पाना चाहता है. वहीं, आंदोलन के उनके तरीके से दूसरे लोग परेशानियां भी झेल रहे हैं. पिछले 10-12 साल से हर साल किसी न किसी रूप में ये आंदोलन सामने आता है. राज्य में एससी, एसटी और ओबीसी को 49% आरक्षण दिया गया है. गुर्जरों को ओबीसी के 21% के अलावा गहलोत सरकार ने 1% आरक्षण एसबीसी कैटेगरी में दिया हुआ है. इससे ज्यादा संविधान संशोधन करके ही दिया जा सकता है, जैसे 10% सवर्ण आरक्षण के लिए किया गया.

2015 में वसुंधरा सरकार ने विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर 5% आरक्षण लागू करने की कोशिश की. लेकिन कुल आरक्षण 50% से ज्यादा होने जाने के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. इस वजह से कई भर्तियां अब तक प्रक्रियाधीन हैं. RAS-2016 परीक्षा का फाइनल नतीजा आने के डेढ़ साल बाद भी नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं. अब एक बार फिर आंदोलन की वजह से कई परीक्षाओं को स्थगित करना पड़ा है.

बहरहाल, आरक्षण का ये मसला ऐसी पेचीदगियों में उलझा हुआ है, जिसे सुलझाना किसी भी सरकार के लिए टेढ़ी खीर ही बना हुआ है. लेकिन सामाजिक न्याय और समानता के लिए मुद्दे को सुलझाना तो पड़ेगा ही. ये तभी संभव है जब दोनों पक्ष अपने-अपने अहं का त्याग कर वार्ता करें और किसी मध्यम मार्ग पर सहमत हों

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