अलवर जिले में वोट का अंकगणित बीजेपी के हाथ से निकलता दिख रहा है, जिसने पिछले विधानसभा चुनाव में यहां 11 में से 10 सीटें जीती थीं. लेकिन आने वाले 7 दिसंबर को एससी/एसटी और मुसलमानों का ध्रुवीकरण बीजेपी के खिलाफ इस संख्या को काफी घटा सकता है.
मेव मुस्लिमों के लिए, गोरक्षकों द्वारा की गई मॉब लिंचिंग, जिसमें पहलू खान, उमर खान और रकबर खान को मार डाला गया और इन स्वघोषित गोरक्षकों द्वारा लगातार उत्पीड़न किया जाना, राज्य सरकार का दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई ना करना हो, आसानी से भुलाया या माफ नहीं किया जा सकता.
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए, सत्तारूढ़ दल द्वारा एससी/एसटी अत्याचार निवारण कानून में संशोधन करने का प्रयास, 2 अप्रैल के भारत बंद के दौरान दलित युवा पवन कुमार जावत की पुलिस गोलीबारी में मौत के बाद नाराज लोगों द्वारा पुलिस वाहनों को जलाने और खैरथल व कई पुलिस स्टेशनों पर हमला किए जाने पर उनके खिलाफ पुलिस की कठोर कार्रवाई, जिसमें अकेले अलवर में उनके खिलाफ 3000 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की गई थीं, गहरी टीस देता है.
‘कांग्रेस की तरफ देख रहे हैं’
रामगढ़ के नासोपुर में रहने वाले मेव मुस्लिम पप्पू खान कहते हैं, ‘गाय के मुद्दे ने हिंदू और मुसलमानों के बीच दीवार खड़ी कर दी है.’ वह आगे कहते हैं, ‘मेव समुदाय बड़ी तादाद में गायों को पालता है लेकिन अब गाय काटने वाला समझकर मारे जाने के डर से अपनी गायों को लेकर बाहर निकलने में डरता है.’ चांदपुर के निवासी हकमुद्दीन भी ऐसी ही बात कहते हैं. हकमुद्दीन कहते हैं, ‘मॉब लिंचिंग की कई घटनाओं के चलते अलवर में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव के हालात पैदा हो गए हैं. इस क्षेत्र के लोग अब समर्थन के लिए कांग्रेस पार्टी की ओर देख रहे हैं.’
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मेवों के बीच यह भावना भी जड़ जमा चुकी है कि रामगढ़ में सबसे बड़ा मतदाता समूह होने के बावजूद बीजेपी इस समुदाय को वोट बैंक के रूप में नहीं मानती है. पप्पू कहते हैं, ‘बीजेपी ने पिछले पांच सालों में हमारे लिए कुछ भी नहीं किया है.’
दलित और मेव मिलाकर अलवर जिले में 7.5 लाख मतदाता हैं. अगर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों को भी इसमें जोड़ दिया जाए तो यह संख्या नौ लाख है. इस क्षेत्र में किसी भी पार्टी के चुनावी प्रदर्शन के लिए इनका समर्थन महत्वपूर्ण है. सूत्रों के अनुसार अलवर में जनसंख्या का कुल जातीय वितरण इस प्रकार है- 4.5 लाख एससी, 3.6 लाख यादव, तीन लाख ब्राह्मण, 3.5 लाख मेव, 2.1 लाख जाट, दो लाख मीणा, 1.7 लाख वैश्य, 1.3 लाख माली, एक-एक लाख सिख पंजाबी और गुज्जर, 60,000 राजपूत और 1.5 लाख अन्य मतदाता.
दलित और मेव समुदाय रामगढ़ के अलावा अलवर ग्रामीण, किशनगढ़ बास और तिजारा में बड़ा वोट बैंक है. और इन सभी जगहों पर, बहुत से दलित सत्तारूढ़ दल से नाराज हैं. अनुसूचित जाति समुदाय के एक ग्रामीण रत्तियम कहते हैं, ‘बीजेपी ने समुदाय का दमन करने की साजिश रची थी. एससी/एसटी समुदाय के लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और उन्हें यातना दी जा रही है. बीजेपी ने मामले वापस ले लेने का भरोसा दिया था, लेकिन कुछ भी नहीं किया गया.’
बीजेपी विकल्पों की तलाश में है
कांग्रेस सांसद के रूप में संसद में अलवर का प्रतिनिधित्व कर चुके राज्य के पूर्व मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है कि बीजेपी जाति और धर्म के नाम पर जनता को बांटने की दिशा में काम करती है. ‘यही कारण है कि पार्टी ने समुदायों के बीच टकराव पैदा करने की कोशिश की, और इस तरह, भाईचारे को खत्म कर दिया है. बीजेपी ने इस क्षेत्र के विकास के लिए कुछ नहीं किया और कांग्रेस हर तरह के हालात में अलवर के लोगों के साथ खड़े होने का वादा करती है.’
बीजेपी जानती है कि उसे सत्ताविरोधी लहर और जिले के मौजूदा विधायकों के खराब कामकाज के दोहरे झटके का सामना करना पड़ सकता है. बीजेपी के जिला अध्यक्ष संजय नारुका कहते हैं, ‘कुछ नाराजगी हमेशा रहती है और हम इसका समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं. हम सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं और मुझे विश्वास है कि लोग इसे समझेंगे और हमारे लिए वोट देंगे.’ बीजेपी अब भरपाई की कवायद में मौजूदा नेताओं के विकल्प तलाश रही है, जैसा कि पार्टी के उम्मीदवारों की सूची से भी साबित होता है.
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बीजेपी ने शायद हिंदुत्व के रुख को नरम रखने के लिए हिंदुत्व के दो प्रमुख झंडाबरदार और मौजूदा विधायक ज्ञान देव आहुजा और बनवारी लाल सिंघल को टिकट नहीं दिया है. दोनों मेव समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए जाने जाते हैं. सिंघल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, ‘अगर पार्टी ने हिंदुत्व की रक्षा के लिए उठाई गई आवाज के कारण मुझे टिकट देने से इनकार किया है, तो मैं पार्टी से कहना चाहता हूं कि मैं हिंदुओं के हितों के लिए लड़ता रहूंगा. मैं टिकट ना देने के पार्टी के फैसले का सम्मान करता हूं.’
जबकि, ज्ञान देव आहुजा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.
(लेखक एक फ्रीलांस राइटर हैं और जमीनी पत्रकारों के अखिल भारतीय नेटवर्क 101Reporters.com के सदस्य हैं)
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