बागियों को मनाने में जुटी कांग्रेस से एक सवाल लाख चाहने पर भी पीछा नहीं छोड़ रहा है. सवाल है कौन बनेगा मुख्यमंत्री? पार्टी को हर मौके-बेमौके इसका सामना करना पड़ता है और हर बार ही पार्टी नेताओं को जवाब के लिए दाएं-बाएं देखना पड़ता है. राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत ने एक बार फिर इस सवाल पर कइयों के लिए संभावनांओं के नए दरवाज़े खोल दिए हैं.
मुख्यमंत्री पद की ये जंग अब तक गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के बीच ही थी. लेकिन अब खुद गहलोत ने ही इस बाधा दौड़ में कुछ और प्रतियोगियों को शामिल कर दिया है. गहलोत ने कहा है कि वे दो ही क्यों, मुख्यमंत्री बनने के लिए तो कम से कम 5 और नेता लाइन में हैं. इन 5 नेताओं के नामों का विश्लेषण आगे करेंगे लेकिन पहले ये बताना जरूरी है कि गहलोत ने बड़ी ही चालाकी से अपनी संभावनाएं सबसे ऊपर कैसे रखी हैं.
त्याग भी, महत्त्वाकांक्षा भी !
अशोक गहलोत पिछले 40 साल से राज्य और केंद्र की राजनीति में सक्रिय हैं. राजस्थान में तो आज सर्व समाज में उनके जितना स्वीकार्य नेता कोई और नहीं है. कम से कम अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की तो शायद ही कोई जाति होगी, जो गहलोत की शख्सियत से मतभेद रखती हो. उन्होने केंद्र में मंत्री से लेकर राज्य में मुख्यमंत्री के पदों को संभाला है और हमेशा ही उन्होने पिछड़े वर्गों की भलाई का विशेष ख्याल रखा है.
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लंबी और कामयाब राजनीतिक जिंदगी के कारण ही वे कहते हैं कि मुख्यमंत्री का पद उनके लिए कोई प्राथमिकता नहीं है. लेकिन इसके साथ वे ये जोड़ना नहीं भूलते (कांग्रेस कल्चर में ये आम भी है) कि पार्टी हित में राहुल गांधी जो भी जिम्मेदारी उन्हे सौंपेंगे, वे पूरी ईमानदारी के साथ उसका पालन करेंगे. गहलोत ने ये भी कहा है कि किसी भी पद के लिए वे लॉबिंग के हमेशा खिलाफ रहे हैं और आगे भी कभी लॉबिंग नहीं करेंगे.
'कांग्रेस कल्चर' में अपनी महत्त्वाकांक्षा को त्याग की भावना से जोड़कर ही अभिव्यक्त किया जाता रहा है. वैसे, ध्यान देने वाली बात ये है कि अभी तक सीएम पद का फैसला विधायकों के तय करने की बात कही जा रही थी. अब इसे आलाकमान के विवेकाधिकार पर छोड़ा जा रहा है. अब एक और खास बात सामने आई है. वो ये कि मुख्यमंत्री पद के लिए गहलोत की तरफ से नए दावेदारों की खोज भी कर ली गई है.
नए दावेदार पायलट की राह में 'बाधा'!
अशोक गहलोत ने पूछा है कि मीडिया क्यों नए मुख्यमंत्री के लिए कांग्रेस से सिर्फ 2 ही नेताओं पर निगाह डालता है. गहलोत खुद ही दूसरे दावेदारों के नाम भी सुझाते हैं. उनकी नजर में सी पी जोशी, गिरिजा व्यास, रघु शर्मा, रामेश्वर डूडी और लाल चंद कटारिया भी इस दौड़ मे शामिल हैं. अचानक इन नए नामों को सामने लाकर गहलोत ने राजस्थान में नई बहस छेड़ दी है.
अशोक गहलोत को नजदीक से जानने वाले लोग जानते हैं कि वे कोई भी बात यूं ही नहीं कहते. उनकी कोशिश रहती है कि उनके सार्वजनिक बयान कुछ न कुछ मैसेज जरूर छोड़ें. इन नए दावेदारों के नामों में भी मैसेज ढूंढा जा रहा है. सबसे बड़ा मैसेज तो उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट को ही हो सकता है. शायद कोशिश हो कि उन्हे (गहलोत को) अगर केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी के नाम पर अलग किया जाएगा तो पायलट भी आसानी से कमान हासिल नहीं कर पाएंगे. उन्हें बाकी दावेदारों से जूझना ही पड़ेगा.
नए नाम गहलोत समर्थक या पायलट विरोधी?
गहलोत ने जो नाम गिनाए हैं, वे या तो खुद उनके समर्थक हैं या फिर पायलट गुट के विरोधी गुटों का नेतृत्व करते हैं. नाथद्वारा से लड़ रहे सी पी जोशी कभी खुद सीएम बनना चाहते थे. अब उनका राजनीतिक प्रभाव कम हो गया है. इसके बावजूद उन्हें पायलट का प्रतिद्वंद्वी बनाने की पूरी कोशिश की गई है. लाल चंद कटारिया कभी सी पी जोशी के साथ थे. लेकिन पिछले दिनों उन्होंने जोर-शोर से गहलोत को नेतृत्व सौंपने की मांग की थी. केकड़ी से चुनाव लड़ रहे रघु शर्मा भी गहलोत समर्थक माने जाते हैं.
रामेश्वर डूडी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं. अभी तक उन्हें मुख्यमंत्री की रेस में नहीं गिना गया. लेकिन टिकट बंटवारे के समय उनकी सचिन पायलट से जमकर बहस हुई थी. राजनीति में दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त की कहावत यहां सच होती लग रही है. उदयपुर से ताल ठोंक रही गिरिजा व्यास भी अभी तक मुख्यमंत्री की रेस में कभी नहीं रही. लेकिन अब शायद महत्त्वाकांक्षा जगा ही दी गई है.
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इन 5 खास नामों के जरिए जातियों को साधने की नीति भी हो सकती है. गिरिजा व्यास, सी पी जोशी और रघु शर्मा ब्राह्मण हैं. रामेश्वर डूडी और लालचंद कटारिया जाट हैं. खुद गहलोत सैनी जाति से हैं और पायलट गुर्जर समुदाय से हैं. इन 4 जातियों के कुल मतदाता 25 फीसदी से कुछ ज्यादा ही हैं. हो सकता है कि मुख्यमंत्री के दावेदारों के रूप में इन जातियों को ही मैसेज देने की कोशिश की गई हो.
क्या है आगे की राह
पूर्व मुख्यमंत्री के बयान के सियासी मायने और मैसेज कुछ भी हो सकता है. लेकिन कांग्रेस ने इन नामों को एक तरीके से खारिज कर दिया है. पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि चुनाव बाद गहलोत या पायलट में से कोई भी सीएम बन सकता है. खुद पायलट ने ये कहा है कि इसका फैसला जीतने के बाद आलाकमान का आदेश तय करेगा. उधर, बीजेपी ने ये कहकर चुटकी ली है कि कांग्रेस के लिए सीएम का पद कौन बनेगा करोड़पति की हॉट सीट की तरह हो गया है. सभी दावेदार फास्टेस्ट फिंगर की कोशिश में जुटे हैं.
बहरहाल, कुछ साल पहले तक चुनाव से पहले कौन बनेगा प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का सवाल कभी भी अहम नहीं रहा. पिछले कुछ साल से भारतीय चुनावों में अमेरिकन प्रेसीडेंशियल चुनाव की तर्ज पर चेहरे को आगे रखने की परंपरा सी शुरू हो गई है. इसके फायदे और नुकसान दोनों हैं. हालांकि इससे बीजेपी को हमेशा ही कांग्रेस से ज्यादा फायदा मिला है. इस बार देखना है कि जनता वसुंधरा राजे पर विश्वास जताती है या 'कई चेहरों' वाली कांग्रेस को ताज सौंपती है.
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