राजस्थान में 7 दिसंबर के चुनावों के लिए बीजेपी का नारा है- 'भाजपा फिर से.' हालांकि, जमीन पर उभरते समीकरण इशारा देते हैं कि इस नारे को हकीकत में बदलते हुए राज्य में वसुंधरा राजे सरकार की वापसी बहुत मुश्किल है.
अगले कुछ दिनों में बदलाव की हवाएं सिर्फ मौसम ही नहीं बल्कि अगले पांच सालों के लिए राज्य की किस्मत का भी फैसला कर देंगी कि यहां सत्ता की कमान किसके हाथों में होगी. कांग्रेस का लंबा सूखा खत्म हो सकता है और पानी की कमी वाला राज्य दूसरे मायनों में पार्टी की सूखी किस्मत में जान डाल सकता है.
वसुंधरा ने ही बनाया है बाहर का रास्ता
बीजेपी 2013 में चुनाव में कांग्रेस का सचमुच सफाया करते हुए सत्ता में आई थी. इसने कुल 200 सीटों में से 163 सीटें जीती थीं और सफलता की दर 82 फीसद थी. कांग्रेस सिर्फ 21 सीटें जीत सकी थी. अगर नतीजे कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं, जो सबसे संभावित परिदृश्य है, तो पार्टी को मौजूदा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का शुक्रिया अदा करना चाहिए, न कि अपनी संगठनात्मक शक्ति या राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की अपील को.
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मौजूदा मुख्यमंत्री और अगले कार्यकाल के लिए घोषित मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार के रूप में, वसुंधरा जाहिर तौर पर राज्य की सबसे चर्चित शख्सियत हैं. बात वास्तविकता के बारे में इतनी नहीं है कि उन्होंने राज्य के लिए क्या किया, उन्होंने कैसे शासन चलाया, उनका रवैया कैसा था और वह कैसे लोगों से जुड़ी थीं बल्कि यह आम जनधारणा के बारे में है. चुनावों में सबसे ज्यादा मायने यह रखता है कि नेता के बारे में लोगों की धारणा क्या है.
नए मतदाताओं में बदलाव के लिए जोश
जयपुर में विश्वविद्यालय परिसर के कैफे में लड़कियों के एक समूह में चाय और नाश्ते पर गर्मागर्म बहस हो रही है. सुबह अखबार में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि एक महिला होने के नाते वह मुद्दों को समझने और योजनाओं पर अमल के लिए ज्यादा सक्षम थीं. पोस्ट ग्रेजुएट छात्रा मेघा चौधरी तर्क देती हैं कि वसुंधरा के पास राज्य को ऊंचाइयों पर ले जाने का एक शानदार मौका था, लेकिन वह नाकाम रहीं. मेघा अपना अंतिम फैसला देने से पहले मुद्दों की एक लंबी लिस्ट पेश करती हैं. वह इस बार उनको वोट नहीं दे रही हैं और राज्य नेतृत्व में बदलाव देखने की ख्वाहिशमंद है. वह स्पष्ट हैं. उनका कहना है, इस बार हम राज्य में कांग्रेस सरकार देखना चाहते हैं.
वह अपने साथ अपनी दोस्त और क्लासमेट कोमल महावर को जोड़ लेती हैं और कहती हैं कि अगर बीजेपी नेतृत्व ने समय रहते कदम उठाया होता तो इन चुनावों के हालात अलग हो सकते थे- उन्हें एक साल पहले या कम से कम कुछ महीने पहले बदल दिया जाना चाहिए था. मेघा की बाकी दोस्त भी सहमति में गर्दन हिलाती हैं.
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परिसर के बाहर, एक मोटरसाइकिल पर सवार बीएससी के दो छात्र एक दोस्त के आने के इंतजार में एक छोटी सी दुकान पर खड़े हैं. ये दोनों पहली बार मतदाता बने हैं. वे खुश हैं कि इस बार उन्हें ईवीएम का बटन दबाने का मौका मिलेगा. जब उनसे पूछा गया कि वे वसुंधरा की सत्ता में वापसी के लिए वोट देंगे या बदलाव के लिए, राहुल मीणा का सीधा जवाब था, 'वसुंधरा सत्ता में वापस नहीं आ रही हैं. यह बात पक्की है. मेरा वोट कांग्रेस को जाएगा और कांग्रेस राज्य में सत्ता में आने वाली है. मुझे यह भी कहना है कि मैं राहुल गांधी का प्रशंसक नहीं हूं लेकिन राजस्थान में कांग्रेस सरकार राज्य के लिए अच्छा करेगी. इसके राज्य के नेता अच्छे हैं. देखते हैं कि अगला मुख्यमंत्री कौन बनता है, अशोक गहलोत या सचिन पायलट.'
बीजेपी के समर्थकों को पार्टी ने ही मुश्किल में डाला
बहुत दूर तिजारा शहर में सुंदर सिंह चौधरी एक ढाबा और एक टेंट हाउस का अपना नया धंधा जमाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. वह तय कर रहे हैं कि उन्हें और उनके दोस्तों और रिश्तेदारों को किसे वोट देना चाहिए. तिजारा अलवर में है, वह क्षेत्र जहां भीड़ के हाथों पहलू खान की हत्या हुई थी और गोरक्षकों की हरकत से माहौल सांप्रदायिक हो गया था. सुंदर सिंह का झुकाव हिंदुत्व की तरफ है और वह कांग्रेस को सत्ता में आता नहीं देखना चाहते.
लेकिन वह भी दो कारणों से बीजेपी को वोट नहीं देंगे. वसुंधरा के राज्य को चलाने के तरीके से वह खुश नहीं हैं और दूसरे बीजेपी ने मौजूदा विधायक व क्षेत्र के एक अन्य प्रभावशाली पार्टी नेता संदीप यादव का टिकट काट दिया. इन बातों ने उनके लिए हालात को मुश्किल बना दिया है. विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी उनकी पसंदीदा पार्टी नहीं है. संदीप यादव ने पाला बदल लिया है और बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. चौधरी उनको वोट देना चाहते हैं, लेकिन चिंता में हैं कि अगर त्रिशंकु विधानसभा आती है तो बीएसपी कांग्रेस के साथ चली जाएगी. यादव कहते हैं, 'उन्होंने मुझे उलझन में डाल दिया है, थोड़ा तनाव भी है. देखते हैं ऊंट किस करवट बैठता है.'
संकेत दे रही थी जनता, शीर्ष नेताओं ने नहीं की परवाह
कई कारकों का संयोजन मुख्यमंत्री के खिलाफ जाता है. हर किसी के पास उनके खिलाफ अपने कारण हैं, लेकिन चारों तरफ एक आवाज समान है कि कोई भी उन्हें एक और कार्यकाल नहीं देना चाहता. उनकी आवाजों में पक्का इरादा और भरोसा बीजेपी नेतृत्व के लिए चिंता का कारण होना चाहिए. लोग बीजेपी के खिलाफ इतने गुस्से में नहीं हैं, जितना वसुंधरा के खिलाफ.
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लोगों से बात करने में एक बात लगातार कानों में गूंजती है कि बीजेपी की संभावनाएं बेहतर होतीं, और बीजेपी के पास राज्य की राजनीति में हर बार सत्तारूढ़ पार्टी को बदल देने की परंपरा तोड़ देने का सही मौका होता.
अलीगढ़ के करीब के एक छोटे व्यवसायी के पास बीजेपी नेतृत्व के लिए कुछ कहने को है, 'पिछले कई महीनों से यह साफ था कि वसुंधरा राजे अब लोगों की पसंदीदा मुख्यमंत्री नहीं हैं. लोग उपचुनाव के दौरान संकेत दे रहे थे, लेकिन बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने परवाह नहीं की. इसलिए बीजेपी अब अपने ही नारे को बदला हुआ सुनेगी- 'अबकी बार, राजस्थान में कांग्रेस सरकार.'
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