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राजस्थान विधानसभा Election Results 2018: नतीजों ने कांग्रेस को धरती पर रहने को मजबूर किया है!

राजस्थान विधानसभा Election Results 2018: राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनना निश्चित हो गया है. वोटों की गिनती लगातार जारी है.

Updated On: Dec 11, 2018 04:04 PM IST

Mahendra Saini
स्वतंत्र पत्रकार

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राजस्थान विधानसभा Election Results 2018: नतीजों ने कांग्रेस को धरती पर रहने को मजबूर किया है!

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनना निश्चित हो गया है. वोटों की गिनती लगातार जारी है. अंतिम परिणाम जारी होने में अभी चाहे वक्त हो लेकिन मतगणना के पहले कुछ घंटों ने ही तस्वीर साफ कर दी है. कांग्रेस के लिए हालात बल्ले-बल्ले हैं लेकिन बीजेपी के लिए भी उतने बुरे नहीं कहे जा सकते, जितने बुरे की 'वास्तव' में कल्पना की जा रही थी.

चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले तक माना जा रहा था कि नतीजे अपने विपरीत रूप में वैसे ही हो सकते हैं जैसे 2013 में थे. तब बीजेपी ने 163 सीटें जीती थी और कांग्रेस 21 पर सिमट गई थी. इस बार माहौल देखकर लग रहा था कि कांग्रेस 150+ सीटों पर जीतेगी और बीजेपी 20 से 30 सीटों पर सिमट जाएगी. लेकिन पिछले एक महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की मेहनत ने बीजेपी की स्थिति में काफी सुधार किया है.

बीजेपी की हार की बड़ी वजह

राजस्थान में किसी भी गांव-शहर के पढ़े-लिखे या निरक्षर शख्स या फिर अमीर या गरीब शख्स से भी ये सवाल पूछें कि बीजेपी क्यों हारी तो लगभग एक ही जवाब मिलेगा. जवाब ये कि जनता की उम्मीदों पर खरा न उतर पाना. 2013 में लोगों ने बीजेपी को पहली बार इतनी सीटें दी थी, जितनी आज़ादी के तुरंत बाद के एकछत्र राज के दौर में कांग्रेस को भी नहीं मिल पाई थी. 200 में से बीजेपी विधानसभा की लगभग 80% से भी ज्यादा सीटों पर जीती थी.

मतगणना में निर्णायक बढ़त मिलने के बाद दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के दफ्तर पर जश्न मनाते कार्यकर्ता

मतगणना में निर्णायक बढ़त मिलने के बाद दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के दफ्तर पर जश्न मनाते कार्यकर्ता

तब जनता ने वसुंधरा राजे से ज्यादा नरेंद्र मोदी के भाषणों पर यकीन किया था. राजस्थान जैसे परंपरागत राज्य में आमूलचूल बदलाव की उम्मीदें की गई थी. मोदी के उन भाषणों को खासतौर पर पसंद किया गया था, जिनमें वे कहते थे कि पानी से आधे भरे गिलास को आधा भरा मत मानिए क्योंकि आधे में भरी हवा भी तो हमारे ही पर्यावरण की देन है. माने कि सबको साथ लेकर विकास के पथ पर अग्रसर होने की भावना. लेकिन लगता नहीं कि बीजेपी अपनी कथनी पर पूरी तरह खरी उतर पाई.

सबसे बड़ा मुद्दा बना युवाओं को रोजगार का मुद्दा. घोषणा पत्र में 15 लाख नौकरियों को वादा किया गया था. लेकिन हुआ ये कि ज्यादातर नौकरियां सत्ता के आखिरी साल में निकाली गईं. जो भर्तियां पहले निकलीं, वो पिछले 4 साल से कोर्ट-कचहरी में अटकी हुई हैं. बाद में सफाई में बीजेपी नेता कहने लगे कि हमने नौकरियों का नहीं बल्कि कौशल विकास कर युवाओं को नौकरियों के लायक बना देने का वादा किया था.

दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा जिसने बीजेपी की हार तय की, वो था- कर्मचारियों के बीच गहरी नाराजगी. चुनाव प्रचार शुरू होने के एक महीने पहले तक राजस्थान का कोई दफ्तर ऐसा नहीं था जिसके कर्मचारी हड़ताल या धरने पर न बैठे हों. मुख्य मांगें सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की थी. लेकिन पता नहीं कि वसुंधरा राजे सरकार किस 'यूटोपिया' से ग्रसित थी कि कर्मचारियों को तवज्जो ही नहीं दी गई.

सातवें वेतन आयोग को लागू करने के नाम पर सावंत कमेटी बना कर इतिश्री कर ली गई. फ़र्स्टपोस्ट ने एक लेख में बताया था कि कैसे राज्य के 9 लाख से ज्यादा कर्मचारी अपने 45 लाख से ज्यादा पारिवारिक सदस्यों के साथ गांवों के करोड़ों वोटों को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं.

हार की एक बड़ी वजह किसानों की नाराज़गी को भी माना जा सकता है. पिछले 70 साल में ये पहली बार था जब राजस्थान से किसानों की आत्महत्या की खबरें आ रही थी. हालांकि इनके आंकड़े विवादास्पद हो सकते हैं लेकिन हर तीसरे साल में पड़ने वाले अकाल के बावजूद किसी किसान के खुदकुशी करने की खबर पहले कभी नहीं आई थी. राजे सरकार ने 29 लाख किसानों का 50 हज़ार तक का लोन माफ किया लेकिन वो भी सत्ता के आखिरी साल में, तब तक काफी देर हो चुकी थी.

एक बड़ा कारण ये भी हो सकता है कि राजे सरकार की PPP योजनाएं. स्वास्थ्य केंद्रों को PPP मोड पर देने की योजना शुरू की गई. 20 हजार स्कूलों को मर्ज कर दिया गया और 300 से ज्यादा स्कूलों को भी निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर ली गई. रोडवेज को भी प्राइवेट हाथों में सौंपने की तैयारी लगभग पूरी की जा रही थी. इन योजनाओं को प्राइवेट सेक्टर के नवाचार और पारदर्शिता बढ़ाने के साथ ही भ्रष्टाचार को खत्म करने के सुधार के रूप में प्रचारित किया गया. लेकिन ये योजनाएं विवादास्पद हो गईं. स्कूलों को निजी हाथों मे देने की योजना तो आखिरकार वापस ही लेनी पड़ी.

ऐसा नहीं कि 5 साल के दौरान बीजेपी सरकार ने कुछ नहीं किया. बहुत कुछ किया भी गया लेकिन कहीं न कहीं ये उतना पर्याप्त नहीं था, जितने की जरूरत थी. शायद जनता की आकांक्षाएं कहीं ज्यादा बड़ी थी.

बीजेपी को क्यों नहीं हारना चाहिए था ?

वसुंधरा राजे

वसुंधरा राजे

इस कार्यकाल में बीजेपी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी, भामाशाह योजना. खाद्य सुरक्षा योजना में राज्य के करीब 1.5 करोड़ परिवारों के 5 करोड़ लोगों को रियायती दर पर राशन मुहैया कराया गया. इसने गरीब लोगों का खाने का खर्च घटाया.

अन्नपूर्णा रसोई योजना में राजे सरकार ने 5 रुपए में नाश्ता और 8 रुपए में खाना मुहैया कराया. अन्नपूर्णा भंडार दुकानों के रूप में सरकार ने लगभग 150 तरह के मल्टीप्रोडक्ट्स को रियायती दरों पर PDS दुकानों पर उपलब्ध कराया.

भामाशाह स्वास्थ्य योजना मौजूदा समय की सबसे प्रगतिशील योजना है. इसमें खाद्य सुरक्षा से जुड़े परिवारों को क्रिटिकल इलनेस के लिए 3 लाख तक का बीमा मुहैया कराया गया. इसने गरीब परिवारों के अस्पताल खर्च को लगभग ज़ीरो कर दिया.

इसके अलावा, राजे सरकार के श्रम सुधारों ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में राज्य की स्थिति सुधारी. 2015 में आयोजित हुए रिसर्जेंट राजस्थान समिट में 3.5 लाख करोड़ के निवेश MoU भी किए गए. राजे सरकार ने डिजिफेस्ट और ग्लोबल राजस्थान एग्रीकल्चर मीट (GRAM) के जरिए सूचना और संचार तकनीक क्षेत्र के कई नवाचारों को लागू किया.

निश्चित रूप से ये कदम आकर्षक थे. लेकिन इन सबपर सरकार और सरकार में शामिल नेताओं के 'मद' ने पानी फेर दिया. राज तक आम आदमी की पहुंच न हो पाने का कारण हार की सबसे बड़ी वजह बन गया. देवस्थान मंत्री राजकुमार रिणवां, जो इन चुनाव में बीजेपी के बागी बन गए, के एक बयान ने और ज्यादा हताशा का काम किया. रिणवां ने एक जनता दरबार में कहा कि राजस्थान में हर बार सरकार बदल ही जाती है. ऐसे में जब हारना ही है तो मेहनत भी क्यों करें?

कांग्रेस को धरती पर रहने की जरूरत!

कांग्रेस सत्ता में तो लौट रही है. लेकिन इसके बावजूद देश की सबसे पुरानी पार्टी को भी धरती पर रहने की जरूरत है. चुनाव से 2 महीने पहले तक हालात ये थे कि कांग्रेस 150 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने की हालात में थी. तमाम सर्वे और लोगों की राय यही निष्कर्ष निकाल रहे थे. इसके बावजूद नतीजे वैसे नहीं आ पाए हैं. कांग्रेस अब मुश्किल से बहुमत के पास पहुंची है.

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कांग्रेस की सीटें अनुमान से कम रहने की कई वजह हैं. सबसे बड़ी तो आपसी कलह है. कांग्रेस आखिर तक नेतृत्व के मुद्दे का स्पष्ट समाधान जनता के सामने रखने में नाकाम रही. पार्टी अशोक गहलोत और सचिन पायलट के गुटों के संघर्ष में उलझी रही. टिकट बंटवारे में ये संघर्ष स्पष्ट तौर पर उभर कर आया. कम से कम 40 सीटों पर कांग्रेस को इसी के बागियों ने तगड़ा नुकसान पहुंचाया.

बहरहाल, अब जब जनता ने तमाम खामियों के बावजूद कांग्रेस में विश्वास दिखाया है तो पार्टी को इस पर खरा उतरने की कोशिश करनी चाहिए. पार्टी आगामी 5 साल के विकास के रोडमैप के मद्देनजर राज्य की 7 करोड़ जनता को प्रभावी नेतृत्व सौंपे. अब ये उसे तय करना है कि राजस्थान युवा जोश के नेतृत्व में आगे बढ़ेगा या अनुभव ज्यादा कारगर होगा.

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