live
S M L

राजस्थान: सीएम के चुनाव में गहलोत-पायलट में बंटे विधायक

हर बीतते मिनट के साथ कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री चुनने का मुद्दा और ज्यादा पेचीदा होता जा रहा है.

Updated On: Dec 13, 2018 04:36 PM IST

Mahendra Saini
स्वतंत्र पत्रकार

0
राजस्थान: सीएम के चुनाव में गहलोत-पायलट में बंटे विधायक

हर बीतते मिनट के साथ कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री चुनने का मुद्दा और ज्यादा पेचीदा होता जा रहा है. ऐसा लग रहा है कि लोकसभा चुनाव-2019 से पहले ये राहुल गांधी की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा साबित हो सकता है. हालांकि दावा किया जा रहा है कि गुरुवार शाम तक मसला सुलझा लिया जाएगा. लेकिन हकीकत ये है कि राजस्थान और मध्यप्रदेश में 2 अनुभवी और 2 युवा नेताओं के बीच कांग्रेस को एक-एक नाम तय करने में खासी दिक्कतें आ रही हैं.

राजस्थान में अशोक गहलोत 2 बार सीएम रह चुके हैं. इस समय देश के इस सबसे बड़े राज्य में उनसे ज्यादा बड़ी शख्सियत दूसरे किसी नेता की नहीं है. गहलोत और पायलट दोनों ही ओबीसी से आते हैं लेकिन गहलोत की स्वीकार्यता सभी जातियों में समान रूप से है. कई लोग अक्सर कह देते हैं कि गहलोत राज्य में राजनीतिक रूप से मजबूत जाटों को कबूल नहीं हैं.

नई बनी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल ऐसे ही दावे कर रहे हैं. लेकिन ये हकीकत नहीं है. वे न सिर्फ अधिकतर वर्गों को स्वीकार्य हैं, बल्कि लोग उन्हे मुख्यमंत्री बनते हुए देखना भी चाहते हैं.

निर्दलीय विधायकों ने किया गहलोत का समर्थन

सीकर की खंडेला सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव जीते महादेव सिंह खंडेला और श्रीगंगानगर विधायक राजकुमार गौड़ खुलकर गहलोत के समर्थन में आ गए हैं. खंडेला जाति से जाट हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गहलोत को लेकर जातिगत अस्वीकार्यता के दावे पूरी तरह सत्याधारित नहीं हैं.

pilot-gehlot

खंडेला और गौड़ दोनों ही कांग्रेस के पुराने नेता हैं. लेकिन टिकट कट जाने के बाद वे निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे और जीतकर अपनी ताकत भी दिखाई. वैसे, दोनों पुराने समय से ही गहलोत के समर्थक रहे हैं. इस बार माना जा रहा था कि अपने समर्थकों को ज्यादा टिकट दिलाने और विरोधी के समर्थकों को कम करने की गणित में पायलट ने इनका टिकट कटवा दिया था.

ये भी पढ़ें: राजस्थान का CM कौन? गहलोत के गढ़ में लगे सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के पोस्टर

जयपुर की झोटवाड़ा सीट से बीजेपी के कद्दावर नेता और उद्योग मंत्री रहे राजपाल सिंह शेखावत को हराकर विधानसभा पहुंचे लालचंद कटारिया तो चुनाव से पहले ही गहलोत के समर्थन में खुलकर बयानबाजी कर चुके हैं. कटारिया ने गहलोत को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने पर ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया था. कटारिया यूपीए-II सरकार में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री रह चुके हैं. खुद गहलोत ने भी 5 अन्य दावेदारों में से उन्हे एक बताया था.

पिछली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे रामेश्वर डूडी और पूर्व केंद्रीय मंत्री गिरिजा व्यासा को भी गहलोत ने मुख्यमंत्री के दावेदारों में बताया था. लेकिन बदकिस्मती से डूडी नोखा से और व्यास उदयपुर से चुनाव हार गईं. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इन्हे हराने में पायलट गुट ने पूरा जोर लगा दिया था. ये दोनों ही नेता जाट और ब्राह्मण समुदाय से हैं और गहलोत के समर्थक माने जाते हैं. यानी मुख्यमंत्री पद की लड़ाई में राजा और राजा के बीच ही जंग नहीं है बल्कि हरकारों को ठिकाने लगाने तक के स्तर पर ये युद्ध लड़ा गया है.

गहलोत का अनुभव आएगा काम

पिछले 40 साल में छात्र राजनीति से केंद्र में मंत्री और राज्य में मुख्यमंत्री पद तक पहुंच चुके अशोक गहलोत राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. 1998 में बीजेपी के कद्दावर नेता भैरों सिंह शेखावत सरकार के खिलाफ कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में 153 सीट हासिल की थीं. 2008 में जब कांग्रेस बहुमत से 5 सीट पीछे रह गई थी, तब भी उन्होने आसानी से सरकार बना और 5 साल चलाकर दिखाया कि चातुर्य और स्वीकार्यता में उनसे बड़ा राजस्थान में फिलहाल कोई नहीं है. 2008 में बहुजन समाज पार्टी के 6 विधायक चुने गए थे.

लेकिन गहलोत ने आसानी से 6 के 6 विधायकों का समर्थन कांग्रेस के लिए हासिल कर लिया था. राजकुमार शर्मा और राजेंद्र सिंह गुढ़ा जैसे नेता मंत्री भी बने थे. राजकुमार शर्मा अब कांग्रेस के टिकट पर नवलगढ़ से चुने गए हैं. हालांकि राजेंद्र सिंह गुढ़ा इसबार फिर बीएसपी के टिकट पर ही उदयपुरवाटी से जीते हैं. लेकिन पायलट गुट ने उनका एक वीडियो वायरल कराया है जिसमें वे पायलट को समर्थन की बात कह रहे हैं.

pilot-gehlot

सचिन पायलट राजनीति में अभी 14 साल पहले ही आए हैं. वे केंद्र में मंत्री रहे हैं लेकिन राजस्थान जैसे बड़े राज्य की कमान वे संभाल पाएंगे, इसमें लोग संदेह जता रहे हैं. जमीनी स्तर पर कई लोग बातचीत में यहां तक दावे कर रहे हैं कि अगर पायलट निर्दलीय लडें तो शायद ही जीत पाएं. इसके पीछे उनका बाहरी होना और जातिवाद के उनपर लग रहे आरोप हैं. दूसरी ओर, गहलोत के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव-2019 में कांग्रेस को फायदा मिलने की बातें लोग कह रहे हैं.

बीएसपी का कांग्रेस को अनकंडीशनल सपोर्ट

बीएसपी एक बार फिर राजस्थान में तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है. 2008 की तरह इस बार भी उसे 6 सीटें मिली हैं. इन 6 में से 5 सीटें पूर्वी राजस्थान से आई हैं. नदबई से जोगेंद्र अवाना, नगर से वाजिब अली, करौली से लाखण मीणा, तिजारा से संदीप यादव और किशनगढ़ बास से दीपचंद खैरिया जीते हैं.

ये भी पढ़ें: महागठबंधन में संकट: 2019 के लिए कांग्रेस ने मांगी बिहार में 17 सीटें, मुश्किल में आरजेडी

मायावती ने पहले ही कांग्रेस को समर्थन देने की बात कह दी है. हालांकि विधायकों ने भी इसका पालन करने की बात कही है लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को लेकर इनमें ऊहापोह है. इसकी वजह ये है कि बीएसपी के ज्यादातर विधायक पार्टी के मूल सदस्य नहीं हैं. कई लोग वे हैं जिन्हे कांग्रेस या बीजेपी ने टिकट नहीं दिया. 2008 में भी कमोबेश यही हालात थे. यही वजह है कि तब सभी 6 विधायकों ने मायावती के आदेशों को धता बताकर पार्टी छोड़ दी थी.

बहरहाल, जीते विधायकों ने अब मामला राहुल गांधी पर छोड़ दिया है. ये जरूर है कि पार्टी के सीनियर नेता और ज्यादातर निर्दलीय विधायक गहलोत का समर्थन कर रहे हैं. सवाल यही है कि बहुमत पाने में विफल रही कांग्रेस किसके नेतृत्व में राजस्थान को सफल सरकार के साथ ही विकास सरकार दे पाने में सफल रहेगी.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi