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राजस्थान: चुनाव की आहट और कांग्रेस की कुर्ता फाड़ कलह

25 मई को जयपुर के पास शाहपुरा में कांग्रेस की कलह खुलकर सामने आ गई. यहां मेरा बूथ, मेरा गौरव अभियान के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता संदीप चौधरी के साथ मारपीट की गई

Updated On: May 28, 2018 10:06 AM IST

Mahendra Saini
स्वतंत्र पत्रकार

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राजस्थान: चुनाव की आहट और कांग्रेस की कुर्ता फाड़ कलह

एक देसी कहावत है कि गांव बसा नहीं और डकैती के मंसूबे पहले बंधने लगे. राजस्थान में कांग्रेस की भी कुछ ऐसी ही हालत दिख रही है. इस साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीदें राजस्थान से ही हैं. पार्टी को ये भी लग रहा है कि लोकसभा चुनाव-2019 से तुरंत पहले इसी साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में अगर जीत मिलती है तो ये बीजेपी और मोदी के उत्तर भारत में अजेय होने का तिलिस्म तोड़ देगा.

राजस्थान में उम्मीदों के चलते ही विधायकी का चुनाव लड़ने के इच्छुक नेताओं का जमावड़ा भी कांग्रेस के दफ्तरों में ज्यादा देखने को मिल रहा है. लेकिन जैसा कि कांग्रेसी संस्कृति में रह-रह कर देखा जाता रहा है, गुटबाजी और कलह भी जमकर उभर रही है. हालात ये हो गए हैं कि नेतृत्व के सामने ही कांग्रेस के नेता और समर्थक न सिर्फ उलझ रहे हैं बल्कि मारपीट और एक-दूसरे की गाड़ियों में तोड़फोड़ तक की जा रही है.

राष्ट्रीय प्रवक्ता से पूर्व डिप्टी सीएम के बेटे की मारपीट

25 मई को जयपुर के पास शाहपुरा में कांग्रेस की कलह खुलकर सामने आ गई. यहां मेरा बूथ, मेरा गौरव अभियान के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता संदीप चौधरी के साथ मारपीट की गई. उनके कपड़े फाड़ दिए गए. उनकी गाड़ी के शीशे तोड़ दिए गए और जब वे बच-बचाकर निकलने लगे तो पीछे से उनपर कुर्सियां फेंकी गई. हालात ये हो गए कि मौके पर आसपास के 4-5 थानों का जाब्ता मंगवाना पड़ा.

बूथ कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिए आयोजित किया गया ये कार्यक्रम उस वक्त युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया, जब टिकट की उम्मीद कर रहे नेता शक्ति प्रदर्शन करने लगे. संदीप चौधरी जब स्टेज पर चढ़ने लगे तो आलोक बेनीवाल समर्थकों ने उन्हें रोकने की कोशिश की. चौधरी से पूछा गया कि वे किस हैसियत से स्टेज पर चढ़ रहे हैं. तब चौधरी ने राष्ट्रीय प्रवक्ता होने का हवाला दिया और मंच पर जाने लगे. मामला इतना बढ़ गया कि दोनों के समर्थक गुत्थमगुत्था हो गए. चौधरी के कपड़े फाड़ दिए गए.

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इस पूरे एपीसोड के दौरान राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडेय और सह प्रभारी देवेंद्र यादव जैसे बड़े नेता भी मौजूद थे. इस कार्यक्रम में प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट को भी पहुंचना था लेकिन किन्हीं वजह से वे नहीं पहुंच पाए. हैरानी की बात ये है कि मारपीट करने वालों ने अपने बड़े नेताओं की भी शर्म लिहाज नहीं की. विधायकी के इच्छुक एक और नेता मनीष यादव ने भी सैकड़ों समर्थकों के साथ पहुंचकर अपनी ताकत दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

एक टिकट का है पूरा 'टंटा'

ये जंग शाहपुरा विधानसभा क्षेत्र से टिकट की दावेदारी से जुड़ी है. 2001 परिसीमन के बाद ये नई विधानसभा सीट बनी है. इससे पहले ये इलाका विराटनगर विधानसभा क्षेत्र के तहत आता था. आज़ादी के बाद अधिकतर समय इस सीट से डॉ कमला बेनीवाल विधायक रही थीं. अशोक गहलोत सरकार में वे उपमुख्यमंत्री रही थीं और निधन से पहले गुजरात की राज्यपाल भी बनी थीं. पिछले 2 चुनाव से इस सीट पर उनके बेटे आलोक बेनीवाल को टिकट मिली है. हालांकि बेनीवाल अभी तक जीत दर्ज नहीं कर पाए. इसी आधार पर संदीप चौधरी टिकट के लिए मेहनत कर रहे हैं.

पिछले दिनों कांग्रेस ने जिला पदाधिकारियों की नियुक्ति की थी. बताया जा रहा है कि शाहपुरा में ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्ति में बेनीवाल से ऊपर संदीप चौधरी की सिफारिशों को तवज्जो दी गई. बेनीवाल गुट संदीप चौधरी को यहां बाहरी बताकर विरोध करता है. चौधरी जयपुर के ही कोटपूतली के रहने वाले हैं लेकिन जाट वोटों की खासी तादाद के चलते वे शाहपुरा से चुनाव लड़ने की जुगत लगा रहे हैं. बेनीवाल खुद भी जाट समुदाय से आते हैं.

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छात्र राजनीति से मुख्य धारा की राजनीति में आए संदीप चौधरी ने कम समय में काफी उन्नति की है. किसी समय उन्हें अशोक गहलोत का खास माना जाता था लेकिन सचिन पायलट के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद वे पायलट के नजदीक हो गए हैं. उधर आलोक बेनीवाल की मां डॉ कमला की अशोक गहलोत और राजेश पायलट से अदावत रही थी. इसी वजह से आलोक बेनीवाल का कांग्रेस नेतृत्व से धूप-छांव का रिश्ता रहा है. इन्हीं सब वजहों से बेनीवाल और चौधरी के बीच काफी समय से शीतयुद्ध जैसे हालात बने हुए थे.

शाहपुरा से इस समय बीजेपी के राव राजेंद्र सिंह विधायक हैं जो कि विधानसभा उपाध्यक्ष भी हैं. सिंह के सामने ही आलोक बेनीवाल लगातार हारे हैं. चौधरी समर्थकों का कहना है कि विकल्प के अभाव में बेनीवाल को टिकट मिलता रहा. अब जब संदीप चौधरी के रूप में सशक्त उम्मीदवार स्थापित हो रहा है तो ये उनको गंवारा नहीं हो रहा है. मारपीट की घटना के बाद चौधरी ने ऐलान कर दिया कि बेनीवाल को पार्टी से निकाले जाने तक वे चुप बैठने वाले नहीं हैं.

आलाकमान ने लिया एक्शन

बहरहाल, अब तक अंदरखाने चलती रही इस जंग के पर्दे के बाहर आ जाने से कांग्रेस में खासी हलचल मच गई है, विशेषकर राजस्थान प्रभारी और सह प्रभारी की मौजूदगी में राष्ट्रीय प्रवक्ता के साथ मारपीट हो जाने पर हाईकमान भी फौरन हरकत में आ गया है. जयपुर देहात अध्यक्ष राजेंद्र यादव ने भी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही है.

हालांकि मारपीट के आरोपी बताए जा रहे आलोक बेनीवाल ने आरोपों को बेबुनियाद बताया है. मीडिया से बेनीवाल ने कहा कि पांडाल में शोर-शराबा होने पर उन्हे घटना की जानकारी मिली. बेनीवाल ने दावा किया कि जि़ंदगी में उन्होंने कभी किसी को अपशब्द तक नहीं कहे, मारपीट तो बहुत दूर की बात है.

बेनीवाल की बातों में कितनी सच्चाई है, ये अलग बात है. लेकिन 24 घंटे के अंदर राहुल गांधी ने प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और प्रभारी अविनाश पांडेय को दिल्ली तलब कर लिया. शनिवार दोपहर बाद राहुल गांधी ने पायलट और पांडेय के साथ बैठक की. बताया जा रहा है कि गुटबाजी और बढ़ती अनुशासनहीनता पर राहुल ने कड़े शब्दों में नाराजगी जताई.

किशनपोल में भी हुई कलह

लेकिन ये अकेला मामला नहीं है जब कांग्रेसियों की जंग खुलेआम हुई हो और उसे सोशल मीडिया पर वायरल भी किया गया हो. 25 मई को ही जयपुर में मोदी सरकार के विरोध में पुतला दहन का कार्यक्रम रखा गया था. यहां किशनपोल विधानसभा क्षेत्र में टिकट के दावेदार अमीन कागजी और पूर्व मेयर ज्योति खंडेलवाल के बीच तू-तू-मैं-मैं हो गई. वजह सिर्फ इतनी थी कि कागजी ने ज्योति खंडेलवाल के पहुंचने से पहले ही प्रधानमंत्री का पुतला फूंक दिया. पूर्व मेयर ने जब इसका कारण पूछा तो अमीन कागजी ने कहा- पुतला तो जल गया. अब आप आगे बढ़िए. बस इतना सुनना था कि ज्योति खंडेलवाल आगबबूला हो गईं.

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किशनपोल विधानसभा क्षेत्र वही इलाका है, जहां प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वाया है. संभावना जताई जा रही है कि वे किशनपोल से चुनाव लड़ सकते हैं. हालांकि वे अजमेर से सांसद रहे हैं और अब तक उनका नाम कोटपूतली की मतदाता सूची में था. जयपुर शहर को बीजेपी का गढ़ भी माना जाता है. इसके बावजूद पायलट की रूचि किसी शहरी सीट से ही चुनाव लड़ने की है. लेकिन चुनाव से महज 5-6 महीने पहले सिर फुटोव्वल कांग्रेस के लिए नकारात्मक कारण भी बन सकती है.

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राजस्थान पर राहुल का खास फोकस

विभिन्न सर्वे और रायशुमारियों में राजस्थान में कांग्रेस की जीत की संभावनाएं बताई जा रही है. यही वजह है कि राजस्थान को लेकर राहुल गांधी विशेष उत्साही हैं. लेकिन नेताओं और कार्यकर्ताओं की बीच सड़कों पर ऐसी कलह को लेकर वे खासे गुस्से में भी हैं. डर है कि कलह के कारण नजदीक आती सत्ता हाथ से फिसल भी सकती है.

26 मई की बैठक में उन्होंने अनुशासनहीनता को बर्दाश्त न करने के निर्देश तो दिए ही हैं. साथ ही, सूत्रों के मुताबिक परफॉर्मेंस न दे पा रहे पदाधिकारियों को हटाने के लिए पायलट को फ्री हैंड भी दे दिया है. जल्द ही पीसीसी पदाधिकारियों, जिलाध्यक्षों और ब्लॉक अध्यक्षों का नए सिरे से रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जाएगा. अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या राजस्थान में भी गुजरात और कर्नाटक की तरह कांग्रेस एकजुट होकर लड़ने का जज्बा दिखा पाएगी या इस कलह से बीजेपी के भाग्य छींका टूटेगा.

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