राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 के मतदान का समय करीब आ गया है, पर्यवेक्षक तीन निर्वाचन क्षेत्रों में ऊंचे दांव वाली लड़ाई पर नजर गड़ाए हुए हैं, जहां राज्य के राजनीतिक दिग्गज अपनी सीट निकालने के लिए हर कोशिश कर रहे हैं.
मौजूदा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने गढ़ों-झालरापाटन और सरदारपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट टोंक से मैदान में हैं.
झालरापाटन में, सीएम वसुंधरा के सामने हाल ही में बीजेपी छोड़ कांग्रेस में आए दिग्गज नेता जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र सिंह को उतारा गया है. मुस्लिम-बहुल टोंक निर्वाचन क्षेत्र में, पायलट के खिलाफ बीजेपी के एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार यूनुस खान मैदान में हैं. वर्तमान में एआईसीसी महासचिव के रूप में कार्यरत गहलोत सरदारपुरा में अपनी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
दिलचस्प बात यह है कि कई लोग मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने इन निर्वाचन क्षेत्रों के हाई प्रोफाइल उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से पहले जातीय संरचना और व्यक्तिगत प्रभाव जैसे कई कारकों पर विचार किया है जिससे कि वो अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय निकाल सकें.
झालरापाटन
तीन बार झालरापाटन की विधायक रह चुकी वसुंधरा राजे से उनकी सीट छीनना बच्चों का खेल नहीं है. अपना दांव मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने उन्हीं की जाति से एक राजपूत- मानवेंद्र सिंह को चुना, जो अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि और जाति के कारण खासा असर रखते हैं.
राजस्थान के राजनीतिक समीकरणों में जाति और धर्म महत्वपूर्ण कारक हैं, और यह कोई अचंभे की बात नहीं है. झालरापाटन निर्वाचन क्षेत्र में 2,73,404 मतदाताओं में से लगभग 15 फीसद मुस्लिम, 13 फीसद एससी-एसटी, 11 फीसद ओबीसी, 7 फीसद ब्राह्मण, 12 फीसद राजपूत-सौंधिया, 6 फीसद डांगी, 5 फीसद माली और 5 फीसद महाजन आदि हैं.
राजपूत-सौंधिया समूह का समर्थन पाने के लिए कांग्रेस ने नाप-तौल कर बीजेपी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए क्षेत्र से मानवेंद्र को मैदान में उतारा है. देश की सबसे पुरानी पार्टी को इस क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय से भी समर्थन मिलता है, जो कि आमतौर पर कांग्रेस को ही वोट देते हैं.
हकीकत यह है कि वसुंधरा राजे सिंधिया तीन बार झालरापाटन सीट से इसलिए जीतीं, क्योंकि सभी जातियों के मतदाताओं पर उनकी अच्छी पकड़ है.
चूंकि मानवेंद्र पश्चिमी राजस्थान में बाड़मेर-जैसलमेर बेल्ट से चुनाव लड़ चुके हैं और वहीं के रहने वाले हैं, ऐसे में बीजेपी ने उनके ‘बाहरी उम्मीदवार’ होने को मुद्दा बना लिया है.
बीजेपी के राज्य मीडिया प्रभारी विमल कटियार कहते हैं, ‘कांग्रेस यह भी तय नहीं कर सकती कि उनका मुख्यमंत्री कौन होगा और अब वे सपने देख रहे हैं कि कोई सामाजिक योगदान नहीं करने वाले उम्मीदवार हमारी मुख्यमंत्री (राजे) को हरा देंगे.’
उन्होंने कहा कि वे झालरपाटन, टोंक और सरदारपुरा में जोरदार जीत दर्ज करेंगे. उन्होंने कहा कि बीजेपी भारी बहुमत के साथ फिर से राज्य में सरकार बनाएगी.
टोंक
बहुत कम लोगों को उम्मीद थी कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट अपने राजनीतिक करियर का पहला विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मुस्लिम बहुमत वाली टोंक सीट का चुनाव करेंगे. पहली बार साल 2004 में दौसा से सांसद के रूप में चुने गए, पायलट बाद में 2009 में अजमेर से सांसद चुने जाने के बाद मनमोहन मंत्रिमंडल में शामिल हुए. चूंकि बीजेपी को टोंक में मतदाताओं को रिझाने के लिए एक मजबूत उम्मीदवार की जरूरत थी, इसलिए उन्होंने यह जिम्मेदारी यूनुस खान को सौंपी जो राजस्थान में राज्य मंत्री हैं और बीजेपी के इकलौते मुस्लिम उम्मीदवार हैं.
टोंक निर्वाचन क्षेत्र में 2.24 लाख से अधिक मतदाताओं में से लगभग 20 फीसद मुस्लिम, 17 फीसद एससी-एसटी, 14 फीसद गुज्जर, 4 फीसद राजपूत, 3 फीसद माली और 5-5 फीसद ब्राह्मण-जाट-बैरबा हैं.
पायलट, जो गुज्जर समुदाय से हैं, इस क्षेत्र में चार दशकों में कांग्रेस द्वारा नामांकित पहले हिंदू उम्मीदवार हैं, क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि मतदाताओं के जातीय समीकरण से उसको फायदा होगा. इसी तरह, बीजेपी ने परंपरागत पार्टी समर्थकों के साथ ही मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए पहली बार मुस्लिम उम्मीदवार यूनुस खान को उतारा है. हालांकि, यूनुस की अपनी ‘बाहरी उम्मीदवार’ वाली स्थिति संभावित सीएम कैंडिडेट पायलट के मुकाबले एक बड़ी बाधा साबित हो रही है.
वरिष्ठ पत्रकार प्रताप राव कहते हैं, टोंक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, इस तथ्य को देखते हुए बीजेपी ने एक मुस्लिम नेता यूनुस को आगे करके ट्रंप कार्ड खेला है, जिससे लड़ाई दिलचस्प हो गई है. इसमें कोई शक नहीं है कि मतदाता जाति और कई दूसरे पारंपरिक कारक अपने दिमाग में रखते हैं, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि पायलट संभावित सीएम कैंडिडेट हैं.
सरदारपुरा
दो बार मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत जोधपुर की सरदारपुरा सीट पर अपने गढ़ में चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट से लगातार चार विधानसभा चुनाव जीत चुके एआईसीसी महासचिव पिछले दो दशकों से यहां के विधायक हैं.
सरदारपुरा में, कुल 2,27,141 मतदाताओं में से 1,17,120 पुरुष और 1,10,021 महिलाएं हैं. यहां लगभग 20 फीसद राजपूत, 18 फीसद माली, 5 फीसद ब्राह्मण, 9 फीसद एससी-एसटी, 9 फीसद कुम्हार-जाट-बिश्नोई हैं.
माली जाति से आने वाले गहलोत की निर्वाचन क्षेत्र में पारंपरिक मतदाताओं पर गहरी पकड़ है. बीजेपी ने पिछली बार की तरह सरदारपुरा में शंभू सिंह खेतासर को मैदान में उतारा है- जो 2013 में 18,478 मतों के अंतर से गहलोत से हार गए थे.
एआईसीसी सचिव और राजस्थान कांग्रेस के सह-प्रभारी काजी निजामुद्दीन गहलोत और पायलट की जोरदार जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं. वह कहते हैं, ‘मैं राज्य भर में उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रहा हूं और मैं पूरे भरोसे से कह सकता हूं कि राजस्थान ने नाकारा बीजेपी सरकार को हटाने का फैसला किया है.’ इसके साथ ही वह जोड़ते हैं कि मानवेंद्र भी झालरपाटन को पार्टी की झोली में ले आएंगे.
इन सीटों के अलावा, उदयपुर और नाथद्वारा सीट पर भी हाईप्रोफाइल मुकाबला है. उदयपुर में कांग्रेस ने गृहमंत्री गुलाब चंद कटरिया के खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास को मैदान में उतारा है. नाथद्वारा में, राजस्थान कांग्रेस के पूर्व प्रमुख डॉ. सी.पी. जोशी महेश प्रताप सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ का कहना है कि हालांकि हमेशा ही हर सीट पर कड़ा मुकाबला होता है, लेकिन झालरपाटन, टोंक और सरदारपुरा में चुनावी लड़ाई बहुत दिलचस्प है. हालांकि, निर्वाचन क्षेत्रों पर पकड़, मतदाताओं का जातीय संयोजन, चुनाव प्रबंधन और अन्य कारकों पर विचार करते हुए संकेत यही हैं कि राजे, पायलट और गहलोत इन सीटों पर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से आगे हैं.
(लेखक एक फ्रीलांस राइटर हैं और 101Reporters.com के सदस्य हैं, जो जमीनी पत्रकारों का अखिल भारतीय नेटवर्क है.)
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