राजस्थान में लोग खाने में मिर्च ज्यादा पसंद करते हैं. मौसम कैसा भी हो अगर खाने में मिर्च कम रह जाती है तो राजस्थानियों के खाने का जायका फीका रह जाता है. ये कहना भी गलत नहीं होगा कि राजस्थान के लोगों को तीखा खाना ज्यादा पसंद है. ऐसे में ये खाने के अलावा तीखापन कई बार यहां के लोगों के मिजाज में भी देखने को मिल सकता है.
पिछले कई दशकों से हर पांच सालों में राजस्थान के लोग चुनाव में ये तीखापन मौजूदा सरकार को भी दिखाते हैं. सत्ता में कोई भी हो अगर कुछ बात जनता को चूभ गई या वादा खिलाफी मौजूदा सरकार ने दिखाई तो ये जनता उनके लिए मिर्ची से भी ज्यादा तिखी साबित होती है. राजस्थान में इस साल 2018 का विधानसभा चुनाव नजदीक है और सत्ता में फिलहाल 2013 के विधानसभा चुनाव से बीजेपी के शासन में वसुंधरा राजे सरकार काम कर रही है.
लेकिन पांच साल में ही राजस्थान की जनता वसुंधरा सरकार से भी नाता तोड़ने को आमादा हो चुकी है. जिसके कारण इस बार वसुंधरा राजे की सरकार की भी राजस्थान से विदाई होने की बात सामने आने लगी है. पांच सालों के अपने कार्यकाल में वसुंधरा सरकार के जरिए कई ऐसे फैसले लिए गए जिससे समाज के कई वर्गों को 'मिर्ची' लगी. जिसके कारण चुनावी दंगल में वसुंधरा सरकार की जमीन दरकती हुई नजर आने लगी है. ऐसे में इस बार वसुंधरा राजे का अपनी सरकार को बचा पाना भी मुश्किल दिखाई दे रहा है.
राजस्थान बना 'हड़तालिस्तान'
वसुंधरा सरकार के इस बार काफी वोट कटते हुए दिखाई दे रहे हैं क्योंकि राजस्थान का कर्मचारी वर्ग भी मौजूदा सरकार से नाराज देखा गया है. इस नाराजगी के चलते अपनी मांगें मनवाने के लिए राजस्थान में काफी हड़तालें भी हुई. वसुंधरा सरकार में दफ्तर सूने दिखाई दिए तो कर्मचारी वर्ग जयपुर में विधानसभा-सचिवालय के आसपास तंबू लगाए धरने पर बैठे ज्यादा नजर आए. इन कर्मचारी वर्ग की अगर गिनती की जाए तो मंत्रालय के कर्मचारी, आशा कर्मचारी, बिजली कर्मचारी, पशु अस्पतालों के कर्मचारी, पंचायती राज कर्मचारी, सहकारी बैंक कर्मचारी, रोडवेज बसों के कर्मचारी, नर्स और लैब टेक्नीशियन से लेकर सब लोग हड़ताल पर थे. लेकिन वसुंधरा सरकार ने इन हड़ताल करने वालों की एक न सुनी.
ऐसे में लगभग सभी वर्ग के कर्मचारियों को खाली हाथ ही बैठना पड़ा. अब इन नाराज कर्मचारियों का गुस्सा विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ देखा जाए तो अचंभा नहीं होना चाहिए. इतिहास पर अगर गौर किया जाए तो साल 2013 में कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी देखी गई थी.
बगावत पर नेता
200 विधानसभा सीटों वाले राजस्थान में इस बार बीजेपी के अंदर काफी आंतरिक नाराजगी भी देखी गई. इसके चलते बीजेपी के पूर्व नेता और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह ने बीजेपी का दामन छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया. वे काफी समय से बीजेपी से नाराज चल रहे थे.
वहीं अब उन्हें झालरापाटन से सीएम वसुंधरा के खिलाफ मैदान में कांग्रेस की टिकट पर चुनावी रण में उतारा गया है. वहीं दूसरी तरफ इस बार बीजेपी ने टिकट बंटवार को लेकर कई मौजूदा विधायक और बड़े नेताओं का टिकट काट दिया. राजस्थान में इस बार मौजूदा बीजेपी विधायकों में से करीब आधों को ही टिकट मिला है. इसके अलावा इस बार बीजेपी ने करीब आधी सीटों पर नए चहरों पर दांव खेला है तो कुछ सीटों पर पिछली बार चुनाव लड़े उम्मीदवारों के रिश्तेदारों को टिकट दिया है.
इसके कारण कई नेता पार्टी के खिलाफ बगावत पर उतर आए हैं. कई नेताओं ने तो बीजेपी से अपना इस्तीफा तक भी दे दिया है. राजस्थान सरकार में मंत्री और जैतारण से विधायक सुरेंद्र गोयल, महुआ से विधायक और सरकार में संसदीय सचिव ओमप्रकाश हुड़ला, अलवर के रामगढ़ से विधायक ज्ञानदेव आहूजा जैसे कई बड़े नामों की नाराजगी का असर भी इस बार बीजेपी के खिलाफ चुनाव में देखा जा सकता है.
आनंदपाल एनकाउंटर
वसुंधरा राजे की सरकार में गैंगस्टर आनंदपाल सिंह का एनकाउंटर हुआ. इस एनकाउंटर के होते ही राजस्थान के राजपूत वसुंधरा के विरोध में आ गए क्योंकि आनंदपाल सिंह राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखते थे और राजपूत वर्ग की नजरों में आनंदपाल सिंह काफी महत्व रखते थे. हालांकि कानून की नजरों में आनंदपाल सिंह एक अपराधी के तौर पर देखे गए.
आनंदपाल सिंह का खौफ सिर्फ राजस्थान में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तक भी था. उस पर खतरनाक हथियार रखने के साथ ही लूट, डकैती और हत्या के कई मामले दर्ज थे. लेकिन वसुंधरा सरकार में जून, 2017 को पुलिस के साथ मुठभेड़ में आनंदपाल सिंह मारा गया और कुख्यात अपराधी के लिए राजपूत समाज के लाखों लोग एक हो गए.
राजस्थान में चारों ओर हिंसा फैल गई. राजपूत समाज राज्य में बीजेपी शासन को इसके लिए दोष देने लगा. ऐसे में इस बार विधानसभा चुनाव में आनंद पाल सिंह एनकाउंटर को ध्यान में रखकर ही राजपूत वर्ग वोट देने जाएगा और हो सकता है कि चुनाव में ये समाज अपनी नाराजगी भी वसुंधरा सरकार के खिलाफ दिखा दे.
किसान भी खफा
नौकरीपेशा लोग जहां राजस्थान में हड़ताल करते दिखाई दिए तो किसान भी चुप रहने वालों में से नहीं है. किसानों का गुस्सा भी मौजूदा सरकार के खिलाफ काफी देखा गया है. फसलों का सही मूल्य न मिलने के कारण भी किसानों ने सरकार से इसके लिए काफी गुहार लगाई.
लेकिन किसानों की मानें तो सरकार की उनके प्रति बेरुखी ही देखी गई. किसानों के मुताबिक फसलों के सही मुल्यों के अलावा बैकों से लिए कर्ज, पानी, बिजली तक कई दिक्कतों का सामना मौजूदा सरकार में किया गया लेकिन इन समस्यों का हल अभी तक नहीं मिला. ऐसे में किसान भी इस बार वसुंधरा सरकार के खिलाफ जाते हुए दिखाई दे रहे हैं.
हर 5 साल में सरकार बदलने का क्रम
राजस्थान एक ऐसे प्रदेश के तौर पर अपनी पहचान बना चुका है जहां हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन हो जाता है. यहां पांच साल तक एक पार्टी का शासन होता है तो अगले पांच साल तक किसी और का राज देखा जाता है.
ऐसे में संभावनाएं जताई जा रही है कि इस बार भी ये सिलसिला बना रहेगा क्योंकि वसुंधरा सरकार में काफी लोग नाखुश नजर आए और हो सकता है कि 2018 विधानसभा चुनाव में राजस्थान में मौजूदा बीजेपी सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ जाए. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस को इसका फायदा होगा और राजस्थान में बीजेपी की जगह किसी और का शासन देखा जा सकता है.
आंकड़ों में कांग्रेस को बढ़त
राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले कई सर्वे कराए गए हैं. इन सर्वों के आधार पर राज्य में कांग्रेस को बढ़त लेते दिखाया गया है. ऐसे में इन आंकड़ों के कारण भी राज्य में बीजेपी बैकफुट पर नजर आ रही है.
सेंटर फॉर वोटिंग ओपिनियन्स ऐंड ट्रेंड्स इन इलेक्शन रिसर्च (सी-वोटर) में विधानसभा चुनावों से पहले एक ओपिनियन पोल में कांग्रेस को राजस्थान में 145 सीटों के साथ भारी बहुमत मिलने की बात की गई है. अनुमान के मुताबिक बीजेपी को 45 सीट मिलने की बात कही गई है. साथ ही कांग्रेस को 47.9 फीसदी तो बीजेपी को 39.7 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है.
हालांकि इस दौरान बीजेपी का कहना है कि राजस्थान में उनकी फिर से सरकार बनेगी. राजस्थान में अगर नेताओं की मानें तो वहां 'वसुंधरा ही बीजेपी है और बीजेपी ही वसुंधरा' हैं.
लेकिन नेताओं के ये नहीं भूलना चाहिए कि जनता ही जनार्दन है और हमेशा एक वोट भी सरकार बनाने और गिराने के लिए काफी साबित होता है. वहीं सीएम वसुंधरा से लोगों की नाराजगी इतनी बढ़ चुकी है कि राजस्थान में एक नारा हर जगह गूंज रहा है और वो नारा है 'मोदी तुझसे बैर नहीं, रानी तेरी खैर नहीं!'
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