चर्चा फिर छिड़ी है कि कांग्रेस अध्यक्ष का ओहदा मां सोनिया गांधी की जगह बेटे राहुल गांधी संभालने जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि ऐसा अक्टूबर 2017 में हो सकता है जब देश की सबसे पुरानी पार्टी मौजूदा शेड्यूल के मुताबिक केंद्र और सूबाई स्तर पर अपने संगठन के भीतर होने वाले चुनावों का चरण पूरा कर चुकी होगी.
यहां एक बात पहले ही बताते चलें कि गांधी-नेहरू परिवार के घनिष्ठ और कांग्रेस की केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एके एंटनी ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि संगठन के चुनावों के पूरे होने और राहुल गांधी के पार्टी के अध्यक्ष पद पर बैठने के बीच कोई रिश्ता नहीं है. कांग्रेस पार्टी के संविधान के मुताबिक केंद्रीय कार्यकारिणी चाहे तो किसी भी वक्त पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए किसी का नाम प्रस्तावित कर सकती है.
राहुल गांधी पार्टी की बागडोर थामने की तैयारी में
कांग्रेस को अपने संगठन के चुनाव साल 2017 के खत्म होने के पहले पूरे करने होंगे. यह काम 2016 के दिसंबर में ही हो जाना था लेकिन पिछले साल पार्टी ने चुनाव आयोग से कहा कि संगठन के चुनावों के लिए एक और साल का वक्त दिया जाए.
संगठन के चुनावों की घोषणा के कारण नए सिरे से अटकलें लगाई जा रही है कि राहुल गांधी अब तैयार हो रहे हैं और पार्टी की बागडोर मां सोनिया गांधी के हाथ से उनके हाथ में आने वाली है.
अफवाहों का बाजार तो 2011 से ही गर्म है जब खबर आई थी कि सोनिया गांधी किसी अज्ञात बीमारी के इलाज के लिए विदेश चली गई हैं. इस परिवार के वफादार बहुत सारे नेता-कार्यकर्ता बारबार मांग करते रहे हैं कि राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष पद दिया जाए और बदले में राहुल गांधी कहते रहे हैं कि अभी कुछ दिन और इंतजार कीजिए.
आम जनता के दिलो-दिमाग में ना सही, राजनीति के अध्येताओं और कांग्रेसी कुनबे के ख्याल से ही सही लेकिन साल दर साल मीडिया ने इस मुद्दे को प्रासंगिक बनाए रखा है.
इन गुजरे सालों में पार्टी के रणनीतिकार सही अवसर की तलाश करते रहे हैं ताकि पार्टी के अध्यक्ष पद पर राहुल की शुरुआत धमाकेदार जान पड़े. लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि बीते कुछ सालों से कांग्रेस का सितारा गोते पर गोते खाता जा रहा है.
सोनिया गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर 1998 यानी 19 सालों से हैं जो कि अपने आप में कीर्तिमान है. यह उपलब्धि तो उनके प्रसिद्ध परिवार के पुरखों जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी तक को नसीब ना हुई.
लेकिन अब लगता है राहुल गांधी को कांग्रेस के सबसे उंचे ओहदे पर बिठाने के विचार का समय आ गया है.
पिछले साल नवंबर में सोनिया गांधी की गैर-मौजूदगी में जब राहुल गांधी ने कांग्रेस की केंद्रीय कार्यकारिणी की सदारत की तो कार्यकारिणी से पुरजोर मांग उठी और सर्वसहमति से प्रस्ताव पारित हुआ कि हजारों कांग्रेस कार्यकर्ताओं की दिली ख्वाहिश को देखते हुए राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए. यह प्रस्ताव मनमोहन सिंह की तरफ से पेश हुआ और प्रस्ताव का समर्थन करने वाले थे ए के एंटनी.
संयोग देखिए कि यह पहला अवसर था जब पार्टी ने न सिर्फ राहुल गांधी के अध्यक्ष पद पर अभिषेक की बात कही बल्कि इस आशय का एक प्रस्ताव भी पारित कर दिया.
तकनीकी तौर पर देखें तो कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में राहुल का नाम कांग्रेस कार्यकारिणी के प्रस्ताव के पारित होने के बाद लिया जाना चाहिए लेकिन पार्टी की मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी चूंकि बैठक में मौजूद नहीं थी सो प्रस्ताव तब तक अमल में नहीं आ सकता जब तक पार्टी अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी यह मंजूरी ना दे दें कि राहुल गांधी उनकी जगह अध्यक्ष पद का ओहदा संभालेंगे. उस वक्त से यह मामला सोनिया गांधी की मंजूरी की बाट जोह रहा है.
पिछले एक साल में तीन चीजें बदली हैं
पहली तो यह कि राहुल गांधी खुद ही कह रहे हैं कि वे भगवद् गीता और उपनिषद पढ़ रहे हैं. हालांकि वे आरएसएस और बीजेपी की मजबूत चुनौती का सामना करने के लिए दो हजार साल पुराने प्राचीन भारतीय ग्रंथ का पाठ कर रहे हैं लेकिन एक तथ्य यह भी है कि इन ग्रंथों में शासक या नेता या फिर योद्धा के कर्म पर जोर दिया गया है. हो सकता है, इन ग्रंथों को पढ़ लेने के बाद राहुल को लगे कि उन्हें पार्टी के नेताओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए अध्यक्ष पद संभाल लेना चाहिए जो गांधी खानदान में पैदा होने के कारण उन्हें विरासत में मिला है.
दूसरे यह कि कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं ने हार को स्वाभाविक और जीत को एक अपवाद स्थिति मानकर आत्मसात कर लिया है.
राहुल ने पार्टी को लोकसभा, विधानसभा, नगरपालिका और पंचायत के चुनावों में लगातार हार के घाव दिए हैं लेकिन पार्टी के नेता और कार्यकर्ता इस बात से अब परेशान नहीं होते. पिछले साल के चुनाव में कांग्रेस ने असम और केरल में सत्ता गंवाई. इस साल पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु में उसका प्रदर्शन लचर रहा और यूपी तथा उत्तराखंड में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, गोवा और मणिपुर में उसने मौका दिया कि बीजेपी जीत को उसके जबड़े से खींच ले जाए.
ऐसा लगता है राहुल गांधी के लिए हार ही कामयाबी का मंत्र बन गया है. कांग्रेस की हर हार के साथ राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने की मांग जोर पकड़ती है.
पार्टी के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया ने पटना में मीडिया से कहा कि संगठन के चुनाव जल्दी ही पूरे हो जाएंगे और राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाएगा. उन्होंने कहा कि 'हमलोग अंदरूनी चुनावों की तैयारी में लगे हैं. पार्टी के कार्यकर्ता राहुल गांधी को बड़ी भूमिका में देखना चाहते हैं. एक बार प्रांतों में संगठन के चुनाव पूरे हो जाएं तो राहुल को भी पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित किया जाएगा. साल के आखिर तक यह काम पूरा हो जाएगा.'
पुनिया यूपी के दलित नेता हैं, उन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता है.
तीसरी बात यह कि सोनिया गांधी की सेहत अच्छी नहीं चल रही. दरअसल, उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर दिखाई देना बहुत कम कर दिया है. तीन महीने पहले पांच राज्यों यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनाव हुए लेकिन सोनिया गांधी इनमें से किसी राज्य में नहीं गईं. इनमें से किसी भी राज्य में उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ एक भी बैठक ना की, एक भी जनसभा को संबोधित नहीं किया.
क्या इन परिस्थितियों में राहुल गांधी पार्टी का भार संभालेंगे
डीएमके के बुढ़ाते मुखिया एम करुणानिधि के जन्मदिन के उत्सव में भी सोनिया शरीक नहीं हुईं जबकि इसमें ज्यादातर विपक्षी नेता शामिल हुए थे. सोनिया की भरपाई करने राहुल गांधी चैन्नई पहुंचे थे.
हालांकि सोनिया गांधी ने विपक्ष के कुछ नेताओं के साथ निजी मुलाकात की है और पार्लियामेंट एनेक्सी में हाल ही में उन्होंने विपक्षी नेताओं को भोज पर भी आमंत्रित किया था. कोशिश थी कि विपक्ष का एका कायम करते हुए एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के विरुद्ध विपक्षी दलों की तरफ से एक साझा उम्मीदवार खड़ा किया जा सके. लेकिन अब वे उतनी सक्रिय नहीं हैं जितना कि पहले हुआ करती थीं. सत्ताधारी एनडीए ने राष्ट्रपति के चुनाव के लिए अभी ही 55 फीसदी वोट जुटा लिए हैं और विपक्ष के उम्मीदवार की हार तयशुदा है.
मां सोनिया बेटे राहुल गांधी के हाथ में साल के आखिर तक पार्टी की प्रधानी थमा सकती है, ऐसा पीएल पुनिया ने कहा भी है. लेकिन यहां पर एक पेंच फंसता है. हिमाचल प्रदेश और गुजरात में साल के अंत में चुनाव होंगे और बहुत संभव है कांग्रेस को इन चुनावों में हार मिले.
क्या राहुल गांधी एक ऐसी घड़ी में पार्टी का शीर्ष पद संभालेंगे जब पार्टी के भीतर उनके लिए चारों तरफ नकार का भाव होगा? कोई नहीं जानता कि इन हालात में राहुल किस तरह आगे कदम बढ़ाएंगे. इन दिनों वे गीता पढ़ रहे हैं, शायद गीता पढ़ने से उन्हें इसके बारे में कुछ ज्ञान मिले.
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