2014 के लोकसभा चुनावों के समय राहुल गांधी के दिए गए इंटरव्यू का वीडियो आज भी इंटरनेट पर लोकप्रिय है. इसके लोकप्रिय होने के पीछे एक वाजिब कारण भी है. दरअसल इंटरव्यू के दौरान अन्य चीजों के अलावा राहुल गांधी एक उस छात्र की तरह से सवालों के जवाब दे रहे थे जिसे केवल एक जवाब आता हो. उससे चाहे सवाल कोई भी क्यूं न पूछा जाए उसका जवाब एक ही हो. उस इंटरव्यू में राहुल से कई तरह के सवाल पूछे गए थे लेकिन अधिकतर का जवाब वो घुमा-फिराकर एक ही वाक्य में दे रहे थे और वो था महिला सशक्तिकरण.
लेकिन राहुल के मुंह से महिला सशक्तिकरण की बात को लोगों ने स्वीकार नहीं किया और उन्हें चुनावों में बुरी तरह से नकार दिया गया. वैसे तो ये घटना अब इतिहास बन चुकी है लेकिन राहुल गांधी ने चार साल बाद फिर से अपने इस पसंदीदा मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखी है. राहुल ने पीएम मोदी को लिखे गए एक पत्र में मांग की है कि संसद में महिलाओं को आरक्षण देना वाला बिल पास कराया जाए. उन्होंने अपने ट्वीट में भी प्रधानमंत्री के महिला सशक्तिकरण की प्रतिबद्धता को लेकर तंज करने वाली भाषा का इस्तेमाल किया है.
Our PM says he’s a crusader for women’s empowerment? Time for him to rise above party politics, walk-his-talk & have the Women’s Reservation Bill passed by Parliament. The Congress offers him its unconditional support.
Attached is my letter to the PM. #MahilaAakrosh pic.twitter.com/IretXFFvvK— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 16, 2018
राहुल गांधी को खुद इन सवालों का जवाब देना चाहिए
हालांकि राहुल गांधी के सामने महिला सशक्तिकरण को लेकर कुछ गंभीर सवाल हैं जिसका जवाब उन्हें देना चाहिए. तो चलिए शुरू करते हैं. राहुल गांधी ने खुद अपने पत्र में माना है कि बीजेपी ने महिला आरक्षण बिल का विरोध नहीं किया है. कांग्रेस सरकार ने 2010 में इस बिल को राज्यसभा में पास करा लिया था, उस समय भी इस बिल को बीजेपी ने पूरा समर्थन दिया था. चूंकि ये बिल संविधान संशोधन से जुड़ा हुआ है ऐसे में इस पर बड़े जनमानस की सहमति की अपेक्षा है. यही वो जगह है जहां पर राहुल गांधी से गंभीर रोल अदा करने की अपेक्षा की जाती है लेकिन अगर वो चाहते हैं तो.
इस बिल का विरोध समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जेडीयू के बगावती नेता शरद यादव जैसे लोग कर रहे हैं. इनकी मांग है कि ओबीसी और अल्पसंख्यक महिलाओं को भी आरक्षण मिले जैसे कि एससी और एसटी महिलाओं को दिया जा रहा है. इस पर लोगों के अलग-अलग विचार हैं. क्यों नहीं राहुल गांधी पहले अपने महागठबंधन के साथियों के साथ मिलकर एक राय कायम करते हैं? लेकिन इसकी जगह वो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर अलग अलग दलों को एकजुट करने में लगे हुए हैं. इससे कुछ शोर शराबे के अलावे होना जाना कुछ है नहीं. अगर राहुल गांधी के लिए महिला आरक्षण सच में उनके हृदय के करीब है तो इस मामले को उन्होंने क्यों नहीं संसद के मानसून सत्र के लिए एक सूत्री एजेंडा बनाया? ऐसे में लगता नहीं है कि महिला आरक्षण पर राहुल गांधी की मंशा ईमानदारी से बिल को पास कराने की है.
कांग्रेस की कार्यसमिति में बस गिनी-चुनी महिलाएं
अभी 17 जुलाई को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस वर्किंग कमिटी का पुर्नगठन किया है. कांग्रेस अध्यक्ष को चाहिए था कि इस मुद्दे पर गंभीरता और प्रतिबद्धता दिखाने के लिए महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने की शुरुआत वो अपनी पार्टी से ही करते. लेकिन देखिए, कांग्रेस पार्टी के लिए निर्णय लेने वाली सर्वोच्च कमिटी सीडब्ल्यूसी के 51 सदस्यों में से केवल 6 महिलाएं हैं. महिलाओं के इस प्रतिनिधित्व के अनुसार सीडब्ल्यूसी में महिलाओं की संख्या केवल 12 फीसदी है. इसका मतलब साफ निकलता है कि राहुल गांधी का ट्वीट केवल दिखावे और जनता को भरमाने के लिए ही है और उससे खुद राहुल गांधी को और कांग्रेस पार्टी को कुछ लेना-देना नहीं है.
कांग्रेस की युवा छात्र ईकाई एनएसयूआई का अध्यक्ष सीडब्ल्यूसी का विशेष आमंत्रित सदस्य होगा. वर्तमान में फिरोज खान एनएसयूआई के अध्यक्ष हैं. लेकिन इन्हीं फिरोज खान पर एक महीने पहले एक महिला सदस्य ने सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाया है. पार्टी ने आंतरिक जांच का वादा किया था लेकिन उसमें अब तक कुछ निकलकर नहीं आया है. ऐसी परिस्थिति में आरोपित व्यक्ति को साथ में रखना दुर्भाग्यपूर्ण है खास करके उस व्यक्ति के लिए जो कि खुद को महिला हितों का रक्षक होने का दावा करता है.
कांग्रेस के नेताओं पर महिलाओं से छेड़छाड़ का आरोप
राहुल गांधी ने 2014 में दिए गए एक इंटरव्यू में कहा था कि महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं के कांग्रेस में काम का करने का अनुभव अच्छा रहा है. लेकिन ये समय-समय पर साबित होता रहा है कि महिलाओं के लिए कांग्रेस में काम करना सुरक्षित नहीं रहा है. अभी जुलाई के पहले सप्ताह में कांग्रेस सोशल मीडिया सेल की पूर्व कर्मचारी ने पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी चिराग पटनायक के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है. पूर्व महिला कर्मचारी ने आरोप लगाया है कि कार्यस्थल पर पटनायक ने उनके साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया है. कार्यस्थल यानी शायद कांग्रेस के दफ्तर में उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया है. उन्होंने कांग्रेस की सोशल मीडिया इंचार्ज दिव्या स्पंदना पर भी आरोप लगाया है कि दिव्या ने भी उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया और उनकी शिकायत पर ध्यान नहीं दिया.
हाल ही में कांग्रेस पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया. इस सेमिनार में शामिल होने आई एक महिला कार्यकर्ता ने खड़े होकर अपनी दर्द भरी दास्तां सबके सामने साझा की. इस महिला ने कांग्रेस पार्टी के अंदर महिला कार्यकर्ताओं की दुर्दशा का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया. जैसे कि इस घटना की टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्टिंग की है उसके अनुसार इस महिला ने सेमिनार में कहा कि 'यूथ कांग्रेस के एक नेता ने (जिसका नाम उन्होंने नहीं लिया) मुझे देर रात तक रुकने के लिए कहा और बाद वो मेरे सामने नशे की हालत में आया. उस नेता ने मेरे साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश की और जब मैंने इसका विरोध करते हुए उसे धक्का दिया तो उसने मुझसे माफी मांग ली.' राहुल गांधी को अपनी कांग्रेस पार्टी की ऊपर जिक्र किए गए महिला कार्यकर्ता अनिता गुंजल की कही बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत है. अनीता ने कहा कि पार्टी में उनके पुरुष सहयोगी चाहते हैं कि महिलाएं हमेशा आकर्षक लगें. राहुल को इस शिकायत पर संज्ञान लेने की जरूरत है. अब अगर महिलाओं का पार्टी में ये हाल है तो ये अंदाजा लगाना लोगों के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं है कि पार्टी अध्यक्ष महिलाओं की स्थिति को लेकर कितने गंभीर होंगे.
इसके अलावा कई मौकों पर ये भी दिखा है कि कांग्रेस ने महिला अधिकारों के खिलाफ किस तरह से स्टैंड लिया है. ट्रिपल तलाक का मामला ऐसा ज्वलंत उदाहरण है. कांग्रेस पार्टी ने तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं के पक्ष में खड़े होने के बजाए उन मौलवियों के पक्ष में खड़ा होना मुनासिब समझा जिन्होंने मध्यकालीन प्रथाओं की बेड़ियों से मुस्लिम महिलाओं को जकड़ रखा है. इसी वजह से जब राहुल गांधी ने महिला आरक्षण बिल पास कराने की मांग सरकार से की तो केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी राहुल से ट्रिपल तलाक बिल को पास कराने की मांग रख दी. रविशंकर प्रसाद ने तुरंत इस बात का प्रस्ताव कांग्रेस को दिया कि वो चाहें तो महिला आरक्षण बिल और ट्रिपल तलाक बिल दोनों को एक साथ इसी मानसून सत्र में पास करा लिए जाएं लेकिन इसके लिए जरूरी है कि कांग्रेस अपने सहयोगियों को भी इसके लिए तैयार करे.
जहां तक महिला सशक्तिकरण की बात है, राहुल गांधी खुद ही बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं जिससे कि महिलाओं की जिंदगी बेहतर हो सके, लेकिन इसकी तरफ का राहुल का झुकाव बहुत कम है. ऐसे में जरूरी है कि इस मसले पर राहुल दूसरों को उपदेश देने से पहले खुद जो कहते हैं उसे करके दिखाएं.
(इस लेख की लेखिका नई दिल्ली से बीजेपी की सांसद हैं और बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)
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