कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दो दिन के मालवा निमाड़ के दौरे पर हैं. उज्जैन में महाकाल के दर्शन के साथ राहुल मालवा निमाड़ के दौरे की शुरुआत कर रहे हैं. उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने हाजिरी लगाई तो अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी महाकाल से मन की मुराद मांगने पहुंचे हैं.
भगवान शिव के देश भर में मौजूद 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से गांधी परिवार की आस्था का भी इतिहास है. 1975 में इमरजेंसी लगाने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी सत्ता गंवाई थी. लेकिन 1979 में चुनाव से ऐन पहले इंदिरा ने महाकाल के दर्शन किए. कहा जाता है कि महाकाल के दर्शन के बाद ही इंदिरा की सत्ता में वापसी हुई. उसी इतिहास और चमत्कार को दोहराने के लिए राहुल गांधी भोले की शरण में हैं. कैलाश मानसरोवर की यात्रा से लौटे राहुल को कांग्रेस शिवभक्त कह कर प्रचारित कर रही है. लेकिन राहुल के दौरे के पीछे सिर्फ मंदिर का दर्शन ही नहीं है बल्कि इस दौरे से दूसरे सियासी आयाम भी जुड़े हुए हैं.
महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के साथ ही राहुल मालवा-निमाड़ अंचल में चुनाव प्रचार अभियान करेंगे. मालवा-निमाड़ अंचल में बीजेपी की खासी पकड़ मानी जाती है. लेकिन मालवा-निमाड़ अंचल में कांग्रेस की जड़ें भी पुरानी हैं. एक वक्त इसी अंचल ने कांग्रेस के कई दिग्गज नेता राज्य को दिए हैं. मालवा-निमाड़ में 66 विधानसभा सीटें आती हैं. इन सीटों के नतीजों का सीधा रिश्ता मध्यप्रदेश में सरकार बनाने से है. यही वजह है कि राहुल के मालवा-निमाड़ अभियान को लेकर कांग्रेस ने काफी तैयारी की है. राहुल गांधी इंदौर, उज्जैन, झाबुआ और खरगोन जिले में प्रचार करेंगे.
इंदौर के शहरी इलाकों में बीजेपी की पकड़ है. सुमित्रा महाजन, कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं के दबदबे वाले इलाके में कांग्रेस को महेश जोशी की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए नए चेहरों के साथ ही मतदाताओं के भरोसे की जरुरत है. ऐसे में राहुल औद्योगिक नगरी इंदौर में भी मतदाताओं से कांग्रेस के पुराने रिश्तों को जिंदा और मजबूत करने की कोशिश करेंगे. उज्जैन और खरगौन में भी कांग्रेस मजबूत रही है. राहुल यहां भी मतदाताओं में भरोसा पैदा करने तो अपने कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करने की कोशिश करेंगे.
झाबुआ में आदिवासियों के बीच एक वक्त कांग्रेस की गहरी पैठ हुआ करती थी. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सीधे इन इलाकों में आदिवासियों के साथ संवाद करते थे. जिस वजह से हाथ के पंजे का निशान आदिवासियों में लोकप्रिय था. राहुल गांधी अपने परिवार की पुरानी यादों के जरिए यहां आदिवासियों के बीच रिश्तों की भावुक कड़ी को जोड़ने का काम करेंगे.
पीएम मोदी के खिलाफ राहुल की आक्रमकता का कांग्रेस इस्तेमाल करना चाहती है. कांग्रेस को भरोसा है कि मोदी पर राहुल के तीखे हमलों से मालवा-निमाड़ अंचल के मतदाताओं पर असर पड़ेगा और यहां के 4 जिलों से पूरे मध्यप्रदेश में कांग्रेस के अनुकूल माहौल बन सकता है. दरअसल भोपाल, ग्वालियर और महाकौशल क्षेत्र में राहुल के प्रचार में उमड़ती भीड़ ने कांग्रेस में जोश भरने का काम किया है.
कांग्रेस एक तरफ राहुल को शिवभक्त कह कर प्रचारित कर रही है तो दूसरी तरफ राहुल से मोदी सरकार पर तीखे हमले करवा रही है. कांग्रेस को लग रहा है कि राहुल की इस आक्रामक शैली से प्रभावित होने की वजह से रैलियों और रोड शो में भीड़ उमड़ रही है.
महाकाल के दर्शन से पहले राहुल मां पीतांबरा देवी के दर्शन कर चुके हैं. राहुल के धार्मिक अवतार को लेकर बीजेपी आरोप लगा रही है कि राहुल चुनावी फायदे के लिए धार्मिक अवतार का ढोंग कर रहे हैं. बीजेपी के आरोपों पर कांग्रेस का सवाल है कि क्या शिव की भक्ति का अधिकार सिर्फ बीजेपी नेताओं को ही है. इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच कांग्रेस गुजरात और कर्नाटक के चुनाव प्रचार की तर्ज पर सॉफ्ट हिंदुत्व को लेकर आगे बढ़ रही है तो वहीं जरूरत पड़ने पर खुद को सवर्णों की हितैषी भी दिखाना चाहती है.
कांग्रेस मध्यप्रदेश में एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ लाए सरकार के अध्यादेश से उपजी नाराजगी को भुनाना चाहती है. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक राहुल सोशल इंजीनियरिंग के तहत परशुराम की जन्मस्थली भी जा सकते हैं. ब्राह्मण वोटरों को लुभाने के लिए राहुल का परशुराम जन्मस्थली में दौरा हो सकता है. एक तरफ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जन आशीर्वाद यात्रा जारी है तो दूसरी तरफ राहुल अपनी रैलियों और रोड शो के जरिए मध्यप्रदेश में 15 साल से सत्ता का वनवास झेल रही निर्जीव पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं.
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