राहुल गांधी परिवारवाद की राजनीति में बुराई नहीं देखते हैं क्योंकि उनके मुताबिक 'भारत में ऐसा ही होता है'. उन्होंने अपनी ताजातरीन बौद्धिकता का ये नजारा दुनिया की नामचीन यूनिवर्सिटीज में एक यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया, बर्कले में दिखाया. एक पखवाड़े के अमेरिकी दौरे में यह उनका पहला कार्यक्रम था.
वो अमेरिका में आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस के बारे में जानकारी लेने गए हैं. पिछले 20 दिनों में कांग्रेस उपाध्यक्ष का यह दूसरा विदेश दौरा है. नार्वे से आने के 10 दिन के बाद वो अमेरिका दौरे के लिए रवाना हुए.
राहुल गांधी के मुताबिक, परिवारवाद और परिवार के लोगों के विरासत संभालने की लंबी परंपरा है. राजनीति से लेकर फिल्म और उद्योग जगत में यह आम है. उन्होंने हैरानी जताई कि इस मुद्दे पर सिर्फ उनसे ही सवाल क्यों पूछे जाते हैं.
राहुल ने तीन राजनीतिक परिवारों का नाम लिया. इनमें से दो अखिलेश यादव (मुलायम सिंह यादव के पुत्र) और एम के स्टालिन (एम करुणानिधि के पुत्र) को अपने पिताओं से राजनीति विरासत में मिली है. राहुल गांधी भूल गए कि अखिलेश और स्टालिन उनके राजनीतिक सहयोगी हैं.
उन्होंने जिस तीसरे नेता का नाम लिया वो अनुराग ठाकुर (प्रेम कुमार धूमल के पुत्र) हैं. वो लोकसभा सांसद हैं. संसद, बीसीसीआई और बीजेपी संगठन में अच्छा काम करने के बावजूद उन्हें मोदी सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया. ऐसा इसलिए हुआ कि उनके पिता हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
क्या राहुल को परिवारवाद की राजनीति आम लगती है?
उन्होंने परिवारवाद पर इस तरह बात रखी कि भारत में पिता की विरासत संभालना मान्य परंपरा है. उन्होंने इसे इसे तीन बार दोहराया: भारत इसी तरह चलता है …इसी तरह पूरा देश चल रहा है …भारत में ऐसा ही होता है. इसके बाद उन्होंने कहा कि टसवाल ये है कि क्या वो शख्स काबिल है, संवेदनशील है.'
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गांधी-नेहरू खानदान का वंशज इसे लेकर निश्चिंत है कि वो कांग्रेस पार्टी की अगुवाई के लिए काबिल और संवेदनशील है. वो भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए पूरी तरह तैयार है. प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर उन्होंने कहा, 'मैं जिम्मेदारी के लिए पूरी तरह तैयार हूं (प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के लिए). लेकिन हमारी सांगठनिक प्रक्रिया है जो फैसला करती है और ये प्रक्रिया जारी है. यह फैसला कांग्रेस पार्टी को लेना है.' ये बयान कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ताओं को खुश करेगा कि उनका नेता अपनी मां सोनिया गांधी की विरासत संभालने को तैयार है. पार्टी में सत्ता की दोहरी व्यवस्था खत्म हो जाएगी.
अखिलेश को भी रिजेक्ट कर चुकी है जनता
राहुल ने सत्ता पर एक शासक के कुदरती अधिकार जैसा दावा किया है. लेकिन वो भूल रहे है कि 2017 के भारत ने परिवारवाद की राजनीति को खारिज कर दिया है. उसी तरह, जिस तरह 2014 के आम चुनाव में जनता ने कांग्रेस को खारिज कर दिया था. सीटों की संख्या सबसे कम होकर 44 पर आ गई थी. इससे कांग्रेस को लोक सभा में नेता विपक्ष का पद भी नहीं मिल पाया. इस साल उत्तर प्रदेश की जनता भी अखिलेश यादव को रिजेक्ट कर चुकी है. अखिलेश के नेतृत्व में यूपी विधान सभा में समाजवादी पार्टी के विधायकों की संख्या सबसे कम हो गई है.
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देश में तीन शीर्ष संवैधानिक पद पर बैठे लोग- राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जमीनी नेता हैं. उन्होंने खुद मेहनत कर यहां तक का सफर तय किया है. सरकार के चार शीर्ष मंत्रियों में कोई भी राजनीतिक परिवार से नहीं है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी सामान्य पार्टी कार्यकर्ता से इस पद तक पहुंचे हैं.
बीजेपी के पलटवार के बीच कांग्रेस के नेताओं को राहुल गांधी के बयान का बचाव भारी पड़ेगा. बीजेपी ने कई दूसरे मुद्दों पर भी राहुल को घेरा है. राहुल ने कहा कि जब उनकी पार्टी सत्ता में आई थी तो उनके पास 10 साल की योजनाओं का खाका था. लेकिन 2010-11 आते-आते इन योजनाओं ने काम करना बंद कर दिया, और 2012 के आसपास कांग्रेस पार्टी में अहंकार आ गया.
कांग्रेस का अहंकार उनकी वजह से
अब ये छिपी बात नहीं है कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री तो थे लेकिन उनके पास सत्ता नहीं थी. सरकार में असली सत्ता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास थी. साल 2012 के आखिरी महीनों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और एआईएमआईएम जैसी छोटी पार्टियां यूपीए से बाहर हो गई थी. इसके बाद केंद्र की यूपीए सरकार कांग्रेस की सरकार बन गई. इस तरह राहुल गांधी अहंकार के लिए खुद और सोनिया गांधी के अलावा किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते.
राहुल कहते हैं कि वो प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं. लेकिन कांग्रेस उनके सार्वजनिक जीवन से अचानक गायब होकर लंबे विदेश दौरों पर चले जाने का कैसे बचाव करेगी. जब कांग्रेस पार्टी विपक्ष की एकता पर काम कर रही थी और उसने किसानों के मुद्दे पर आंदोलन का ऐलान किया था, राहुल गांधी पहले अपने ननिहाल इटली गए. उसके बाद यूके और नॉर्वे गए. अब अमेरिका का दौरा कर रहे हैं.
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राहुल गांधी के दूसरे बयान भी बीजेपी को खूब भा रहे हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष ने पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आम चुनाव के वक्त के इस आरोप की पुष्टि कर दी कि 'यूपीए मां-बेटे की सरकार' थी. राहुल गांधी ने कहा कि: 'मैंने नौ साल तक जम्मू-कश्मीर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम, जयराम रमेश और दूसरों के साथ परदे के पीछे रहकर काम किया….जब हमने शुरू किया, कश्मीर में आतंक का राज था. जब हमने काम खत्म किया वहां शांति थी, हमने आतंकवाद की कमर तोड़ दी.' फिर उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि कैसे उन्होंने मनमोहन सिंह की सरपरस्ती की: 'मैंने पीएम मनमोहन सिंह को गले लगाया. उनसे कहा कि ये हमारी सबसे बड़ी सफलता है.'
राहुल क्या भारत की अच्छी छवि पेश कर रहे हैं?
पहली बार राहुल गांधी ने माना कि पीएम मोदी उनसे बेहतर कम्युनिकेटर हैं. उन्होंने कहा, 'श्री मोदी के पास कुछ कौशल हैं. वो बहुत अच्छे कम्युनिकेटर हैं. वो मुझसे बहुत अच्छे हैं.'
राहुल गांधी की कुछ बातें यहां और विदेश में रह रहे नागिरकों को चिंतित करेगी. विदेशी धरती पर राहुल ने भारत को एक ऐसा देश दिखाने की कोशिश की जहां 'लाखों लोगों को लगता है कि उनका अपने देश में भविष्य नहीं है, ये लोगों को अलग-थलग करता है और उन्हें रेडिक्लाइजेशन की तरफ बढ़ाता है.'
एक ऐसे पार्टी के नेता जिसने 60 साल तक देश पर शासन किया और फिर ऐसा करने की चाहत रखते हैं उन्होंने भारत की बुरी तस्वीर पेश करने की कोशिश की है, जहां मुस्लिम, दलित और उदारपंथियों को सताया या मारा जा रहा है. असहमति की किसी भी आवाज को सिर्फ इसलिए दबाया जा रहा है कि वो बीजेपी की विचारधारा से मेल नहीं खाती. राहुल गांधी के राजनीति की ये विशेष शैली है जो अपने ही देश को सबसे खराब जगहों का दर्जा देती है. विदेशी धरती पर प्रलय के दिन की तस्वीर पेश करता है.
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