कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी अब अध्यक्ष बनने की दहलीज पर खड़े हैं. इस बात की पूरी संभावना है कि अगले कुछ दिनों में वो देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष पद की बागडोर संभाल लेंगे. 13 साल पहले शुरू हुआ राहुल गांधी का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ावों से भरा रहा है.
इस समय देश में मौसम चुनावों है. हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. अब गुजरात की लड़ाई सामने है. ये देश की राजनीति के दो धुरंधरों की साख की लड़ाई है. इसमें एक ओर जहां नरेंद्र मोदी हैं तो उनके सामने युवा राहुल गांधी हैं. पिछले 22 साल से सत्ताधारी बीजेपी को उसके ही घर में पटखनी देने के लिए राहुल इस बार एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. वो न सिर्फ गुजरात की गलियों की धूल फांक रहे हैं बल्कि मंदिर-मंदिर जाकर भी भगवान को प्रसन्न करने की कोशिश कर रहे हैं.
आक्रमणकारी रूप के चलते बीजेपी खेमे में हलचल का माहौल
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पिछले 3 महीने से ज्यादा समय से गुजरात का लगातार दौरा कर रहे हैं. अपने बदले हुए अंदाज और आक्रामक तेवर से वो बीजेपी और नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोल रहे हैं. राहुल गांधी के आक्रमणकारी रूप के चलते बीजेपी खेमे में हलचल का माहौल है.
राहुल अगर कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं, जो लगभग पक्की बात मानी जा रही है, तो गुजरात के चुनाव उसके फौरन बाद होने हैं इसलिए वो इस लड़ाई को हर हाल में जीतकर न सिर्फ अपना परचम लहराना चाहते हैं. बल्कि अपनी पार्टी समेत सबको यह संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस में वो अपनी योग्यता और काबिलियत के चलते टॉप पर पहुंचे हैं न कि अपने सरनेम के चलते.
राहुल गांधी यह भली-भांति जानते हैं कि गुजरात चुनाव का असर 2019 के लोकसभा चुनावों पर पड़ेगा. इससे न सिर्फ देश की दशा और दिशा तय होगी बल्कि कांग्रेस और राहुल गांधी का भी राजनीतिक भविष्य तय होगा.
राजनीतिक परिवेश में पले-बढ़े राहुल गांधी
47 साल के राहुल गांधी को राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिता राजीव गांधी, दादी इंदिरा गांधी और नाना जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह के राजनीतिक परिवेश में राहुल पले-बढ़े हैं.
पिता राजीव गांधी की असमय मृत्यु के बाद 2003 से राहुल अपनी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ सार्वजनिक समारोहों और कांग्रेस की बैठकों, रैलियों में शरीक होने लगे. राहुल गांधी राजनीति में कदम रखेंगे इसका इशारा उन्हें उस समय दिया जब जनवरी 2004 में एक सभा के दौरान मीडिया के पूछने पर राहुल ने कहा, 'मैं राजनीति के खिलाफ नहीं हूं. मैंने यह तय नहीं किया है कि मैं राजनीति में कब आऊंगा और वास्तव में, आऊंगा भी की नहीं.'
2004 में राजनीति में उतरने का ऐलान, 2007 में बने कांग्रेस महासचिव
इसके दो महीने बाद, मार्च 2004 में राहुल गांधी ने राजनीति में आने का ऐलान किया और चुनाव लड़ने की घोषणा की. 2007 में राहुल कांग्रेस के महासचिव बनाए गए. 2007 में यूपी विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के एक उच्चस्तरीय अभियान में उन्होंने अहम रोल निभाया. हांलांकि कांग्रेस इस चुनाव में महज 8.53 फीसदी मतदान के साथ केवल 22 सीटें ही जीत सकी.
मई 2004 में हुए लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी अपने पिता की सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की. कांग्रेस के परंपरागत अमेठी सीट पर राहुल ने अपना पहला चुनाव 1 लाख वाटों के बड़े अंतर से जीता.
महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाके में जाकर कलावती का दर्द जाना
सांसद रहते हुए वर्ष 2008 में कांग्रेस उपाध्यक्ष महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त यवतमाल जिले के जालका गांव पहुंचे. यहां राहुल गांधी ने आत्महत्या करने वाले किसान की विधवा कलावती से मिलकर उनका दुखदर्द जाना. बाद में उन्होंने संसद को किसानों की आत्महत्या का दर्द समझाने के लिए कलावती का जिक्र किया. राहुल गांधी का दिया यह भाषण मीडिया में लंबे समय तक चर्चा में रहा. राहुल के इस बयान के बाद पूरा देश कलावती को जान गया. कलावती को लेकर राजनीतिक दलों के बीच चर्चा होने लगी.
राहुल के कमाल से 2009 में यूपी में मिली कामयाबी
2009 के लोकसभा चुनाव में राहुल अमेठी से 3 लाख से भी ज्यादा वोटों के अंतर से जीतकर सांसद बने. इन चुनावों में कांग्रेस अपने बलबूते यूपी में 21 सीटें जीतकर आई. कांग्रेस ने इस कमाल का श्रेय राहुल गांधी को दिया.
खुद को किसानों का हितैषी साबित करने के लिए भट्टा परसौल गए
साल 2011 में जब जमीन अधिग्रहण का मुद्दा छाया हुआ था. दिल्ली के पास ग्रेटर नोएडा में जमीन अधिग्रहण के उचित दाम को लेकर नाराज किसान आंदोलन कर रहे थे. राहुल गांधी खुद को और कांग्रेस को किसानों का हितैषी दिखाने के इरादे से मोटरसाइकिल पर सवार होकर ग्रेटर नोएडा के भट्टा परसौल पहुंच गए. यहां किसानों के साथ उनकी मिट्टी ढोते तस्वीरें सामने आईं. मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर यह तस्वीर काफी समय तक छाई रही.
मनमोहन सिंह की कैबिनेट में शामिल होने से इनकार
यूपीए-2 के अपने दूसरे कार्यकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राहुल गांधी को अपनी कैबिनेट में शामिल करना चाहते थे. उन्होंने राहुल से इस बाबत कई बार कहा लेकिन राहुल ने हर बार इससे इनकार किया.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में भ्रष्टाचार पर लाए गए अध्यादेश को फाड़ दिया
2013 में लालू यादव भ्रष्टाचार के आरोपों में अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए थे. कांग्रेस के रशीद मसूद को भी कोर्ट से सजा हो चुकी थी. यूपीए-2 सरकार भ्रष्टाचार के मामले में फंसे नेताओं के लिए चुनाव लड़ने का रास्ता खुला रखने के लिए एक अध्यादेश लेकर आई थी. इस अध्यादेश को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास भेजा गया था.
अजय माकन प्रेस कांफ्रेंस कर अध्यादेश की अच्छाई बता रहे थे तभी राहुल गांधी ने वहां प्रवेश किया और उन्होंने अध्यादेश की कॉपी फाड़ दी. राहुल ने कहा, 'यह अध्यादेश सरासर बकवास है और इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए'. राहुल की इस हरकत को साफ तौर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी सरकार की बेइज्जती समझा गया. इसे इस नजरिए से भी देखा गया कि राहुल के ऐसा करने के पीछे जनता में यह संदेश देना था कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के मुद्दे को बर्दाश्त नहीं करेगी.
'सत्ता जहर के समान है जो ताकत के साथ खतरे भी लाती है' बयान बनी सुर्खियां
जयपुर में कांग्रेस के तमाम बड़े नेता 2014 के आम चुनावों के लिए चिंतन-मनन करने जुटे थे. कांग्रेस के इस अधिवेशन में बतौर उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपने पहले भाषण में भावुक हो गए. राहुल ने कहा, 'बीती रात मेरी मां सोनिया गांधी मेरे पास आईं और कहा कि सत्ता जहर के समान है जो ताकत के साथ खतरे भी लाती है'. राहुल ने कहा कि सत्ता पर हर भारतीय का समान हक है, ऐसे में सत्ता की चाभी सिर्फ कुछ लोगों के हाथ में क्यों है. राहुल अपने इस भाषण को लेकर भी लंबे समय तक सुर्खियों में बने रहे.
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली सबसे बुरी हार
हालांकि, यह भी सच है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ा गया 2014 का चुनाव कांग्रेस के इतिहास का सबसे बुरा चुनाव साबित हुआ. 132 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी का ग्राफ केवल 44 पर आकर सिमट गया. इस नाकामी को राहुल गांधी की असफलता ठहराया गया. कांग्रेस की 10 साल पुरानी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा और जबरदस्त जीत के साथ नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने.
काले धन पर सरकार की है 'फेयर एंड लवली योजना'
साल 2016 के बजट सत्र में राहुल गांधी ने लोकसभा में कहा, 'सरकार ने एक नई योजना अनाउंस की. फेयर एंड लवली योजना. इस योजना में हिंदुस्तान का कोई भी चोर अपने काले धन को सफेद कर सकता है'. सत्ता पक्ष ने जब इसपर विरोध किया तो राहुल ने कहा था, 'अरे बोलने दो भैया, बोलने दो. मोदी जी की फेयर एंड लवली योजना आई है. काले पैसे को आप गोरा कर सकते हो.'
यूपी विधानसभा चुनाव में 'दो लड़के' नहीं दिखा सके अपना दम
इसी साल हुए उत्तर प्रदेश के चुनावों में राहुल गांधी ने अखिलेश यादव के साथ हाथ मिलाया. कहा गया कि यूपी के 'दो लड़के' चुनाव में कमाल कर दिखाएंगे और बीजेपी को पराजित करेंगे. राहुल ने पूरे राज्य का सघन दौरा किया. इसके लिए उन्होंने घूम-घूमकर किसानों के साथ खाट पर चर्चा कार्यक्रम किया. इसके पीछे उनका मकसद लगभग तीन दशकों से सत्ता से बाहर कांग्रेस को पुनर्जीवित कर चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना था. मगर समाजवादी पार्टी के साथ उनकी ये साझेदारी काम न आई. चुनाव में कांग्रेस की बुरी गत हुई और उसे मात्र 7 सीटें ही हासिल हो सकीं. उत्तर प्रदेश की नाकामी राहुल गांधी की गलतियों की फेहरिस्त में जुड़ गया.
नोटबंदी और जीएसटी को लेकर मोदी सरकार पर हमलावर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लागू किए गए नोटबंदी का राहुल गांधी ने सड़क से लेकर संसद तक जमकर विरोध किया. राहुल गांधी ने अपनी हर जनसभा में इसका जिक्र करते हुए मोदी सरकार पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार गरीबों से उनकी गाढ़ी मेहनत की कमाई को ले रही है और बदले में अमीरों का कर्ज माफ कर रही है. इसके अलावा राहुल जीएसटी का भी जिक्र करना नहीं भूलते. राहुल ने पिछले दिनों सूरत में गुजरात चुनाव के लिए प्रचार करते हुए जीएसटी की तुलना 'गब्बर सिंह टैक्स' से कर दी.
कांग्रेस के घमंड के चलते 2014 में मिली हार
सितंबर 2017 में राहुल गांधी ने अमेरिका का दौरा किया. यहां के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले में राहुल ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर कहा कि पार्टी अगर उन्हें जिम्मेदारी देगी तो वो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनेंगे. राहुल ने स्वीकार किया कि 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस शायद इसलिए हार गई क्योंकि पार्टी को घमंड हो गया था.
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