मध्यप्रदेश में बड़वानी से उठे बगावत के सुर और निशाने पर आए युवराज. ‘खून की दलाली’ के बयान पर बाहर बवाल मचा तो पार्टी के भीतर घमासान.
यूपी में कांग्रेस की खोई ज़मीन तलाश रहे राहुल के लिये पार्टी के भीतर ही सवाल खड़े किये जा रहे हैं.
बड़वानी जिला के कांग्रेस संगठन सचिव शैलेष चौबे ने फर्स्टपोस्ट से एक्सक्लूसिव बातचीत में राहुल गांधी के काम करने के तरीके पर सवाल खड़े कर दिए.
चाटुकारों से घिरे हैं राहुल
चौबे ने कहा कि 'राहुल गांधी चाटुकारों से घिरे हैं और यही चाटुकार उनका महिमामंडन करने में लगे रहते हैं.'
उन्होंने कहा, 'राहुल में काबिलियत नहीं है. लेकिन, उन्हें प्रधानमंत्री बनने का सपना दिखाया जाता है , जिसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है.'
कांग्रेस के राजनीतिक दांव पेंच को समझने वाले चौबे ने कहा, कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस का तब हुआ था जब सीताराम केसरी के हाथों में कांग्रेस की कमान थी.
लेकिन, तब बदलाव आते ही कांग्रेस आगे निकल गई. अब कुछ ऐसे ही बदलाव की जरुरत है.
30 साल से कांग्रेस में हैं चौबे
चौबे पिछले 30 साल से कांग्रेस को अपनी सेवा दे रहे हैं. वह कहते हैं, 'राहुल के कामकाज के तरीकों पर मैं काफी समय से सोच रहा था'
'मुझे लगता था कि वो धीरे-धीरे समझ जाएंगे. लेकिन, अब नहीं लगता कि वो कांग्रेस का भला कर पाएंगे.'
'वो देश की नब्ज नहीं टटोल पा रहे हैं. देश की जनता क्या चाहती है, कांग्रेस का कार्यकर्ता क्या चाहता है वो नहीं समझ पा रहे हैं.' राहुल पूरी यूपी में खाक छान रहे हैं. कांग्रेस की खोई जमीन वापस पाने के लिए पसीने बहा रहे हैं. लेकिन, चौबे उसी यूपी में उनके संसदीय क्षेत्र अमेठी का हाल बयां करने से भी गुरेज नहीं करते.
शैलेष चौबे खुलकर बोलते हैं ...
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'यह अलग बात है कि बीजेपी और पीएम की गलती से कांग्रेस को लीडरशिप का दोबारा मौका मिल जाए.'
'लेकिन, राहुल की लीडरशिप में यह मुमकिन नहीं है. अमेठी में 20 साल से वो नेता हैं, मेरी जानकरी में वहां भी कांग्रेस की साख कमजोर है.'
'अगर अमेठी का ये हाल है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि बाकी जगहों पर क्या होगा. ऐसे नेता को साइडलाइन हो जाना चाहिए इसी में कांग्रेस का भला है.'
'अगर राहुल वाकई में इंदिरा गांधी के पोते और राजीव गांधी के बेटे हैं तो उन्हें साइडलाइन हो जाना चाहिए.'
'कांग्रेस में ऐसी लीडरशिप है जो चाहे तो अगले दस साल में कांग्रेस को वहां पहुंचा सकती है जहां, इंदिरा और राजीव ने छोड़ा था.'
चौबे के मुताबिक, 'यूपी यात्रा खत्म करते हुए राहुल गांधी ने सर्जिकल स्ट्राइक पर ‘खून की दलाली’ वाला बयान देकर सब किए कराए पर पानी फेर दिया.
हालांकि चौबे सोनिया गांधी के मौत के सौदागर वाले बयान की तुलना राहुल के खून की दलाली वाले बयान से नहीं करना चाहते.
उनकी नजर में उस समय बात अलग थी...तब गुजरात में दंगे हुए थे. लेकिन, आज पाकिस्तान के मुद्दे पर सारा देश एक साथ है.
'ऐसे बयान से वो क्या मेसेज देना चाहते हैं. कांग्रेस नेशनल नहीं, इंटरनेशनल पार्टी है.'
'क्या वो यह मेसेज देना चाहते हैं कि पार्टी में फूट है. इस वक्त मोदी अगर कोई गलती भी कर रहे हैं तो उसे छुपाना चाहिए.'
टाल गए सवाल
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राहुल गांधी की निजी जिन्दगी के बारे में पूछे सवाल को चौबे टाल गए.
वैसे यह जरूर कहा, जब मैंने उनसे पूछा था कि शादी कब करेंगे तो उन्होंने कहा था, जल्दी ही करेंगे.
प्रियंका पर भी उनके रुख में कोई नरमी नहीं दिख रही है. 'हमने उन्हें परखा नहीं है, वो अच्छा बोलती हैं.'
'लेकिन, जब राजनीति में आएंगी तब पता चलेगा कि कैसे काम करती हैं. मैं कोई ज्योतिष तो हूं नहीं कि उनके बारे में बता दूं कि कैसी हैं.”
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर ऐसे तल्ख लहजे में शैलेष चौबे का सवाल उठाना कई सवाल भी खड़े करता है.
क्या शैलेष चौबे का कांग्रेस से मोह भंग हो चुका है. या फिर बीजेपी या किसी दूसरे दल में उनकी एंट्री की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है.
पत्ते नहीं खोलना चाहते चौबे
फिलहाल वो अपने पत्ते नहीं खोलना चाहते. लेकिन, यह जरुर कहते हैं, 'कांग्रेस जब निकालेगी तब देखेंगे कि क्या हो सकता है. मैं कांग्रस में हूं और रहूंगा.'
'बीजेपी या किसी दूसरी पार्टी में जाने के बारे में अभी तय नहीं किया है. बीजेपी से हमारा दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं है.'
कांग्रेस में रहकर गांधी-नेहरु परिवार के खिलाफ कुछ बोलने की हिमाकत करना आसान नहीं होता, कुछ मुद्दों पर नाराजगी होती भी है तो दबी जुबान से ही.
परिवार के खिलाफ अपनी नाराजगी का इजहार भी कार्यकर्ता खुलकर नहीं कर पाते.
क्योंकि, उन्हें भी मालूम है कि इसका अंजाम क्या होगा. लेकिन, कांग्रेस के आज के हालात को लेकर कुछ पुराने कार्यकर्ताओं के सब्र का बांध अब टूटने लगा है.
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