राजस्थान चुनावों में अपने उम्मीदवारों की लिस्ट कांग्रेस ने जारी कर दी है. काफी मशक्कत के बाद कांग्रेस ने सीटों पर उम्मीदवार तय किए हैंं. राजस्थान में सत्ता विरोधी बयार की वजह से एक सीट पर कई दावेदार थे. ऐसे में उम्मीदवार का चयन करना मुश्किल हो रहा था.
सचिन पायलट और कांग्रेस विधायक दल के नेता रामेश्वर डूडी के बीच तकरार भी हुई है. चुनाव के बाद सत्ता समीकरण हाथ में रखने के लिए विधायकों की संख्या मायने रखती है. कांग्रेस के बड़े नेता इस कोशिश में है कि ज्यादा टिकट समर्थकों को मिल जाए, ताकि मुख्यमंत्री बनने के खेल में उनकी दावेदारी मजबूत बनी रहे. इसलिए सभी बड़े नेता मैदान में उतरने के लिए बेताब थे.
राहुल का फार्मूला:
राजस्थान ऐसा राज्य है कि जहां कांग्रेस सत्ता के करीब है. सभी तरह के सर्वे यही बता रहे हैं. राज्य का मिजाज भी यही है. हर पांच साल पर सरकार बदल रही है. ऐसी सत्ता विरोधी लहर में भी कहीं चूक ना हो जाए, इसका ख्याल रखना जरूरी है. राहुल गांधी ने आपसी लड़ाई को कम करने के लिए कई बार सभी गुटों को बुलाकर बातचीत की है. लेकिन नतीजा नहीं निकला है. इस लिहाज से राहुल गांधी ने सभी गुट को खुद में उलझा दिया है. इन गुट के नेताओं को चुनाव मैदान में उतार दिया है. अब सब अपनी सीट के फिक्र में रहेंगें, भितरघात करने का वक्त नहीं मिलेगा. राजस्थान में एक ही चरण में चुनाव है, इसलिए यह काम और आसान हो गया है.
कौन मैदान में ?
राजस्थान की राजनीति में दो दशकों से अशोक गहलोत का पलड़ा भारी है. दो बार मुख्यमंत्री भी बने हैं. लेकिन तीसरी पारी खेलने के लिए बेताब हैं. इससे प्रदेश के मुखिया सचिन पायलट के खेमे में बेचैनी है. सचिन मान रहे थे कि मुख्यमंत्री वही बन रहे हैं. राहुल गांधी के करीबी होने से उनका दावा मज़बूत भी लग रहा था. लेकिन अशोक गहलोत अब रेस में उनसे भारी पड़ रहें हैं. दस जनपथ का आशीर्वाद उनके ऊपर है. गुजरात में बढ़िया चुनाव संचालन से राहुल के नज़दीक भी हैं. कर्नाटक में भी मुस्तैदी से लगे रहे, जिसका ईनाम चाह रहे हैं. ज़ाहिर है कि कांग्रेस के पुराने दिग्गजों का भी समर्थन उनको मिल रहा है.
सचिन पायलट और अशोक गहलोत के समर्थक एक दूसरे के खिलाफ काम नहीं कर पाएगें. सचिन पायलट को जीतने की जद्दोजहद करनी है. उनका फोकस अपनी सीट पर रहेगा. अगर चुनाव जीत गए तो दावेदारी और मज़बूत रहेगी. वहीं अशोक गहलोत को जीतने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी हैं. लेकिन गहलोत की रणनीति साफ है. विधायक दल की बैठक में वो मौजूद रहना चाहते हैं. गहलोत की मौजूदगी में उनके विरोधी भी खामोशी अख्तियार कर सकते हैं. क्योंकि खुलकर कोई विरोध करने से गुरेज़ करेगा.
जो और बड़े नाम मैदान में हैं वो सीपी जोशी हैं. एक ज़माने में राहुल के खासमखास बन गए थे. कई राज्यों के प्रभारी थे. यूपीए की सरकार में सड़क परिवहन जैसे मंत्रालय संभाल रहे थे. विधायक बनने की जद्दोजहद करेंगे, अब वजूद बचाने की चुनौती है. इनके और अशोक गहलोत के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. जब तक सीपी जोशी राहुल के आंख के तारे थे, तब तक अशोक गहलोत की दिल्ली दरबार में इन्ट्री नहीं हो पायी थी. लेकिन ब्राह्मण मतदाताओं को एकजुट कर सकते हैं.
इस तरह उदयपुर से गिरिजा व्यास मैदान में हैं. कई बार संसद की सदस्य थीं. यूपीए सरकार में मंत्री भी थीं. पॉलिटिकल लाइटवेट हैं, लेकिन वरिष्ठ नेता हैं. मुख्यमंत्री बनने की आस है. ज़ाहिर है कि किस्मत पर भरोसा करके मैदान में उतर रही हैं. वो अशोक गहलोत, सचिन पायलट की रार में समझौता कैंडिडेट के तौर पर उभर सकती हैं. दिल्ली में बड़े नेताओं का साथ है.
इसके अलावा मौजूदा सांसदों रघु शर्मा और करण सिंह यादव को भी विधानसभा का टिकट दिया गया है. पंजाब कांग्रेस के प्रभारी सचिव हरीश चौधरी भी मैदान में हैं. जो पूर्व सांसद हैं और जाट बिरादरी से आते हैं. लेकिन मानवेन्द्र सिंह को लोकसभा चुनाव लड़ना तय है तो हरीश चौधरी को विधानसभा का टिकट दिया गया है.
एक वोट ने महरूम किया:
2008 के विधानसभा चुनाव में सीपी जोशी आलाकमान के पंसदीदा उम्मीदवार थे. लेकिन सीपी जोशी की किस्मत ने साथ नहीं दिया और एक वोट से चुनाव हार गए. इससे अशोक गहलोत का रास्ता साफ हो गया. नतीजों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. बीएसपी और निर्दलीय विधायक अशोक गहलोत के साथ हो गए जिससे गहलोत दूसरी बार बाज़ी जीतने में कामयाब हो गए. सीपी जोशी को इस बात की कसक है. उनके समर्थक मानते है कि सीपी के हार की वजह गहलोत समर्थकों की बगावत थी.
कई पूर्व सांसदो को नहीं मिला टिकट:
हालांकि पार्टी के कई पूर्व सांसद टिकट मांग रहे थे. लेकिन कई को टिकट नहीं मिला है. मसलन महेश जोशी को टिकट नहीं मिला है. पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया के परिवार में किसी को टिकट नहीं मिल पाया है. कांग्रेस के पूर्व सचिव संजय बापना भी टिकट से महरूम रह गए हैं. हालांकि संजय बापना खेमेबाज़ी से बचते रहे हैं. इस बार भी इसकी कीमत चुकाई है.
बगावती सुर तेज़:
टिकट बंटने के बाद पार्टी के भीतर बगावती सुर तेज़ हो गया है. कई नेताओं के इस्तीफे की खबर है. इस तरह के बगावत को रोकने के लिए बड़े नेताओं को मेहनत ज्यादा करनी होगी. हालांकि पार्टी की तरफ से कहा जा रहा है कि सबसे मज़बूत उम्मीदवार को ही टिकट दिया जा रहा है. पार्टी ने कई स्तरीय सर्वे भी किया है. जिसके आधार पर टिकट दिया गया है. राहुल गांधी की टीम अलग से फीड बैक ले रही थी. लेकिन अंत में बड़े नेता अपने रिश्तेदारों और समर्थकों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे हैं.
सचिवों पर लगा करप्शन का आरोप:
राजस्थान में चार सचिव टिकट वितरण के लिए नाम शॉर्ट लिस्ट कर रहे थे. सभी सचिवों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है. कई पर मनमाने तरीके से नाम की संस्तुति करने की बात सामने आई है. कुछ लोगों की ऑडियो रिकॉर्डिंग भी राहुल गांधी को दी गयी थी. राहुल गांधी ने इन सबको पद से हटा दिया है. राजस्थान में अभी सत्ता विरोधी हवा चल रही है, लेकिन कांग्रेस का टिकट बंटने के बाद बीजेपी कड़ी टक्कर दे सकती है. कई बागी उम्मीदवार मैदान में ताल ठोक सकते हैं जिसका नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है.
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