संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने कहा है कि शीतकालीन सत्र के हंगामे की भेंट चढ़ जाने का जिम्मेदार विपक्ष है. फ़र्स्टपोस्ट के साथ खास बातचीत में मुख़्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि कांग्रेस मुक्त भारत की तरफ राहुल कांग्रेस को लेकर जा रहे हैं.
प्रस्तुत है संसदीय कार्य राज्य मंत्री और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी के साथ खास बातचीत के प्रमुख अंश.
फ़र्स्टपोस्ट: संसद का शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि सरकार के रवैये के चलते सदन की कार्यवाही नहीं हो पाई.
मुख़्तार अब्बास नक़वी: इसका कारण कांग्रेस का राजनीतिक पाखंड और इसके कई पार्टनर्स की अहंकार और अराजकता है. पहले दिन 16 नवंबर को जब संसद की शुरुआत हुई तो सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि हम हर मुद्दे पर डिस्कसन और डिबेट के लिए तैयार हैं.
राज्यसभा में जब चर्चा शुरू हुई तो हर पार्टी के लगभग नेताओं ने अपनी बात कही. कांग्रेस के आनंद शर्मा से लेकर मायावती जी, रामगोपाल यादव जी और सीताराम येचुरी जी ने बोला. यहां तक की पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी बोला.
उसके बाद दूसरे दिन हंगामा शुरू किया कि प्रधानमंत्री माफी मांगे तो किसलिए माफी मांगे भाई. क्या प्रधानमंत्री इसलिए माफी मांगे कि प्रधानमंत्री ने जो जंग छेड़ी है करप्शन और कालेधन के खिलाफ जिससे गरीबों और मजदूरों का सशक्तीकरण हो, इसके लिए यह माफी मांगना चाहते हैं.
भ्रष्टाचारियों को छूट दिलाना चाहते हैं. धनकुबेरों को क्लीन चिट दिलाना चाहते हैं. तो एक तरह से ऐसा माहौल इन लोगों ने बना दिया था.
हमें इस बात को अच्छी तरह से समझनी चाहिए कि करप्शन के कुनबे से कांग्रेस के इतने कंकाल निकलेंगे कि कांग्रेस का और कांग्रेस के युवराज का सारा गुणा भाग बिगड़ जाएगा.
फ़र्स्टपोस्ट-राहुल गांधी ज्यादा आक्रामक दिख रहे हैं. खासतौर से प्रधानमंत्री पर उनका हमला काफी बड़ा था. इस सत्र की बात करें तो ऐसा लगा कि राहुल लगातार सक्रिय रहे और विपक्षी खेमे का नेतृत्व कर अपनी पोजिशनिंग भी करते दिखे.
मुख़्तार अब्बास नक़वी -इसे कहते हैं बेवकूफी भरा ब्लैकमेल. बेवकूफों का ब्लैकमेल.
डेढ़ साल पहले इन्होंने ललित मोदी के मसले पर इसी तरह का झूठा, बेबुनियाद और अनर्गल आरोप लगाया था ललित मोदी और सुषमा स्वराज वाले मुद्दे पर और कहा था कि हमारे पास इतने तथ्य हैं कि वो सामने आएंगे तो तूफान आ जाएगा.
इसी तरह से संसद को नहीं चलने दिया था. इसके बाद हमने कहा था कि तथ्य रखो तूफान आए. तो उसके बाद संसद में ये बोले लेकिन, कुछ भी नहीं था. खोदा पहाड़ निकली चुहिया. तूफान आया जरूर आया, लेकिन, कांग्रेस में आया.
उसके बाद जितने चुनाव हुए चाहे वो विधानसभा, नगरपालिका, पंचायत या फिर उपचुनाव हुए हों, हर चुनाव में कांग्रेस का बचा-खुचा सुपड़ा साफ हो गया. यही तूफान आया.
हम चाहते थे कि ये बोले तो हम भी देखें कि कौन-सा भूचाल है वो. हमने उनके मुंह पर कोई पट्टी तो लगाई नहीं थी. हमने तो उनकी पार्टी के न बोलने वाले नेता हैं उन्हें भी बोलवाया. तो हमने कहां रोका मनमोहन सिंह जी को.
फ़र्स्टपोस्ट-तो क्या यह कांग्रेस की रणनीति रही कि मनमोहन सिंह जी के बोलने के बाद प्रधानमंत्री से माफी मांगने का मुद्दा उठा दिया और फिर आगे हंगामा होता रहा.
मुख़्तार अब्बास नक़वी - उनकी रणनीति थी कि हम अपनी बात सुनाएं, लेकिन, सुने न. हिट एंड रन की नीति कांग्रेस की थी. लेकिन, उनकी यह रणनीति एक्सपोज हो चुकी थी.
फ़र्स्टपोस्ट - यही वजह है कि आप लोगों ने फिर राहुल गांधी को लोकसभा में बोलने से रोका.
मुख़्तार अब्बास नक़वी - वो खुद ही बोलना नहीं चाहते थे. पहले तो कहा कि इस नियम से चर्चा करो. फिर वोटिंग कराओ तो चर्चा करो, फिर प्रधानमंत्री माफी मांगे तो चर्चा होगी. फिर जेपीसी बनाओ तो चर्चा होगी. हर दिन एक नई मांग, एक नया बहाना और एक नया फसाना.
फ़र्स्टपोस्ट - आखिरी तीन दिनों में सरकार का रुख भी काफी आक्रामक रहा. खासतौर से संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार काफी आक्रामक दिखे. अगस्टा वेस्टलैंड के मुद्दे पर उन्होंने चर्चा की मांग की, तो नोटबंदी के मूल मुद्दे से ध्यान भटक गया और हंगामा के चलते सदन नहीं चल पाया. इसलिए सवाल सरकार पर भी खड़े हो रहे हैं.
मुख़्तार अब्बास नक़वी: देखिए, अगस्ता का मुद्दा और कुछ नए खुलासे आए सामने. जब नए खुलासे आए सामने तो उस पर नोटिस दिया गया. जब नए खुलासे हुए तो उस पर चर्चा तो होनी ही चाहिए. भले ही एक घंटे दो घंटे जो भी हो. लेकिन, कांग्रेस कहने लगी कि इस पर नहीं होगी चर्चा. सबको मालूम है कि कांग्रेस के गले की हड्डी है अगस्ता.
फ़र्स्टपोस्ट: विपक्ष इसीलिए आरोप लगा रहा है कि जानबूझकर अगस्ता का मुद्दा उठा दिया और हंगामे के चलते नोटबंदी पर चर्चा नहीं हो पाई.
मुख़्तार अब्बास नक़वी - हमने कहां उठाया था अगस्ता का मुद्दा. अखबारों में आया, जो दलाल और बिचौलिए थे, उन्होंने यह बात की.
फ़र्स्टपोस्ट: जो हंगामा होता रहा उसको लेकर बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी काफी नाराज दिखे. उन्होंने दो-दो बार अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर कर दी थी.
मुख़्तार अब्बास नक़वी - आडवाणी जी बहुत वरिष्ठ नेता हैं. उनका बड़ा लंबा संसदीय अनुभव रहा है. निश्चित तौर पर विपक्ष और कांग्रेस की तरफ से जो कुछ हो रहा था, उससे वो चिंतित थे और चिंतित होना स्वाभाविक भी है.
उनका कहना था कि कितनी भी विपरीत परिस्थितियां हो, काम-काज होना चाहिए और काम-काज जब नहीं होता है तो दुख जरूर होता है.
फ़र्स्टपोस्ट - पहली बार आडवाणी जी की नाराजगी थी लोकसभा स्पीकर और संसदीय कार्यमंत्री की भूमिका को लेकर दूसरी बार उन्होंने तो इस्तीफे की बात तक कह डाली.
मुख़्तार अब्बास नक़वी - उनका जो गुस्सा और दुख है, मैं नहीं मानता कि अगर वो कहते कि विपक्ष सब जिम्मेदार है, सत्ता पक्ष जिम्मेदार नहीं है तो उनके जैसे स्तर के व्यक्ति के लिए सब ठीक नहीं होता.
इसलिए उन्होंने जो कहा हम मानते हैं कि हमारे लिए उनके शब्द मार्गदर्शन और संदेश हैं . यह विपक्ष के लिए भी संदेश और सबक है.
फ़र्स्टपोस्ट - लेकिन, एक छवि बनी आखिरी तीन दिनों में कि सरकार भी नहीं चाहती कि चर्चा हो. आखिर ऐसी छवि क्यों बनी.
मुख़्तार अब्बास नक़वी - नहीं, अगर हम चर्चा नहीं चाहते तो सदन पहले ही साइने-डाई या सत्र समाप्ती की घोषणा कर देते. लगातार कांग्रेस हंगामा करती रही तो हम समझ गए कि ये चलने नहीं देंगे. वाश आउट करेंगे.
फ़र्स्टपोस्ट - नोटबंदी के बाद देश भर में आम लोग परेशान हैं, लंबी कतारों में हैं, लेकिन, बड़े लोगों के यहां से कैश पकड़े जा रहे हैं. इससे लोग ठगा-सा महसूस कर रहे हैं. ऐसे में सरकार जनता को कैसे संतुष्ट कर पाएगी.
मुख़्तार अब्बास नक़वी - सरकार कार्रवाई तो कर रही है ना. हम मानते हैं कि परेशानी है, लेकिन, प्रधानमंत्री जी ने भी कहा कि कुछ दिन के बाद परेशानी धीरे-धीरे कम हो जाएगी. यह परेशानी एक बड़े उद्देश्य और बड़ी लड़ाई के लिए है.
फ़र्स्टपोस्ट - यूपी और बाकी राज्यों में विधानसभा का चुनाव होना है. नोटबंदी एक बड़ा मुद्दा बन रहा है. क्या सरकार और बीजेपी को चिंता हो रही है.
मुख़्तार अब्बास नक़वी - नहीं बिल्कुल नहीं, हमें इस बात की खुशी है कि नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व के प्रति लोगों को विश्वास और अटूट विश्वास है. यही विश्वास है कि इतनी बड़ी लाइन के बावजूद भी लोगों ने अपना धैर्य नहीं छोड़ा है.
दिक्कत है लेकिन दर्द नहीं है. क्योंकि लोगों को मालूम है कि इसका उद्देश्य पाक और साफ है. इसका उद्देश्य गरीबों की तरक्की और खुशी है. अच्छी बात है कि उत्तर प्रदेश का चुनाव भ्रष्टाचार, कुशासन और कालेधन के खिलाफ हो.
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