पंजाब में कांग्रेस ने बहुमत के साथ वापसी कर ली है. इस जीत का सारा श्रेय कैप्टन अमरिंदर सिंह को जाता है.
पंजाब में चुनाव-प्रचार के दौरान एक नारे ने पूरे चुनाव और राज्य में कांग्रेस की तस्वीर बदल दी. इस नारे ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को एक ब्रांड बना दिया. नारा था, ‘कैप्टन इज कांग्रेस एंड कांग्रेस इज कैप्टन.’
पार्टी की रणनीति और राहुल गांधी की भूमिका
यूपी और उत्तराखंड में साफ हो जाने के बाद कांग्रेस के लिए ये जीत राहत जैसी है. लेकिन इस जीत के बाद कांग्रेस पार्टी की रणनीतियों और राहुल गांधी की भूमिका पर बात करने की जरूरत है.
ऐसा लग रहा था कि आप पंजाब में अच्छा करेगी. कम से कम आवां और माझा में उम्मीद थी कि वो 8-10 सीटें जीतेगी. लेकिन वो भी नहीं हुआ.
आप का पंजाब में कोई अस्तित्व नहीं था. चूंकि अकाली दल से ऊब चुके हुए थे और आप को राज्य में नहीं आने देना चाहते थे. इसलिए वोटर कांग्रेस की ओर शिफ्ट हुआ. अकाली और बीजेपी की वैसे भी परफॉर्मेंस बुरी रही थी.
इस जीत का क्या मतलब है?
क्या ये जीत बस अमरिंदर सिंह की है, राहुल गांधी इस दृश्य में कहां आते हैं? पंजाब में इस बढ़त का कांग्रेस के लिए, पंजाब के लिए, राहुल गांधी के लिए और खुद कैप्टन अमरिंदर के लिए क्या मतलब है?
दरअसल, पंजाब में पूरा चुनाव कैप्टन अमरिंदर सिंह के नाम पर हुआ है. राहुल गांधी पंजाब में कहीं थे ही नहीं. अगर राहुल गांधी पंजाब में होते, तो कांग्रेस वहां भी हार जाती. कांग्रेस ने पंजाब में नए समीकरण और नई रणनीति के तहत काम किया. इसी रणनीति के तहत कैप्टन को लाया गया.
अमरिंदर सिंह के 10 साल पहले के कार्यकाल को देखते हुए लोगों ने उन्हीं में भरोसा जताया. साथ ही नवजोत सिंह सिद्धू के आने से भी कांग्रेस को फायदा हुआ.
उम्मीद थी कि राजस्थान से सटे हुए इलाकों में पार्टी अच्छा करेगी. अब समझ लीजिए कि कांग्रेस लास्ट ओवरों में हार्डहिटिंग करके अपने टारगेट पर पहुंच गई है.
मैंने पहले भी अपने एक लेख में कहा था कि अगर राजनीति को क्रिकेट मान लें तो राहुल गांधी का दर्जा उस एसोसिएट देश के जैसा है, जिसे विश्व कप में खेलने के लिए बुलाया गया हो.
ताजा चुनावों में उन्हें देखकर लगा कि वह इस राजनीति में फिट नहीं बैठते. वो बड़ी टीमों के इस टूर्नामेंट में भर्ती की टीम लगते हैं.
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