पिछले साल छह जनवरी को जैश-ए मोहम्मद के आतंकियों ने सोपोर में विस्फोट किया था. IED यानी इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस के इस्तेमाल से हुए विस्फोट में चार पुलिसकर्मी मारे गए थे. एक दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस वक्त जम्मू-कश्मीर के डीजीपी एसपी वैद से घटना के बारे में जानकारी मांगी थी. डीजीपी ने पीएम को बताया था कि बहुत समय बाद राज्य में IED ब्लास्ट हुआ है. प्रधानमंत्री का दूसरा सवाल था, ‘आतंकियों को उस एरिया में पुलिस मूवमेंट के बारे में पहले से कैसे पता चला.’
वैद का जवाब सामान्य था. उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया कि पुलिस रूटीन ड्यूटी पर थी. उस रोज अलगाववादियों ने बंद का ऐलान किया था. ऐसे में आतंकियों को अंदाजा होगा कि भारी तादाद में सुरक्षाकर्मी आएंगे. हालांकि उस उच्च स्तरीय बैठक में वैद ने प्रधानमंत्री को इसके बाद जो जानकारी दी, वो बेहद अहम थी. इस जानकारी से समझ आया कि घाटी में आतंकी हमलों का तरीका बदल रहा है. साथ ही, उनके लिए समर्थन भी.
भारत को कोवर्ट ऑपरेशन की ताकत को बढ़ाना होगा
वैद ने प्रधानमंत्री मोदी को बताया कि युवा स्थानीय लोग लिए जाते हैं. उन्हें बाकायदा वीजा के साथ वाघा बॉर्डर से सीमा पार ले जाया जाता है. उसके बाद IED की ट्रेनिंग दी जाती है. पुलवामा हमले को देखते हुए वैद के जवाब से दो बातें साफ निकलकर आती हैं. पहली, पाकिस्तान में ISI और आतंकी संगठन जैश-ए मोहम्मद की तरफ से लंबी प्लानिंग चल रही थी. वे IED हमले की लंबे समय से तैयारी कर रहे थे. दूसरी, घाटी में जिहादी सोच के समर्थक इन लोगों का साथ दे रहे थे.
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अपनी IED भरी गाड़ी को सीआरपीएफ की बस में घुसा देने वाले आदिल अहमद को अच्छी तरह पता था कि सुरक्षा बल उस रास्ते से गुजरने वाले हैं. ऐसे में आतंकियों के सूचना नेटवर्क में होते विस्तार और स्थानीय लोगों का साथ मिलने को लेकर सवाल उठते हैं. भारत को अपने बहादुर सिपाहियों की मौत का बदला लेना ही चाहिए. पीएम मोदी ने साफ कह दिया है कि वे सुरक्षा बलों को खुली छूट दे रहे हैं. लेकिन अभी एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान में आतंकी ढांचा खत्म नहीं होगा. भारत को अपने कोवर्ट ऑपरेशन की ताकत को बढ़ाना होगा.
जैश-ए मोहम्मद ने पुलवामा हमले की जिम्मेदारी ली है. इसमें कुछ छुपा नहीं है कि उसका चीफ और मोस्ट वॉन्टेड आतंकी मसूद अजहर बहावलपुर और रावलपिंडी से काम करता है. हालांकि, विडंबना यह है कि हमारे घरेलू और विदेशी इंटलिजेंस सिस्टम में लोगों की भारी कमी है. ऐसे में कोवर्ट एक्शन की क्षमता पर सवाल खड़ा होता है.
पाकिस्तान में आतंकी कैंप्स पर सर्जिकल स्ट्राइक या ड्रोन हमले से इस समय सरकार और सुरक्षा बलों का भरोसा बढ़ेगा. लेकिन योजना बनाकर कोवर्ट ऑपरेशन के जरिए ही ऐसा कुछ किया जा सकता है, जिससे पाकिस्तान को भारी नुकसान हो. उसे भारत में लगातार आतंकी भेजने और पनपाने की कीमत चुकानी पड़े.
तकनीक और ह्यूमन इंटेलीजेंस के गैप को खत्म करने की जरूरत
जरूरत है तकनीकी और मानवीय इंटेलिजेंस के बीच गैप भरने की. सबसे योग्य लोगों के साथ परफेक्ट इंटेलिजेंस के समन्वय की. इनके साथ पाकिस्तान के अंदर आतंकी कैंपों को तबाह किया जा सकता है. साथ ही आतंकी मास्टरमाइंड को भी खत्म किया जा सकता है, जो सुरक्षित बैठे हुए हैं. पुलवामा हमला सरकार को ये मौका देता है कि बौखलाहट में की गई प्रतिक्रिया के बजाय आतंकी ढांचे को खत्म करने पर फोकस किया जाए.
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एक और लगातार चलती बहस सुरक्षा बलों के स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SoPs) को लेकर है. NIA और NSG की टीमें पुलवामा में हैं. वे पता कर रही हैं कि क्या ऐसी कोई लापरवाही हुई है, जिसका इतना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा है. वे देखेंगे कि क्या SoPs में कुछ गड़बड़ हुई है. यकीनन, SoPs पर उंगली उठाने से पहले हमें पहले शांति से बैठकर सोचना और समझना होगा. कोई सुरक्षा बल नहीं चाहता कि उनके बहादुर सिपाहियों की जान जाए. पूरे जम्मू-श्रीनगर हाईवे को बर्लिन की दीवार नहीं बना सकते.
जम्मू और कश्मीर में पुलिस, आर्मी और अर्ध सैनिक बलों में उतना अच्छा समन्वय कभी नहीं था, जैसा अब है. यही वजह है कि आतंकियों को मारने में लगातार कामयाबी मिली है. 4-5 को छोड़कर लश्कर-ए तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के टॉप कमांडर मारे गए हैं.
प्रधानमंत्री मोदी को पिछले साल बंद कमरे में हुई मीटिंग में बताया गया था कि ISI इस वक्त जैश-ए मोहम्मद के आतंकियों को फिदायीन हमले के लिए तैयार कर रहा है, ताकि उनके डूबते हौसले ऊपर उठें. 2017 से अब तक 100 से ज्यादा पाकिस्तानी आतंकी भारत आए हैं. उसके बाद उन्हें स्थानीय लोगों का समर्थन मिला है.
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भारतीय सुरक्षा संगठनों और इंटेलिजेंस के सामने पश्चिमी देशों के मुकाबले आतंकियों से निपटने की ज्यादा बड़ी चुनौती है. न केवल पाकिस्तान में आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी, बल्कि अपने मुल्क में भी उनके समर्थकों से पार पाना होगा. हमें याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान मसूद अजहर या हाफिज सईद को भारत के हवाले नहीं करने वाला. डिप्लोमैटिक दबाव ने ओसामा बिन लादेन को खत्म नहीं किया था, बल्कि सही तरीके से किए गए कोवर्ट ऑपरेशन ने किया था. वही भारत की जरूरत है.
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