स्कूल में मेरे टीचर यज्ञनारायणन ने तब मेरे मुंह पर एक कड़ा तमाचा जड़ दिया था, जब मैंने एक अनाड़ी बच्चे की तरह अपने साथ बैठे छात्र को अपनी उत्तरपुस्तिका से नकल करने में मदद की थी.
यह एक बहुत बड़ा झटका था और भ्रष्टाचार के बारे में मेरे सोचने के ढंग पर इसका असर बहुत दिनों तक बना रहा. इसने मुझे यह भी सिखाया कि चोरी में किसी भी तरह की मदद पहुंचाने वाले ज्यादा जिम्मेदार होते हैं.
बेनामी लेन-देन में मदद पहुंचाने वाले को भी सात साल जेल
बेनामी लेन-देन बंदी अधिनियम, 1988 के तहत संशोधित बेनामी कानून के भीतर यही दृष्टि है. बेनामी लेन-देन में मदद पहुंचाने वाला भी सात साल जेल की सजा पाता है. जबकि ज्यादातर जुर्माना फायदे में रहे मालिक को झेलना पड़ता है जो बेनामी का इस्तेमाल करता है.
बेनामी संपति तो जब्त होती ही है, इसके साथ-साथ वह दुगुने चक्कर में पड़ जाता है. जुर्माने के तौर पर उसे बेनामी संपति के बाजार मूल्य का 25 फीसदी देना पड़ता है. बेनामी मालिक पर जेल जाने की तलवार भी लटकी रहती है.
ऐसी खबरें आ रही हैं कि नोटबंदी के बाद बेईमानों के भीतर अपने 500 और 1000 के नोटों को गरीबों के जन-धन खातों में रखने की होड़ लगी है. वे ऐसा इस उम्मीद में कर रहे हैं कि अनुकूल समय पर गरीब अपनी कीमत लेकर उनके पैसे लौटा देंगे.
पैसे ठिकाने लगाने के लिए सेवा कर तो देना ही पड़ेगा. बेईमानों को लगता है कि कृषि आय की आड़ में वे टैक्स बसूली में लगे अधिकारियों की पकड़ में नहीं आएंगे. लगता है इन बेईमानों ने बड़ी संख्या में मददगारों को भी इकट्ठा कर लिया है क्योंकि इनकम टैक्स कानून के हिसाब से अगर आप 50 हजार से ज्यादा नगद बैंक में जमा करते हैं तो आपके पास पैन कार्ड होना चाहिए.
इसलिए इसमें शामिल लोगों की संख्या अभी कयास के दायरे में है, खबरें हैं कि 65 हजार करोड़ रुपए उन जन-धन खातों में जमा किए गए हैं जो हाल तक निष्क्रिय थे. नोटबंदी के बाद उनमें हुई हलचल इस शक को हवा देती है कि बड़े पैमाने पर पैसे ठिकाने लगाए जा रहे हैं.
जन-धन खाताधारियों को मिलेगा इनाम
3 दिसंबर, 2016 को प्रधानमंत्री यूपी के मुरादाबाद में परिवर्तन रैली को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने उत्साहित भीड़ को बताया कि वे इस चीज पर मंथन कर रहे थे कि उन जन-धन खाताधारियों को कैसे इनाम दिया जाए, जिनके खातों में नोटबंदी के बाद बेईमानों ने अपने पैसे जमा किए हैं.
इनाम के उनके वादे को सुनकर जन-धन खाताधारियों के साथ-साथ दूसरे लोगों की भौं भी चढ़ सकती है क्योंकि खाताधारी भी बेनामी संपति को बढ़ाने के अपराध में शामिल रहे हैं और उन्हें भी इनाम की जगह सजा मिलनी चाहिए.
प्रधानमंत्री के प्रति निष्पक्ष रहते हुए यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि उन्होंने जन-धन खाताधारियों से यह आग्रह किया कि वे अपने खातों से उतने पैसे न निकालें जितना बेईमानों ने उनमें जमा किए गए हैं. इसका संदेश दो-तरफा था:
-कानून को अपने हाथ में न लें, जैसा कि कहा गया; और
-इनाम देने का काम उनकी सरकार को करने दें और तब तक उसका इंतजार करें.
सीधे-सादे (या बहुत ज्यादा बेवकूफ नहीं) जन-धन खाताधारियों को इस वादे के जरिए खींचा जा सकता है जो एक-एक करके या बारी-बारी से करना मुश्किल होगा. सरकार गरीबों के कल्याण से जुड़ी कोई योजना भी ला सकती है. लेकिन तब इस वादे का मतलब किसी काम के बदले दिया गया नहीं, बल्कि एक सीधा इनाम हुआ.
हो सकती है बैंकों और बेईमानों की मिलीभगत
फिर भी मुझे दूसरी तरफ से इस पहलू को देखना चाहिए. कुछ जन-धन खाताधारी बैंकों और बेईमानों की मिलीभगत का शिकार भी हो सकते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो बेईमानों को अनाड़ी जन-धन खाताधारियों के नाम और खाता संख्या बताए गए होंगे. इस तरह के मामलों में, निश्चित तौर पर, खलनायक बैंक कर्मचारियों के खिलाफ उन्हें सामने नहीं लाया जा सकता. जैसा कि हो सकता है.
मोदी एक पतली रस्सी पर चल रहे थे जब उन्होंने यह वादा किया. अगर उन्होंने गरीबी के खिलाफ कोई योजना बनाई और कहा कि उन्होंने अपना वादा निभा दिया तो खाताधारियों को लगेगा कि उनके साथ धोखा हुआ है. और अगर वे उन्हें इनाम देने की कोशिश में उनके खाते में जमा धन का 15 फीसदी देते हैं जिसे उजागर करने में उनकी बुनियादी भूमिका होगी, तो उन्हें इस आश्चर्यजनक काम के लिए सार्वजनिक निंदा से गुजरना होगा- बेनामी संपति के मददगारों को इनाम! सीधे-सादे यानी वे जिनके नाम पर बैंक कर्मचारियों और बेईमानों ने मिलीभगत की है, उन्हें भी सीधे तौर पर इनाम नहीं दिया जा सकता.
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