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बुआ-भतीजे के सामने क्या कमाल करेगी भाई-बहन की जोड़ी?

अब यूपी में एकतरफ बुआ-भतीजा की जोड़ी तो दूसरी तरफ भाई-बहन की जोड़ी मैदान में आ गई है. जिससे पार पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा.

Updated On: Jan 24, 2019 04:03 PM IST

Amitesh Amitesh

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बुआ-भतीजे के सामने क्या कमाल करेगी भाई-बहन की जोड़ी?

कांग्रेस ने आखिरकार अपना ट्रंप कार्ड चल दिया. आखिरकार वही हुआ जिसका लंबे वक्त से इंतजार किया जा रहा था. यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की बेटी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा की औपचारिक तौर पर सक्रिय राजनीति में एंट्री हो गई. हालांकि प्रियंका गांधी पहले भी अपने परिवार की परंपागत सीट अमेठी और रायबरेली में अपने भाई राहुल और मां सोनिया के लिए चुनाव प्रचार करती रही हैं. लेकिन, औपचारिक तौर पर उन्हें पहली बार कोई बड़ी जिम्मेदारी देकर पार्टी में उनकी धमाकेदार एंट्री हुई है.

उनकी एंट्री की टाइमिंग और उनको दी गई जिम्मेदारी ही पार्टी में उनकी उपयोगिता और उनके महत्व की कहानी बयां करने के लिए काफी है. प्रियंका गांधी की एंट्री लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुई है और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर पूर्वी यूपी का प्रभार सौंपा गया है. मतलब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के उपर पूर्वी यूपी की लगभग 30 सीटों को जीताने की जिम्मेदारी होगी.

पूर्वी यूपी में कांग्रेस की हालत कमजोर

पिछले लोकसभा चुनाव में पूरे यूपी में ही बीजेपी ने अपने विरोधियों का सूपड़ा साफ कर दिया था. यूपी की 80 में से 73 सीटों पर बीजेपी और सहयोगी को जीत मिली थी. कांग्रेस महज परिवार की दो सीटें अमेठी और रायबरेली तक ही सिमट कर रह गई थी. कांग्रेस को 2014 लोकसभा चुनाव में पूरे यूपी में महज 7.5 फीसदी वोट मिले थे, जबकि उसके बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत घटकर 6.3 फीसदी हो गया था.

Priyanka appointed AICC Gen Secy

कुछ इस तरह के हालात अभी भी दिख रहे हैं. इंडिया टुडे के सर्वे में यूपी में अकेले चुनाव लड़ने पर हालात बेहतर नहीं दिख रहे हैं. इंडिया टुडे-कार्वी इनसाइट्स के एक सर्वे में कहा गया है कि एसपी-बीएसपी गठबंधन के बाद चुनाव अभी कराएं जाएं तो, बीजेपी महज 18 सीट से भी कम पर सिमट सकती है जबकि कांग्रेस 4 सीटों पर सिमट सकती है. यह सर्वे 28 दिसंबर से 8 जनवरी के बीच कराया गया था जिसके बाद प्रियंका गांधी की एंट्री हुई है.

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कांग्रेस के लिए यही सबसे बड़ी चिंता की बात है. 80 सीटों वाले यूपी में कांग्रेस के गिरते ग्राफ को उपर उठाने और एक बार फिर पुराने जनाधार को वापस लाने की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी के कंधों पर है. कांग्रेस को भरोसा है कि प्रियंका गांधी की करिश्माई छवि और महिलाओं और युवाओं में उनकी लोकप्रियता के दम पर पार्टी एक बार फिर से यूपी में महासमर के दौरान अपने-आप को खड़ा कर पाएगी.

मोदी-योगी को घर में घेरने की तैयारी!

प्रियंका गांधी को पूर्वी यूपी का ही प्रभार देने का फैसला भी खास रणनीति के तहत किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी हो या फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इलाका गोरखपुर या फिर मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र आजमगढ. ये सभी इलाके पूर्वी यूपी में ही आते हैं. यानी प्रियंका गांधी को सीधे मोदी-योगी की जोड़ी से लोहा लेना होगा, जिनकी लोकप्रियता के दम पर पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पूरे पूर्वी यूपी में बीजेपी ने एकतरफा जीत दर्ज की थी.

पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्वी यूपी की 30 लोकसभा सीटों में से बीजेपी के खाते में 28 जबकि सहयोगी अपना दल के खाते में 1 सीट मिली थी. केवल मुलायम सिंह यादव ही आजमगढ़ से अपनी सीट बचा पाए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने के चलते बिहार में भी बीजेपी को फायदा मिला था.अब कांग्रेस उसी रणनीति के तहत बीजेपी को घेरने की कोशिश में है. कांग्रेस को लगता है कि प्रियंका गांधी की पूर्वी यूपी में सक्रियता का फायदा यूपी से सटे बिहार में भी होगा.

इसके अलावा कांग्रेस की रणनीति अमेठी और रायबरेली में प्रियंका गांधी की लोकप्रियता का फायदा उठाने की है. प्रियंका पहले से भी अमेठी और रायबरेली के दौरे पर आती रही हैं. इन दोनों इलाकों में उनकी लोकप्रियता चरम पर रही है. लेकिन, अब इन दो इलाकों के अलावा पूरे पूर्वी यूपी में उनकी इस लोकप्रियता का फायदा उठाने की रणनीति बनाई गई है.

हालांकि प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने के बारे में अभी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन, इस तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं कि सोनिया गांधी की जगह इस साल प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनाव मैदान में उतर सकती हैं. कांग्रेस की रणनीति भी यही है. उसे लगता है कि प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने से पूरे पूर्वी यूपी में इसका फायदा मिलेगा.

यूपी के ब्राह्मणों पर कांग्रेस की नजर

पूर्वी यूपी से प्रियंका गांधी को राजनीति में लॉंच करने के पीछे बड़ा कारण वहां का सामाजिक समीकरण और कांग्रेस को वहां से लगी उम्मीदें भी हैं. भले ही 2014 में मोदी लहर में कांग्रेस पूरे यूपी में 2 सीटें ही जीत पाई थी, लेकिन, 2009 लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में एक बार फिर से कांग्रेस ने अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश की थी. उस वक्त कांग्रेस की रणनीति काम आई और उसे 21 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. 2009 में पूर्वी यूपी से कांग्रेस के खाते में 7 सीटें आई थी, जबकि बीजेपी महज 4 सीटों पर सिमट गई थी.

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कांग्रेस एक बार फिर से 2009 की तरह अपने लिए जगह तलाशने उतरी है और इसके लिए नजर ब्राह्मण वोटर पर सबसे ज्यादा है. पूर्वी यूपी में ब्राह्मण समुदाय का वोट प्रतिशत 12 फीसदी के आस-पास है. योगी राज में माना जा रहा है कि ब्राह्मण अपनी उपेक्षा से नाराज हैं. ऐसे में उनको फिर से अपने पास लाने की तैयारी में कांग्रेस लगी है. एससी एसटी एक्ट के मामले में भी यूपी में ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी देखने को मिली थी.लिहाजा कांग्रेस उस फैक्टर को भी भुनाने की कवायद कर रही है. खासतौर से सुल्तानपुर, गोरखपुर, देवरिया, बस्ती समेत पूर्वी यूपी में ब्राम्हण मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है, जिसे भुनाने की कोशिश कांग्रेस कर रही है.

अगर कांग्रेस अपनी इस कोशिश में सफल हो गई तो फिर बीजेपी के लिए यूपी में बड़ा नुकसान हो सकता है, क्योंकि पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण समुदाय ने खुलकर बीजेपी का साथ दिया था.

हालांकि कांग्रेस के पास अब दूसरा कोई ऑप्शन भी नहीं था. क्योंकि यूपी में मायावती और अखिलेश के हाथ मिलाने और उसमें चौधरी अजीत सिंह के शामिल होने के बाद कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. ये अलग बात है कि चुनाव बाद भी किसी तरह की संभावना को बरकरार रखने के मकसद से कांग्रेस की तरफ से दोस्ती की बात कही जा रही है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का बयान उसी संदर्भ में देखा जा रहा है.

मायावती-अखिलेश पर कांग्रेस नरम क्यों ?

akhilesh mayawati

अखिलेश यादव -मयावती

लेकिन, प्रियंका गांधी के आने के बाद मुस्लिम मतों को लेकर एसपी-बीएसपी की परेशानी बढ़ सकती है. इसमें कोई शक नहीं है कि इस वक्त मुस्लिम मतदाताओं के सामने एसपी-बीएसपी के गठबंधन के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है. लेकिन, कांग्रेस की तरफ से मैदान में प्रियंका की एंट्री एक बार फिर उनके अंदर काफी हद तक हलचल को बढ़ाने वाली होगी. कांग्रेस के साथ अगर मुस्लिम मतदाताओं का रुझान हो गया तो फिर आने वाले दिनों में एसपी-बीएसपी को नुकसान हो सकता है.

हालांकि, विधानसभा चुनाव में अभी काफी वक्त है, लेकिन, प्रियंका गांधी के यूपी से ही मैदान में उतारकर कांग्रेस ने उन्हें यूपी में पार्टी के नए चेहरे और बड़े नेता के तौर पर सामने ला दिया है. सूत्रों के मुताबिक, पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त भी जब कांग्रेस की तरफ से प्रशांत किशोर ने रणनीति बनाई थी तो उस वक्त भी उनकी तरफ से प्रियंका गांधी के नाम को आगे करने की तैयारी की गई थी. लेकिन, उस वक्त शायद सही टाइमिंग नहीं होने के चलते कांग्रेस ने यह दांव नहीं खेला.

अब यूपी में एकतरफ बुआ-भतीजा की जोड़ी तो दूसरी तरफ भाई-बहन की जोड़ी मैदान में आ गई है. जिससे पार पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा.

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