उत्तर प्रदेश से ही दिल्ली का रास्ता जाता है. ये राजनीतिक कहावत है, सबको मालूम है. यूपी में राजनीति करना आसान नहीं है. बिहार की तरह ही ये बेहद राजनीतिक हल्का है. जहां छोटी बात बड़े राजनीतिक मसले में बदल जाती है. यूपी में कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी पर है. वक्त बदल गया है, राजनीति की दिशा बदल रही है.
कभी कांग्रेस हटाओ का नारा इस देश में चल रहा था. अब बीजेपी हटाओ का नारा बुलंद है. यूपी बीजेपी के लिए सत्ता की चाबी है. 2014 के लोकसभा में बीजेपी के 71 सांसद हैं, जो घटकर 68 रह गए हैं. पार्टी सत्ता में है. इससे पहले 1998 और 1999 में भी जब बीजेपी की सरकार बनी थी, तब भी यूपी से ही सबसे ज्यादा सांसद बीजेपी के थे. यूपी में बीजेपी के कमजोर होने से सत्ता 2004 में चली गई थी.
प्रियंका गांधी के साथ कई पहलू मददगार हैं. एक तो वो ऐसा चेहरा हैं, जो पहचान का मोहताज नहीं है. यूपी के ज्यादातर नेताओं को जानती हैं. पहले भी अहम बैठकों में राहुल गांधी के साथ मौजूद रही हैं. पहले पर्दे के पीछे थीं, अब सामने हैं. तो ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं है. हालांकि कांग्रेस के पास प्रियंका के अलावा कुछ भी नहीं है. पार्टी के पास ना संगठन है ना ही पैसा है.
देश की राजनीति पर असर
प्रियंका गांधी के कांग्रेस में महासचिव बनने के बाद सबसे ज्यादा परेशान बीजेपी दिखाई दे रही है. बीजेपी सीधे तौर पर राजनीतिक हमला कर रही है. उनके समर्थक सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं. कुछ तो अनाप-शनाप लिख रहे हैं, जिनके खिलाफ कांग्रेस ने एफआईआर लिखवाई है. ये लोकतंत्र में खत्म हो रही शुचिता की निशानी है. ये कसमसाहट भी है जो प्रियंका के इम्पैक्ट को समझ रहे हैं.
राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के पास राहुल गांधी के बाद प्रधानमंत्री को टक्कर देने वाला कोई व्यक्ति नहीं है. प्रियंका की अपील देशव्यापी है. हिंदी पर पकड़ होने की वजह से हिंदी हार्टलैंड में कांग्रेस के लिए असेट हैं. 543 लोकसभा सीट पर कांग्रेस अगर 400 पर लड़ी तो हर जगह राहुल गांधी का पहुंचना मुमकिन नहीं है. ऐसे में हिंदी हार्टलैंड और ट्राइबल बेल्ट में कांग्रेस के प्रचार में काम आएंगीं.
देश भर में प्रचार करने के लिए हिंदी पर पकड़ होना जरूरी है. पीएम मोदी के बराबर बोलने वाला पार्टी में नहीं है. हालांकि प्रियंका गांधी के पास जनता को कनेक्ट करने की कूवत है. प्रिंयका के साथ काम कर चुके एक व्यक्ति का कहना है कि वो अपनी बात सहजता से कह देती हैं. जो किसी नेता के लिए मुश्किल है. महिला होने से आधी आबादी को सहज तौर पर जोड़ने का काम कर सकती हैं.
बीजेपी के आला नेताओं, जिनमें प्रधानमंत्री शामिल हैं, के लिए प्रियंका गांधी पर हमला करना आसान नहीं है. बीजेपी के लिए भी दायरा सीमित है. कांग्रेस के यूपी में विधान परिषद सदस्य दीपक सिंह, जो परिवार के करीबी भी हैं, का कहना है कि सिर्फ प्रियंका गांधी के नाम की घोषणा के बाद जिस तरह से बीजेपी परेशान और चिंतित है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में राहुल गांधी जी का यह फैसला भारतीय जनता पार्टी पर भारी पड़ने वाला है. कांग्रेस के कार्यकर्ताओं, नौजवानों में भारी उत्साह है. कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में पहले नंबर की पार्टी बनेगी और 2022 में उत्तर प्रदेश में भी सरकार बनाएगी.
ये दावे करने के पीछे तर्क भी है. दरअसल प्रियंका गांधी कांग्रेस के भीतर और बाहर यानी सहयोगी दलों के साथ रिश्ते सुधारने में मदद कर सकती हैं. जो लोग राहुल गांधी से सहज नहीं है वो प्रियंका के साथ अपनी बात कर सकते हैं. ये कांग्रेस के लिए फायदेमंद रहेगा.
कांग्रेस के पूर्व सचिव और बिहार के पूर्व मंत्री शकीलुज़्ज़मा अंसारी काफी उत्साह में हैं. शकीलुज़्ज़मा अंसारी का कहना है कि कार्यकर्ता नेता और जनता तीनों में उत्साह है. प्रियंका गांधी जहां प्रचार करने जाएंगी, वहां कांग्रेस को बढ़त मिलेगी. उनके राजनीति में आने से कांग्रेस को निश्चित फायदा होगा.
यूपी में कमजोर कांग्रेस, प्रियंका से चमत्कार की उम्मीद
किसी की मौत का कारण पता करने के लिए जिस तरह पोस्टमॉर्टम जरूरी है. उस तरह कांग्रेस की पस्त हालत के लिए पोस्टमॉर्टम जरूरी है. 1989 से पहले ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम कांग्रेस की पूंजी थे. लेकिन 1989 से कांग्रेस से वक्त-वक्त पर ये वोट छिटक गया है. बाह्मण बीजेपी के साथ चला गया है. दलित मायावती के साथ हो गया है, जिसमें बीजेपी ने सेंधमारी की है. 1992 के बाद मुस्लिम समाजवादी पार्टी की शरण में है. इन तीन वोटर समूहों में सबसे बेचैन ब्राह्मण है जो कांग्रेस की तरफ आकर्षित हो रहा है.
मेरे बचपन के ब्राह्नण मित्र, जो अभी बीजेपी समर्थक हैं, ने कहा कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ब्राह्मण होने का दावा कर रहे हैं,बीजेपी उनको झुठला रही है, ये अन्याय है. इसका मतलब है कि ब्राह्मण कांग्रेस की तरफ देख रहा है. ये कहानी उस इलाके की है जहां की प्रियंका गांधी प्रभारी महासचिव नियुक्त की गई हैं. हालांकि दावा किया जा रहा है कि इस इलाके में 12 फीसदी ब्राह्मण हैं. तादाद की पुष्टि सरकारी आंकड़े कर सकते हैं. लेकिन तादाद कम होने के बाद भी ये मतदाता समूह रसूखदार है.
ब्राह्मणों की बात आगे बढ़ाते हुए यूपी कांग्रेस के संगठन मंत्री और फैजाबाद मंडल के प्रभारी राघव राम मिश्रा का कहना है कि जो सम्मान कांग्रेस ने दिया वो किसी पार्टी ने इस समुदाय को नहीं दिया है. कांग्रेस हमारे लिए घर की तरह है,जो लोग अलग जगह पर हैं वो प्रियंका जी के आने के बाद घर वापसी कर लेंगे.
हालांकि ब्राह्मणों की घर वापसी कराने के लिए प्रियंका गांधी को इस इलाके में शहर-शहर जाना पड़ सकता है. लेकिन इसके लिए समय कम है. ये समुदाय बीजेपी से काफी नाराज है. उसकी दो वजह है एक तो अति ठाकुरवाद, दूसरे एससी/एसटी एक्ट में संशोधन, जिसकी वजह से बीजेपी भी परेशान है.
बीजेपी भी बैलेंस करने का प्रयास कर रही है. कांग्रेस के नेता विश्वनाथ चतुर्वेदी कह रहे हैं कि बीजेपी ने सवर्णों को कार की चाबी पकड़ा दी है, लेकिन कार नहीं दी है. इसलिए वक्त बदल गया है सवर्ण के पास प्रियंका गांधी के रूप में विकल्प मिल गया है.
वो कहते हैं कि जहां तक दलित का सवाल है कि ये अभी मायावती को छोड़ेगा या नहीं ये अनुमान लगाना मुश्किल है. दलित 2014 और 2017 में बीजेपी को समर्थन करके पछता रहा है. इसलिए इस बार इसके बहन जी के साथ बने रहने की संभावना है. हालांकि प्रियंका गांधी के पास जनता को कनेक्ट करने की एक कला है, जिससे वो इस वर्ग का दिल जीत सकती हैं. ये अमेठी रायबरेली में राह चलते हुए सबसे मिलती रही हैं वो शायद उनके काम आ सकती है.
जहां तक मुस्लिम का सवाल है, ये टैक्टिकल वोटिंग करेगा, जहां जो बीजेपी को हराएगा उसको मुस्लिम वोट करेगा. तराई में 2009 में 13 सांसद कांग्रेस के चुने गए थे. लेकिन बदले हालात में बीजेपी का कब्जा है. कांग्रेस के एनएसआईयू के ट्रेनर आसिफ जाह का कहना है कि प्रियंका गांधी के आने के बाद अल्पसंख्यक के पास कांग्रेस का विकल्प है. पहले एसपी बीएसपी के अलावा चारा नहीं था. पूर्वी यूपी के गोंडा जनपद के निवासी और मुबंई कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के पूर्व सचिव मौलाना अशरफ जैदी का कहना है कि प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने की धमक मुंबई मे भी दिखाई देगी. मुबंई में पूर्वी यूपी के लोग काफी तादाद में रहते हैं, तो सब जोश में हैं. सभी कांग्रेस को वोट देने की बात कर रहे हैं. जिनका वोट गांव में है, वो चुनाव के दौरान गांव जाने की तैयारी कर रहे हैं. इस बार पूर्वी यूपी में बीजेपी के लिए मुश्किल होने वाली है.
यूपी में जातीय गणित
यूपी की राजनीति जातीय गणित पर आधारित है. गैर बीजेपी दलों के पास जातियों का वोट है. एसपी का कोर वोट यादव है तो बीएसपी का हरिजन जिसमें मायावती के सजातीय लोग साथ हैं. कांग्रेस के पास कोर वोट का अभाव है. प्रियंका गांधी के पास आम चुनाव के लिए 100 दिन भी नहीं हैं. हालांकि वो विधानसभा चुनाव तक अपनी पैठ बना सकती हैं.
हालांकि गठबंधन के सामने कांग्रेस की चुनौती कमजोर है. कांग्रेस अगर ब्राह्मण को जोड़ने में कामयाब हो गई तो पासा पलट सकती हैं. मजबूत जाति के साथ मुस्लिम और कमजोर वर्ग कांग्रेस के साथ जुड़ सकता है. एक ऐसी जाति के सहारे की जरूरत है जो कांग्रेस के लिए बूथ पर खड़ी हो सकती हो. यही फैक्टर कांग्रेस की कमजोर कड़ी है. दूसरे पूर्वी यूपी में सभी सीट पर जिताऊ और आर्थिक तौर पर मजबूत उम्मीदवारों की जरूरत है. ये भी बड़ा काम है.
कांग्रेस अपनी जड़ खोजने की जुगत भिड़ा रही है. कांग्रेस पुराने नेताओं से संपर्क करने का प्रयास कर रही है. ऐसे नेताओं को शॉर्टलिस्ट किया जा रहा है जो कभी परिवारिक तौर पर पार्टी से जुड़े रहे हैं. दूसरे कांग्रेस के पास विकल्प है जिन लोगों को सपा-बसपा से टिकट नहीं मिलेगा तो वो कांग्रेस की तरफ रुख कर सकते हैं. लेकिन सवाल ये उठता है कि पुराने कांग्रेसियों का क्या होगा? इन सब का भी जवाब ढूंढना है.
हालांकि प्रियंका कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक हैं. इससे सभी दल परेशान हैं. जनता के मूड का पता नहीं है. 2009 में समाजवादी पार्टी ने गठबंधन तोड़ दिया था. कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ना पड़ा लेकिन नतीजे सुखद रहे, इस बार स्थिति वैसे ही बन रही है. लेकिन इस बार बीजेपी राज्य में मजबूत है.
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