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संसद बंद पर पीएम का उपवास सत्याग्रह है या विपक्ष पर हल्ला बोलने का परफेक्ट प्लान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अप्रैल को उपवास कर रहे हैं. यह उपवास संसद में पैदा हुए गतिरोध के खिलाफ है.

Updated On: Apr 11, 2018 03:43 PM IST

Amitesh Amitesh

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संसद बंद पर पीएम का उपवास सत्याग्रह है या विपक्ष पर हल्ला बोलने का परफेक्ट प्लान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अप्रैल को उपवास कर रहे हैं. यह उपवास संसद में पैदा हुए गतिरोध के खिलाफ है. यह उपवास जनता के पैसे से हुई बर्बादी के विरोध में है. यह उपवास देश भर में विपक्षी पार्टियों की तरफ से फैलाए जा रही अफवाहों के खिलाफ भी माना जा सकता है, जिसका जिक्र बार-बार सत्ताधारी दल कर रहा है.

इस दिन देश भर में बीजेपी के सांसद अपने-अपने संसदीय क्षेत्र पहुंचकर उपवास करेंगे. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कर्नाटक में हुबली में उपवास रखेंगे. एक दिन के उपवास के दौरान बीजेपी के सांसदों के अलावा पार्टी के कई कार्यकर्ता भी इसमें देश के अलग-अलग हिस्सों में शिरकत करने वाले हैं. जगह-जगह धरना भी देने की तैयारी हो रही है.

बीजेपी की तरफ से किए जा रहे इस उपवास कार्यक्रम की अगुआई करने खुद प्रधानमंत्री मोदी उतर रहे हैं. हालांकि यह बात अलग है कि उनके रोजाना के रूटीन में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा. वो पहले की ही तरह लगातार अपना काम करेंगे. वो इस दौरान सभी चीजें वैसे ही करेंगे जैसे आम दिनों में करते हैं.

पिछले हफ्ते बीजेपी समेत एनडीए के सभी सांसदों ने 23 दिन का वेतन छोड़ने का फैसला किया था. सरकार की तरफ से कहा गया कि इस दौरान संसद की कार्यवाही नहीं चली थी, लिहाजा नैतिक रूप से हम इसे लेने के हकदार नहीं हैं. लेकिन, इस नैतिकता में भी कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को घेरने की तैयारी थी. एक नैतिक दबाव बनाने का प्रयास था.

इससे पहले सरकार ने कांग्रेस पर अपने आचरण से संसदीय प्रक्रिया का स्तर नीचा गिराने का आरोप लगाया था.

बजट सत्र के दूसरे हिस्से में अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे और फिर दूसरे कई मुद्दों पर हो रहे हंगामे के चलते संसद की कार्यवाही नहीं चल पाई थी. उस वक्त सरकार ने विपक्ष को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन, कांग्रेस ने सरकार पर सदन में चर्चा से भागने का आरोप लगाया था.

एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर देश भर में मचे बवाल और उस पर हुए हिंसक आंदोलन के बाद विपक्ष ने संसद के बाहर और संसद के भीतर भी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की पूरी कोशिश की. सरकार पर दलित समुदाय के हितों की अनदेखी करने का आरोप भी लगाया गया. सरकार की छवि एंटी दलित बनाने की पूरी कोशिश भी की गई.

अब सरकार इस छवि से बाहर निकलने की कोशिश में है. क्योंकि उसे भी पता है कि दलित विरोधी छवि उसकी सियासी जमीन पर भारी पड़ सकती है. पिछडे़ समुदाय से आने वाले नरेंद्र मोदी की हिंदुत्ववादी छवि की बदौलत बीजेपी ने 2014 में कास्ट बैरियर तोड़कर सारे समीकरण ध्वस्त कर दिए थे. उस दौरान पिछड़े समुदाय के लोगों के अलावा दलित समुदाय ने भी खुलकर बीजेपी को वोट किया था.

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2 अप्रैल को देशभर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध बुलाए गए भारत बंद के दौरान राजस्थान की एक तस्वीर. ( पीटीआई )

कई राज्यों में हिंसा की छिटपुट घटनाएं और एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बने माहौल में कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार पर सवाल खडे़ कर दिए हैं. मोदी को भी लगता है कि अगर उनकी सरकार की छवि को एंटी दलित बनाने में विपक्षी दल सफल हो गए तो पिछले चार साल के उनके किए कराए पर पानी फिर सकता है.

इसीलिए पिछले चार साल में बाबा साहब भीम राव अंबेडकर के नाम पर किए गए काम और उनसे जुड़े सभी स्थलों को विकसित कर सरकार अपने-आप को दलित समाज के शुभचिंतक के तौर पर साबित करने में लगी है, जबकि कांग्रेस पर अंबेडकर की उपेक्षा का आरोप लगा रही है. इसके लिए बीजेपी ने अपनी पार्टी के दलित नेताओं को भी आगे करना शुरू कर दिया है.

बीजेपी प्रवक्ता और एससी-एसटी आयोग के पूर्व चेयरमैन विजय सोनकर शास्त्री कांग्रेस पर अंबेडकर विरोधी होने का आरोप लगा रहे हैं. फर्स्टपोस्ट से बातचीत में सोनकर शास्त्री कहते हैं ‘नेहरू जी के उत्पीड़न से तंग आकर अंबेडकर जी ने इस्तीफा दिया था. 70 सालों तक सत्ता में रहने के बाद भी कांग्रेस ने दलितों के विकास के लिए कुछ नहीं किया, जबकि, मोदी जी के नेतृत्व में सरकार ने दलित समुदाय के लोगों को विकास की मुख्यधारा में जोड़ने का काम किया है.’

दलितों के विरोध प्रदर्शन के मुद्दे पर विपक्षी दलों द्वारा सरकार को घेरने के प्रयासों के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी के सभी सांसदों और दूसरे नेताओं को 14 अप्रैल से 5 मई के बीच 20,844 ऐसे गांवों में रात गुजारने को कहा है, जहां अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है.

बीजेपी के सभी सासंदों के अनुसूचित जाति बहुल गांवों में जाकर अपनी बात रखने की कोशिश करना इस बात का प्रतीक है कि बीजेपी इस समुदाय के भीतर पैदा हुए उस भ्रम को खत्म करना चाहती है. पार्टी की कोशिश अब विपक्ष पर दलित मुद्दे पर  भी और हमलावर होने की भी है.

Photo Source: News-18

हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इससे पहले महात्मा गांधी की समाधि स्थल पहुंचकर उपवास रखा. लेकिन, कांग्रेस के कुछ नेताओं के उपवास के पहले अल्पाहार की सोशल मीडिया पर चल रही तस्वीरों ने इस उपवास का उपहास करा दिया. इस उपवास का वो असर नहीं दिख पाया जो सोचकर राहुल गांधी राजघाट पहुंचे थे.

अब बीजेपी अपने नेताओं को इस तरह की गलतियों से बचने की नसीहत दे रही है. बीजेपी देश भर में बेहतर उपवास कार्यक्रम कर विपक्ष पर हल्ला बोल की तैयारी में है. बाबा साहब की जयंती के दो दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी का उपवास बीजेपी के प्रति विपक्ष के बनाए परसेप्शन में परिवर्तन की कोशिश के तौर पर ही देखा जा रहा है.

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