देश की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी में चल रहा 15वां प्रवासी भारतीय सम्मेलन बहुत खास है. खास इसलिए कि 23 जनवरी तक चलने वाला यह प्रवासी भारतीय सम्मेलन सिर्फ कारोबारी चर्चाओं तक सीमित नहीं है और न ही इसका उद्देश्य कारोबारी हितों तक सीमित है. लोकसभा चुनाव दहलीज पर है लिहाजा मोदी सरकार इस सम्मेलन के जरिए चुनावी हित साधने की कोशिश में है.
स्थानीय राजनीतिक पंडित भी सरकार की इस कवायद को पूर्वांचल के मतदाताओं को लुभाने का आखिरी बड़ा अभ्यास मान रहे हैं. चुनावी पंडित इस बात पर सहमत हैं कि मोदी सरकार प्रवासी भारतीयों के जरिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के मन में यह बात डालने की कोशिश में जुटी है कि नई सरकार के आने के बाद देश में काफी बदलाव आया है और ये बदलाव सिर्फ सेंटीमेंट में ही नहीं, हकीकत में भी दिख रहा है.
सम्मेलन के जरिए यह भी दिखाने की कोशिश है कि 'नई सरकार के बाद प्रवासी भारतीय युवाओं में भारत को लेकर उत्साह बढ़ा है और वो भारत की तरफ अब उम्मीद से देख रहे हैं. उन्हें सहज लग रहा है कि देश में अब आम आदमी की जिंदगी को सुधारने के मकसद से बहुत काम हो रहे हैं. सम्मेलन को लेकर रणनीति और तैयारी सरकार के चुनावी हितों को साफ-साफ दर्शा रही है. सम्मेलन के मुख्य अतिथि मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रवींद्र जगन्नाथ हैं.
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प्रवींद्र जगन्नाथ का मुख्य अतिथि होना महज संयोग नहीं कहा जा सकता. अगर यह संयोग है तो भी यह बात जरूर स्वीकारनी होगी कि प्रवींद्र जगन्नाथ की जड़ें पूर्वी उत्तर प्रदेश से ही जुड़ी हैं. जगन्नाथ के पूर्वज बलिया जिले के रसड़ा कस्बे से आते हैं. अपनी पिछली भारत यात्रा के दौरान उन्होंने यहां की यात्रा की थी और वहां के लोगों ने उन्हें सिर-आंखों पर बिठाया था, बलिया जिले के लोगों का प्रवींद्र जगन्नाथ के प्रति जबर्दस्त झुकाव है. लिहाजा उनकी बातों का असर होने से इनकार नहीं किया जा सकता.
इसी तरह सम्मेलन में हांगकांग के कारोबारी हरजानी दयाल नरायनदास भी हिस्सा ले रहे हैं. हरजानी दयाल कबीरपंथी हैं और कबीर को लेकर कई किताबें लिख चुके हैं. कार्यक्रम के तहत हरजानी दयाल स्थानीय कबीर पंथियों से मिलेंगे और भारत में हो रहे बदलाव को लेकर अपने नजरिए को बताएंगे. सम्मेलन में शामिल युवा प्रवासी शहर के कॉलेज और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों से मिलेंगे और उन्हें विश्व की नजर में बढ़ते भारत के प्रभाव के बारे में बताएंगे.
इसके लिए जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग की ओर से कॉलेजवार छात्रों का चयन किया गया है. करीब 700 ऐसे छात्र-छात्रा होंगे जो समारोह में शामिल होंगे. केंद्र सरकार के इतर राज्य सरकार की तरफ से प्रचार-प्रसार को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ी गई है. एयरपोर्ट से लेकर टेंट सिटी, टीएफसी हो या फिर गंगा घाट सभी स्थान सरकार के उपलब्धियों के स्लोगन से पटे पड़े हैं. बड़ा लालपुर स्टेडियम में चित्रावली लाउंज बनाया गया है, जिसमें बदलते वाराणसी की तस्वीर को दिखाया गया है.
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चित्रावली में भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हर विभाग अपने-अपने ढंग से सरकार की उपलब्धियों का बता रहा है. बड़े-बड़े बोर्ड के जरिए सरकार की ब्रांडिंग तो की ही गई है. गंगा में चलने वाली नावों के जरिये भी ब्रांडिंग की तैयारी है. गंगा में इस समय करीब एक हजार नावें चल रही हैं और ज्यादातर नावें भगवा रंग में रंगी जा चुकी हैं और उस पर सरकार की प्रमुख योजनाओं के स्लोगन चिपके हुए हैं. तीन दिन के प्रवासी भारतीय सम्मेलन में 75 देशों के करीब आठ हजार प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं.
सबसे अधिक प्रवासी भारतीय मलेशिया से आए हैं. इनकी संख्या सौ से अधिक है. बढ़ते क्रम में प्रवासी आगमन की बात करें तो मलेशिया के बाद यूएई, मॉरीशस, यूएस, ओमान, अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, कोरिया, जापान आदि प्रमुख देशों के प्रवासी भारतीय सम्मेलन में शामिल हैं. इसमें ज्यादातर युवा हैं और उनका अपने पूर्वजों की जन्मभूमि से लगाव और संपर्क आज भी बना हुआ है. कुछ तो ऐसे हैं जो समय-समय पर यहां के सगे-संबंधियों का सहयोग भी करते रहे हैं.
इन प्रवासी भारतीयों को लेकर स्थानीय लोगों के उत्साह का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 'काशी आतिथ्य' ऐप के जरिए दो हजार काशीवासियों ने इन मेहमानों की आवभगत में शामिल होने की मंशा जताई थी. वेरिफिकेशन के बाद ये लोग आवभगत में शामिल भी किए जा चुके हैं. मोदी सरकार ने इसको सरकारी आयोजन न बनाकर लोकोत्सव का रूप दे दिया है. प्रवासी भारतीयों और स्थानीय लोगों के संवाद और सरकार की कवायद का आंशिक ही सही पर चुनाव पर असर होना लाजिमी है.
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