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प्रशांत भूषण करें पुकार-आ बैल मुझे मार !

वर्तमान माहौल में 'ऑपरेशन रोमियो' के साथ कृष्ण को लपेट लेना सचमुच एक बहुत बड़ा अपराध है

Updated On: Apr 03, 2017 06:16 PM IST

Rakesh Kayasth Rakesh Kayasth

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प्रशांत भूषण करें पुकार-आ बैल मुझे मार !

देश और प्रदेश की धर्मरक्षक सरकारों की कृपा से इस समय पूरे गोवंश का कॉन्फिडेंस सातवें आसमान पर है. इस माहौल को देखने-समझने के बावजूद जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने कहा- आ बैल मुझे मार. शायद प्रशांत भूषण को ये भ्रम था कि बैल ट्वीट नहीं पढ़ते, बयान कोई देखेगा नहीं बात आई-गई हो जाएगी.

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ये भारतवर्ष है, प्रशांत बाबू. ट्वीट की बात छोड़ दीजिये यहां के बैलों को फोटो शॉप तक में महारत हासिल है. पिटते आप तब भी जब आपने गाय या गोवंश के बारे में कुछ कहा होता. आप तो एक कदम आगे बढ़ गये और सीधे गोपाल तक जा पहुंचे. गोपाल जो इस संपूर्ण ब्रह्मांड पर प्रेम के सबसे बड़े प्रतीक हैं. गोपाल जिनके महारास में इस सृष्टि के सृजन का सार समाया है. बहुत बुरा किया आपने भूषण साहब.

अगर त्रेता होता तो कृष्ण आपको हंसते-हंसते क्षमा कर देते. शिशुपाल को उन्होंने बड़ी अभद्रताओं के लिए क्षमादान दिया था और वो भी 99 बार. नारायण के रूप में उन्होंने भृगु ऋषि को भी क्षमा किया था, वही भृगु जिन्होंने भगवान की छाती पर बिना बात लात मारी थी. लेकिन क्षमा ईश्वरीय तत्व है, मानवीय स्वभाव तो बदले का है.

सतयुग, द्वापर या त्रेता नहीं बल्कि कलियुग

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वैसे भी ये कोई सतयुग, द्वापर या त्रेता नहीं बल्कि कलियुग है. यहां कान्हा नहीं बल्कि उनके मंदिर हैं. कृष्ण की मोहिनी गउएं हों या ना हों, बैल प्रचुर संख्या में हैं. आपने इधर कृष्ण का नाम लिया और उधर बैल निकल चले सरपट, दुनिया को ये बताने कि वे अपने प्रभु से सच्चा प्रेम करते हैं. इस समय आगे-आगे प्रशांत भूषण हैं और पीछे-पीछे बैल. नजारा देखती जनता सोशल मीडिया पर तालियां पीट रही है. ये स्पेन की बुल फाइटिंग नहीं है. ये तो 'आ बैल मुझे मार है’, भारतीय बुद्धिजीवियों का प्रिय खेल.

मुझे ये बात आज तक समझ नहीं आई कि भारतीय बुद्धिजीवियों को एडवेंचर स्पोर्ट्स का इतना शौक क्यों हैं?  एडवेंचर तरह-तरह के होते हैं. जैसे मधुमक्खी के छत्ते पर छोटा सा कंकड़ फेंकना और फिर अपने घर में जाकर छिप जाना. राह चलते सांड़ को लाल कपड़ा दिखाना और ऐसी गली में घुस जाना कि सांड़ पहुंच ही ना पाये. बहुत से बुद्धिजीवियों को बरसाने की होली टाइप एडवेंचर का शौक होता है. जिसमें लाठियां तो दनादन बरसती हैं, लेकिन सिर किसी का नहीं फूटता.

आफत को दावत देना

भारत में ये एडवेंचर ना जाने कब से चलता आया है. शामिल होने वालों को बहुत मजा आता है, मामूली चोट भी आ गई तो कोई बात नहीं. दर्शक भी तमाशा देखकर अपने-अपने घर चले जाते हैं. लेकिन अब मामला बदल गया है. सरकार ने इसे स्पोर्ट्स मानने से इनकार कर दिया है. जब स्पोर्ट्स नहीं तो फिर काहे की खेल भावना! ऐसे में एडवेंचर करना आफत को दावत देना है.

एडवेंचर प्रेमियों के लिए कोई बीमा योजना नहीं है और ना ही सरकार की तरफ से सुरक्षा की कोई गारंटी. जिसे खेलना हो वो अपने रिस्क पर खेले. प्रशांत भूषण ने रिस्क लिया और बदले में उनके नाम से एफआईआर दर्ज हो गई. सींग खुजाते बैल पीछा कर रहे हैं वो अलग.

School children dressed as Hindu Lord Krishna take part in a function held ahead of "Janamashtmi" celebrations in the southern Indian city of Chennai, August 8, 2012. Janamashtmi is the birth anniversary of Lord Krishna which will be celebrated on August 10. REUTERS/Babu (INDIA - Tags: RELIGION SOCIETY ANNIVERSARY) - RTR36FC1

मुझे प्रशांत भूषण से कोई हमदर्दी नहीं है, क्योंकि उन्होंने जो कुछ कहा सबकुछ जानते और समझते हुए कहा. वे भूल गये कि हम एक ऐसे दौर में हैं जहां घर से ऑफिस जाने और वापस घर आने को छोड़कर आप बाकी जो कुछ करते हैं,  उससे किसी ना किसी भावना जुड़ी होती है.

सचमुच बहुत बड़ा अपराध

ये भावना कभी भी आहत हो सकती है और आप बीच बाजार में कहीं भी पिट सकते हैं. ऐसे माहौल में 'ऑपरेशन रोमियो' के साथ कृष्ण को लपेट लेना सचमुच एक बहुत बड़ा अपराध है. कृष्ण का नाम लिये बिना भी आप अपनी बात कह सकते थे. मुझे मालूम है प्रशांत भूषण साहब पढ़े-लिखे आदमी हैं. अपने बचाव में दोहा कोट कर सकते हैं—

क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को अपराध

का घट्यो हरि को जो भृगु ने मारी लात

वो जमाना कुछ और था साहब. वक्षस्थल पर प्रहार झेलने वाला ईश्वर था और प्रहार करने वाला ऋषि. हरि की क्षमा, भृगु की लात और हरिभक्तों की लात इन तीनों मे बहुत फर्क है.

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