देश में इन दिनों मूर्तियों पर महाभारत छिड़ी हुई है. अलग-अलग हिस्सों से महापुरुषों की मूर्तियों के साथ तोड़फोड़ की खबरें आ रही हैं. त्रिपुरा से भड़की इस चिंगारी से तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल भी धधक उठा है. विचारधारा के विरोध के बहाने हो रही हिंसक घटनाओं ने लोगों को चिंता में डाल दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन घटनाओं पर सख्त नाराजगी जताई है. उन्होंने इस मामले में गृह मंत्री राजनाथ सिंह से गंभीर चर्चा की. जिसके बाद गृह मंत्रालय ने एडवायजरी जारी करते हुए सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएं.
बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा की गई बर्बरतापूर्ण घटनाओं और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों और समूहों द्वारा प्रतिशोध में की गई जवाबी कार्रवाई पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस मुस्तैदी के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की है वह उल्लेखनीय है.
इससे पहले कई अवसरों पर जैसे कि स्व: घोषित गौ-रक्षकों द्वारा की गई गुंडागर्दी और हिंसा, गौ-रक्षा के नाम पर मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों की हत्या पर भी मोदी ने जोरदार प्रतिक्रिया दी थी. उन्होंने ऐसी घटनाओं की निंदा करते हुए संबंधित राज्यों की कानून और सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार एजेंसियों को गुंडागर्दी और अराजकता फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई करने को कहा था.
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लेकिन उस दौरान मोदी ने प्रतिक्रिया देने में इतनी तत्परता नहीं दिखाई थी जैसी कि फिलहाल मूर्ति तोड़ने की घटनाओं पर व्यक्त की है. उन दिनों गौ-रक्षकों की गुंडागर्दी पर प्रतिक्रिया देने से पहले मोदी ने पर्याप्त समय लिया था. उस वक्त काफी नाप-तोल और जांच-परख के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने मुंह खोला था और अपनी पार्टी और सरकार के रुख को स्पष्ट किया था.
गौ-रक्षकों की हिंसा पर मोदी की तीखी प्रतिक्रिया और सख्त रुख का असर भी पड़ा था. उसी की वजह से गौ-रक्षकों की गुंडागर्दी में काफी कमी आई. लेकिन जब तक मोदी ने हस्तक्षेप किया तब तक काफी नुकसान हो चुका था. गौ-रक्षकों की गुंडागर्दी से देश के सामाजिक ताने-बाने पर खासा बुरा असर पड़ा, साथ ही राजनीतिक विमर्श की दिशा और दशा भी बिगड़ गई.
फिलहाल मोदी के सामने क्या है सबसे बड़ी समस्या
जाहिर तौर पर ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अतीत से सबक सीख लिया है. वैसे भी फिलहाल जो समस्या मोदी के सामने मुंह बाए खड़ी है, वह अतीत की समस्याओं के मुकाबले थोड़ी अलग है. बर्बरता और अराजकता की इन घटनाओं की शुरुआत त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के जश्न के साथ शुरू हुईं.
1978 से वाम दलों का लाल गढ़ रहे त्रिपुरा में बीजेपी की जीत के बाद पार्टी कार्यकर्ता अपना आपा खो बैठे. विचारधारा के विरोध के नाम पर देखते ही देखते राज्य में कई जगहों पर हिंसा शुरू हो गई. सीपीएम कार्यकर्ताओं और समर्थकों को निशाना बनाया गया. वहीं बेलोनिया और सबरूम में रूसी क्रांति के नेता लेनिन की मूर्तियों को तोड़ दिया गया.
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के युग में बीजेपी खुद को 'पार्टी विद डिफरेंस' कहकर गर्व किया करती थी. हालांकि बीजेपी अब भी अनुशासन का दावा करती है. लेकिन त्रिपुरा में जीत के बाद जिस तरह से हिंसा और बर्बरता हुई उसने पार्टी कार्यकर्ताओं के अनुशासन की पोल खोल कर रख दी है. चुनाव में जीत के बाद ऐसी अराजकता फैलाना तो समाजवादी पार्टी और आरजेडी के कार्यकर्ताओं की पहचान हुआ करती थी.
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केंद्र और देश के 21 राज्यों पर बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों का शासन है. ऐसे में बीजेपी कतई नहीं चाहेगी कि उसे भी समाजवादी पार्टी और आरजेडी जैसे दलों की श्रेणी में रखा जाए. यह बात तब और महत्वपूर्ण हो जाती है, जब बीजेपी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मजबूत नेतृत्व पर गर्व करती दिखाई देती है.
इस हिंसक माहौल से होन वाले दुष्परिणामों को पहले से भांप चुके थे मोदी
गौरतलब है कि, प्रधानमंत्री मोदी ने हिंसक और अराजक हालात की समीक्षा के बाद जैसे ही गृह मंत्रालय को आवश्यक निर्देश दिए, सरकारी सूत्रों ने यह जानकारी मीडिया तक पहुंचाने में देर नहीं लगाई. इस बात से संकेत मिलता है कि मोदी ने हालात को कितनी गंभीरता से लिया है. इस बात से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि मोदी ने इन घटनाओं के संभावित दुष्परिणामों को समय रहते भांप लिया है.
एक आधिकारिक सूत्र के मुताबिक, 'प्रधानमंत्री ने देश के कुछ हिस्सों में हिंसा और बर्बरता की घटनाओं की कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा है कि, दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी. देश के कुछ हिस्सों से मूर्तियों को ढहाने की घटनाओं की सूचनाएं आई हैं. प्रधानमंत्री ने इस संबंध में गृह मंत्री राजनाथ सिंह से बात की और इस तरह की घटनाओं पर नाराजगी व्यक्त की. गृह मंत्रालय ने हिंसा और बर्बरता की ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लिया है. लिहाजा राज्यों से कहा गया है कि, वे ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएं. गृह मंत्रालय ने यह भी कहा है कि, हिंसा और उपद्रव में शामिल लोगों से सख्ती के साथ निपटा जाना चाहिए और उनके खिलाफ वाजिब कानून कार्रवाई की जानी चाहिए.'
यह सच है कि त्रिपुरा में वाम दलों के खिलाफ बीजेपी की लड़ाई बेहद तीखी रही है. लिहाज़ा चुनाव में जीत के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की भावनाएं उबल पड़ीं. जिसके चलते ही उन्होंने राज्य में वामपंथ की उपस्थिति के प्रतीक यानी लेनिन की मूर्ति को ढहा दिया.
वैसे लेनिन कोई भारतीय महापुरुष या प्रतीक नहीं हैं. भारत में लेनिन पर श्रद्धा भाव रखने वाले लोगों की तादाद ज़्यादा नहीं है. लेनिन सिर्फ मार्क्सवादी दर्शन को मानने वालों तक ही सीमित हैं. मार्क्सवाद-लेनिनवाद का एक ऐतिहासिक तथ्य यह है कि रूस की क्रांति के बाद 1917 में सत्ता की ललक में प्रयोजित तौर पर भयंकर रक्तपात हुआ था.
त्रिपुरा से शुरू हुई इस समस्या नें इतना विकराल रूप कैसे लिया
त्रिपुरा के कुछ हिस्सों में हिंसा और अराजकता अगर सिर्फ लेनिन की मूर्ति तक सीमित थी, तो इसे उपद्रवी भीड़ की करतूत कहा जाना चाहिए. ऐसे किसी भी मामले में दोषियों के खिलाफ कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत कार्रवाई की ज़रूरत होती है.
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लेकिन महान द्रविड़ नेता ई.वी. रामासामी पेरियार का नाम घसीटे जाने से यह समस्या और गंभीर हो गई. लेनिन की मूर्ति के मामले में पेरियार का नाम शामिल करने की गलती बीजेपी के एक अतिउत्साही नेता एच. राजा ने की. एक फेसबुक पोस्ट के जरिए एच. राजा ने कहा कि, त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति के बाद अब तमिलनाडु में पेरियार की मूर्तियों को ढहाया जा सकता है.
एच. राजा का तर्क और बयान बीजेपी नेतृत्व की धारणा और समझ से परे था. लिहाज़ा पार्टी की तरफ से तुरंत एच. राजा को अपनी फेसबुक पोस्ट हटाने और बयान के लिए माफी मांगने के निर्देश दिए गए. एच. राजा ने वैसा ही किया. लेकिन तब तक बात बिगड़ चुकी थी और जो नुकसान होना था वह हो चुका था.
वेल्लूर के तिरुपत्तूर तालुका से खबर आई कि दो लोगों ने पेरियार की मूर्ति से तोड़फोड़ की है. आरोपियों में से एक बीजेपी समर्थक है, जबकि दूसरा उसका दोस्त है और मार्क्सवादी विचारधारा वाला है. दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.
एच. राजा के माफी मांगने के बावजूद पेरियार की मूर्ति तोड़े जाने की घटना तमिलनाडु में प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गई है. जो कि निसंदेह बीजेपी के लिए अच्छी खबर नहीं है. लिहाज़ा डैमेज कंट्रोल के लिए पार्टी हर संभव प्रयास कर रही है.
मामले की गंभीरता को देखते हुए खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को मैदान में उतरना पड़ा है. अमित शाह ने ट्वीट कर कहा है कि: 'मैंने तमिलनाडु और त्रिपुरा की पार्टी इकाइयों से बात की है. बीजेपी से जुड़ा कोई व्यक्ति अगर किसी मूर्ति से तोड़फोड़ करने में शामिल पाया गया तो उसे पार्टी की तरफ से गंभीर कार्रवाई का सामना करना होगा.'
I have spoken to the party units in both Tamil Nadu and Tripura. Any person associated with the BJP found to be involved with destroying any statue will face severe action from the party.
— Amit Shah (@AmitShah) March 7, 2018
एक और ट्वीट में अमित शाह ने कहा, 'बीजेपी हमेशा निष्कपट और रचनात्मक राजनीति के आदर्शों के लिए प्रतिबद्ध रहेगी. अपने इन्ही आदर्शों के माध्यम से हम न सिर्फ लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं बल्कि नए भारत का निर्माण भी कर सकते हैं.'
The BJP will always remain committed to ideals of openness and constructive politics through which we can positively impact people’s lives as well as build a New India.
— Amit Shah (@AmitShah) March 7, 2018
महापुरुषों की मूर्तियों पर हमलों ने बीजेपी नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है. वहीं बीजेपी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के कार्यकर्ताओं ने इस मामले में प्रतिशोध लेना शुरू कर दिया है. सबसे पहली खबर आई पश्चिम बंगाल से जहां जनसंघ (बीजेपी के पूर्ववर्ती अवतार) के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति पर कालिख पोत दी गई. इसके बाद कोयंबटूर से खबर आई कि बीजेपी मुख्यालय पर पेट्रोल बम से हमला किया गया.
ये समस्या बीजेपी के लिए क्यों है इतनी गंभीर
विचारधारा के नाम यह बवाल ऐसे समय पर हो रहा है जब बीजेपी पूर्व और दक्षिण के तटीय राज्यों में पैर पसारने की कोशिश में जुटी है. इनमें पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक जैसे राज्य शामिल हैं. खास बात यह है कि कर्नाटक को छोड़कर बाकी राज्यों में बीजेपी की उपस्थिति या तो मामूली है या नगण्य है.
पूर्वोत्तर के राज्यों में ताजा तरीन जीत से बीजेपी के हौसले बुलंद हैं. खासकर ईसाई प्रभुत्व वाले नगालैंड और बंगाली प्रभुत्व वाले त्रिपुरा में मिले जनादेश ने पार्टी को पंख लगा दिए हैं. ऐसे में बीजेपी नेतृत्व को उम्मीद है कि पार्टी पूर्व और दक्षिण भारत में भी मज़बूत पकड़ बनाने में कामयाब होगी.
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ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि, नई दिल्ली में बीजेपी के नए मुख्यालय में पूर्वोत्तर की जीत के जश्न के दौरान मोदी ने अज़ान की आवाज़ सुनकर अपना भाषण कुछ समय के लिए रोक दिया था. उस वक्त मोदी का भाषण टेलीविजन न्यूज़ चैनलों के ज़रिए पूरे देश में लाइव टेलीकास्ट हो रहा था. अज़ान सुनकर खामोश होने के बहाने मोदी ने जनता को संदेश देने की कोशिश की कि, वह सभी समुदायों के धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं का सम्मान करते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदा सोच से ऐसा लगता है कि वह गुंडों को अराजकता फैलाने की ढील नहीं देंगे, भले ही वह उनकी पार्टी का कोई कार्यकर्ता या पदाधिकारी ही क्यों न हो. ऐसा इसलिए क्योंकि मोदी नहीं चाहते हैं कि देश के सभी समुदायों और जातीय समूहों पर पकड़ बनाने के उनके प्रयासों पर किसी तरह का ग्रहण लगे.
चुनावी हार-जीत और राजनीतिक नफे-नुकसान से परे प्रधानमंत्री के रूप में मोदी से यह आशा की जाती है कि वह पद की गरिमा बरकरार रखते हुए अपना रुख स्पष्ट करें. मोदी को अपने एक्शन से यह भी बताना होगा कि देश में संविधान और कानून सर्वोपरि है. उन्हें राजनीतिक चोला ओढ़े गुंडों और अराजक तत्वों को भी बेनकाब करना होगा. फिलहाल मोदी ऐसा ही करते नज़र आ रहे हैं.
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