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बीजेपी के पॉलिटिकल कुंभ में जारी है राजनीतिक दोस्ती बचाए रखने की कवायद

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहे अर्द्धकुंभ मेले में अपेक्षा अनुरूप राजनीति के नित नए अध्याय लिखे और मिटाए जा रहे हैं.

Updated On: Jan 30, 2019 05:36 PM IST

Utpal Pathak

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बीजेपी के पॉलिटिकल कुंभ में जारी है राजनीतिक दोस्ती बचाए रखने की कवायद

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहे अर्द्धकुंभ मेले में अपेक्षा अनुरूप राजनीति के नित नए अध्याय लिखे और मिटाए जा रहे हैं. बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व इस विशाल धार्मिक आयोजन के बहाने राजनीतिक हवा के बहाव को भी समझने बूझने की कोशिश में नित नए प्रयोग कर रहा है.

ऐसे में रोज बदलते राजनीतिक घटनाक्रम की धुरी में अर्धकुंभ मेला भी है जहां एक-एक कदम नाप तौल के रखने के बावजूद बीजेपी को बदलते समीकरणों के साथ तार-तम्य बनाने में असुविधा हो रही है. नवीनतम घटनाक्रम मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक से जुड़ा है, जहां एक तरफ बीजेपी लखनऊ से बाहर कुंभ मेला क्षेत्र में होने वाली इस बैठक का प्रचार करने में महीनों से लगी हुई थी लेकिन ऐन वक्त पर गठबंधन के सहयोगी दल सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने बैठक में न जाकर मीडिया का सारा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लिया.

वर्ष 2000 में उत्तराखंड के अलग होने के बाद जनवरी महीने के आखिरी मंगलवार को यह पहला मौका था, जब राज्य सरकार की कैबिनेट बैठक राजधानी लखनऊ से बाहर हुई. इससे पहले 1962 में पण्डित गोविंद वल्लभ पंत के शासनकाल में एक बार प्रदेश कैबिनेट की मीटिंग अविभाजित उत्तर प्रदेश के नैनीताल जनपद में हुई थी.

पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत उत्तरप्रदेश की योगी सरकार की कैबिनेट बैठक प्रयागराज स्थित कुंभ मेले में हुई और इस बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले भी हुए. लेकिन इस अहम बैठक में प्रदेश के दिव्यांग कल्याण मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की गैर मौजूदगी के बाबत शीर्ष मंत्रिमंडल समेत बीजेपी के वरिष्ठ पदाधिकारियों के पास भी कोई जवाब नहीं था.

गौरतलब है कि ओमप्रकाश राजभर सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू न होने से नाराज हैं और उन्होंने इसके लिए प्रदेश सरकार को सौ दिन का अल्टीमेटम दिया है. इसी नाराजगी के तहत राजभर ने न सिर्फ कैबिनेट बैठक से दूरी बनाकर रखी बल्कि बैठक से पहले और बाद में मीडिया के सामने बयान देकर अपने मन्तव्य को स्पष्ट करने के कोई कसर नहीं छोड़ी है.

ओम प्रकाश राजभर

ओम प्रकाश राजभर

दूरभाष पर बात करते हुए प्रदेश के दिव्यांग कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने अपनी मांग दोहराते हुए कहा, 'जब तक 27 प्रतिशत आरक्षण में तीन संवर्ग महादलित, अति दलित और अति पिछड़ा दलित का बंटवारा नहीं होगा तब तक हम या हमारा कोई पदाधिकारी उनके किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे. हमने उनको 24 फरवरी तक की मोहलत दी है और यदि तब तक हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो बीजेपी के साथ गठबंधन का आखिरी दिन होगा.'

कौन होगा सुभासपा के साथ

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हलकों में ओमप्रकाश राजभर की पिछले कुछ दिनों से शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में रहने की चर्चाएं जोरों पर हैं और यह भी माना जा रहा है कि बीजेपी से गठबंधन टूटने स्थिति में शिवसेना उत्तर प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों पर सुभासपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती है. पिछले कुछ महीनों से जिस प्रकार शिवसेना के नेता बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व और केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं और पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादकीय में भी बीजेपी पर लगातार कटाक्ष लिखा जा रहा है ऐसे में यह माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले शिवसेना अपना रास्ता बीजेपी से अलग कर सकती है.

और इस लिहाज से उत्तर प्रदेश में सुभासपा जैसे दलों से गठजोड़ की कवायद को बल मिला है. इसके अलावा ओमप्रकाश समय समय पर सपा-बसपा गठबंधन की तारीफ करते रहते हैं, ऐसे में शिवसेना और बीजेपी अगर अपने रिश्ते ठीक रखने में कामयाब हुए तो ओमप्रकाश के सपा-बसपा गठबंधन के साथ जाने के रास्ते भी खुले हुए हैं.

क्या होगा सुभासपा का भविष्य 

ओम प्रकाश राजभर ने राजनीति का ककहरा बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम से सीख कर 1981 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा था, लेकिन 2001 में मायावती से विवाद के बाद पार्टी छोड़ कर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का गठन किया था. सुभासपा ने 2004 से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश और बिहार में कई चुनावों में राजभर बाहुल्य सीटों पर प्रत्याशी उतारे लेकिन उनकी स्थिति वोटकटवा से अधिक नहीं हो पाई, 2012 के बाद सुभासपा को खेमेबन्दी का लाभ मिला और 2017 में बीजेपी गठबंधन में पार्टी को कुछ सीटों पर जीत भी मिली. लेकिन पिछले दो सालों से ओम प्रकाश राजभर का बार-बार कोप भवन में बैठना बीजेपी को रास नहीं आ रहा है.

ओमप्रकाश राजभर ने कोई कसर न छोड़ते हुए लगातार बीजेपी को घेरने का काम किया है. यहां तक कि गोरखपुर उपचुनाव हारने के बाद ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि उनकी अनदेखी की वजह से बीजेपी गोरखपुर की सीट हारी है. इसके अलावा वे समय-समय पर विपक्ष के नेताओं समेत अखिलेश यादव, मायावती और राहुल-प्रियंका की तारीफ करते रहते हैं.

बीजेपी आलाकमान लोकसभा में कोई नुकसान नहीं उठाना चाहता है और ऐसे में ओम प्रकाश राजभर की जगह को अनिल राजभर से भरकर राजभर मतों की नाराजगी को कम करने का प्रयास किया गया है. कैबिनेट में ओमप्रकाश की अनुपस्थिति पर भी बीजेपी की तरफ से सबसे पहला बयान अनिल राजभर की तरफ से आया और उन्होंने ओम प्रकाश को गठबंधन धर्म का निर्वाह करने की नसीहत भी दोहराई.

उत्तर प्रदेश सरकार के होमगार्ड्स मंत्री अनिल राजभर ने इस बाबत हमें दूरभाष पर बताया, 'हमारे जितने सहयोगी दल हैं, उन्हें साथ मिल कर चलना चाहिए, बीजेपी की तरफ से कोई कमी नहीं है, कैबिनेट बैठक में शामिल होने या न होने के लिए सभी स्वतंत्र हैं लेकिन उन्हें सम्मान और संस्कार की राजनीति करनी चाहिए.'

ओमप्रकाश राजभर द्वारा राहुल और प्रियंका गांधी की तारीफ किए जाने के बाबत अनिल राजभर ने कहा, 'गाँधी परिवार या किसी भी विपक्षी नेता की तारीफ करना उनके व्यक्तिगत विचार हैं और हमारा इससे कोई लेना देना नहीं है, रही बात नेतृत्व की तो हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का कोई विकल्प नहीं है.'

बीजेपी और राजभर समुदाय 

पूर्वांचल की 14 लोकसभा सीटों पर राजभर समुदाय के वोटों की संख्या निर्णायक लड़ाई की दशा और दिशा बदलने में सक्षम है. ऐसे में महत्वपूर्ण घटक दल सुभासपा के अलग होने का डर बीजेपी को लंबे समय से है. इन वोटों को अपने खेमे में लाने के उद्देश्य से बीजेपी ने वाराणसी जिले की शिवपुर सीट से बीजेपी विधायक अनिल राजभर को राज्य मंत्री पद का दर्जा देने के साथ लगातार कुछ अन्य कदम भी उठाए हैं.

इसी क्रम में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 24 फरवरी 2016 को बहराइच जिले में गुल्लावीर इलाके में महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा का अनावरण किया था. उसके बाद रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने 13 अप्रैल 2016 को गाजीपुर रेलवे स्टेशन से महाराजा सुहेलदेव के नाम पर शुरू की गई ‘सुहेलदेव सुपरफास्ट एक्सप्रेस’ को हरी झंडी दिखाई.

Manoj Sinha

उसके बाद 29 दिसंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गाजीपुर में महाराजा सुहेलदेव के नाम पर डाक टिकट जारी करके पूर्वांचल के पासी और राजभर समुदाय को साधने की भरपूर कोशिश की गई है.

बीजेपी ओमप्रकाश राजभर का विकल्प देकर पूर्वांचल में सुभासपा को दरकिनार करना चाहती है, और इसी कारणवश बीजेपी ने राजभर मतों को अपने पक्ष में करने की जिम्मेदारी राज्यमंत्री अनिल राजभर को सौंपी है. राजभर मतों का ध्रुवीकरण अपनी तरफ कराने के लिए अनिल राजभर के कद को बढ़ा कर ओमप्रकाश राजभर का विकल्प दिए जाने की कवायद लगातार जारी है.

शीर्ष नेतृत्व से जुड़े बीजेपी सूत्रों के अनुसार अगले लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी पूर्वांचल में सुभासपा को दरकिनार भी कर सकती है. गौरतलब है कि पूर्वांचल के कई जिलों में राजभर समाज की संख्या चुनाव की हार जीत के समीकरणों को प्रभावित करने में सक्षम है. इन जनपदों में मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर, देवरिया, बलिया, गोरखपुर, बस्ती, चंदौली, वाराणसी आदि प्रमुख हैं. प्रदेश में राजभर समुदाय का प्रतिशत 2.60 है लेकिन पूर्वांचल की 125 विधानसभा सीटों में इनकी अच्छी खासी आबादी है, और पूर्वांचल की जातिगत गणना में राजभर समुदाय की संख्या करीब 18 प्रतिशत है.

पूर्वांचल में अनिल और ओम प्रकाश राजभर के बीच पिछले कुछ महीनों से चल रही ज़ुबानी जंग अब मीडिया लिए एक रोजमर्रा की खबर बन चुकी है. ऐसे में बीजेपी को सुभासपा के विकल्प के रूप में कुछ नया करने का भी दबाव बढ़ रहा है. ऐसे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि चुनावी गुणा-गणित के बीच हो रहे कुंभ मेले के माध्यम से बीजेपी राजभर समुदाय को रिझाने के क्रम में कुछ नई घोषणाएं भी करेगी.

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