पंजाब नेशनल बैंक में 11,400 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आने के बाद देश में सियासी कलह शुरू हो गई है. बीजेपी और कांग्रेस घोटाले के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. दोनों प्रमुख दलों के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों की बौछार हो रही है. कांग्रेस की दलील है कि घोटाले के संबंध में प्रधानमंत्री मोदी को जुलाई 2016 में ही सभी दस्तावेजों सौंप दिए गए थे. लेकिन सरकार ने फिर भी कुछ नहीं किया. वहीं बीजेपी का आरोप है कि घोटाले की शुरुआत 2011 में यूपीए शासन के दौरान हुई. लिहाजा घोटाले की जिम्मेदार कांग्रेस है.
भूल जाइए कि घोटाला कब हुआ या कब इसका खुलासा हुआ. 11,400 करोड़ रुपये के पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) घोटाले को भारतीय बैंकिंग सेक्टर की सबसे बड़ी वित्तीय धोखाधड़ी माना जा रहा है. इस घोटाले की वजह से बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं. यानी घोटाले के चलते इस महत्वपूर्ण चुनावी मौसम में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
पीएनबी घोटाला बीजेपी के लिए घातक
बीजेपी को क्यों मुश्किलें पैदा हो सकती हैं इसकी वजह साफ है. राजनीति में परसेप्शन मैनेजमेंट का बहुत महत्व होता है. लेकिन पीएनबी घोटाले में बीजेपी परसेप्शन मैनेजमेंट के मोर्चे पर नाकाम नजर आ रही है. यही वजह है कि बीजेपी ने यूपीए शासनकाल के इस गड़बड़झाले को अपने सिर ले लिया है. बीजेपी की यही रणनीतिक चूक या लापरवाही उसके लिए खतरा बन सकती है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि घोटाले की शुरुआत 2011 में हुई थी. इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है कि घोटाले का यह गोरखधंधा लंबे वक्त तक चला और फिर आखिरकार पिछले महीने इसका पर्दाफाश हुआ. यह बात भी खास मायने नहीं रखती है कि सरकार की जांच एजेंसियां घोटाले के संबंध में छापेमारी कर रही हैं, कथित घोटालेबाजों के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर रही हैं और उनकी संपत्तियों को जब्त कर रही हैं. अहम बात यह है कि इस मामले में बीजेपी राजनीतिक तौर पर पिछड़ गई है. पीएनबी घोटाला उजागर होने के बाद लोगों को ऐसा लग रहा है कि बीजेपी ने एक और घोटालेबाज को जनता के पैसे लेकर विदेश भागने दिया है.
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पीएनबी घोटाले से बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की साख पर बट्टा लग गया है. अभी तक एनडीए की तरफ से यह दावा किया जाता था कि वह नैतिक तौर पर यूपीए से श्रेष्ठ है. क्योंकि उसके शासनकाल में वित्तीय धोखाधड़ी का एक भी दाग नहीं है. अपनी तमाम कथित और वास्तविक कमियों के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार की छवि स्वच्छ रही है. साथ ही सरकार ने खुद को विवादों से भी बचाए रखा है. विपक्ष ने ललित मोदी, विजय माल्या या राफेल डील के मुद्दे पर सरकार को बार-बार फंसाने की कोशिश की, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिल सकी.
यूपीए शासनकाल में हुए घोटालों से बदनाम कांग्रेस ने तो मोदी सरकार को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं रखी है. कांग्रेस को जब मौका मिला उसने मोदी सरकार की स्वच्छ छवि के तिलिस्म को तोड़ने की कोशिश की. यहां तक कि कांग्रेस ने नोटबंदी को 'शताब्दी का सबसे बड़ा घोटाला' करार दिया था. लेकिन यह सभी आरोप मोदी सरकार की छवि को धूमिल नहीं कर पाए.
लेकिन अब बदल सकती है तस्वीर
दरअसल मोदी सरकार पर कांग्रेस और बाकी विपक्ष की तरफ से लगाए गए आरोप इतने मजबूत नहीं थे कि वे मोदी की भ्रष्टाचार विरोधी छवि को भेदने में सफल हो पाते. साथ ही विपक्ष के आरोप मतदाताओं की कल्पना को जागृत करने में भी नाकाम साबित हुए. इसके उलट विपक्ष के आरोपों का मोदी सरकार को फायदा जरूर मिला. चुनाव दर चुनाव बीजेपी राजनीतिक 'बॉक्स ऑफिस' पर कामयाबी के झंडे गाड़ती गई. लेकिन अब यह तस्वीर बदल सकती है.
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हर घोटाले पर सार्वजनिक बहस-मुबाहिसे के दो पहलू होते हैं. इनमें एक क्रियाशील (ऑपरेशनल) पहलू होता है. जिसमें दोषियों और उसके सहयगियों का विवरण, प्रासंगिक सूचनाएं और 'मूल्य श्रृंखला' में राजनीतिक लाभार्थियों का जिक्र होता है. इनके साथ-साथ नियंत्रकों और नियामकों (रेगुलेटर्स) की भूमिका का विवरण भी शामिल होता है. यह सूचनाएं और विवरण लंबी खोजबीन के बाद मिलते हैं और फिर न्यायपालिका की कार्यवाही के दौरान उजागर होते हैं. ऐसे मामलों में नतीजे अक्सर देर से सामने आते हैं. वहीं कुछ मामलों में नतीजे कभी आते ही नहीं हैं.
दूसरा पहलू राजनीतिक होता है. इसके तहत किसी अपराध के लिए सार्वजनिक फैसला त्वरित होता है. लोगों का यह त्वरित निष्कर्ष किसी भी नियामक, न्याय प्रक्रिया या मीडिया जांच पर निर्भर नहीं करता है. इसके लिए तो तथ्यों की स्पष्टता और संक्षिप्तता की जरूरत होती है, ताकि एक सीधे और आकर्षक निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके. हालांकि ऐसे मामलों में तर्क का अभाव या अंतर हो सकता है, लेकिन नतीजा समान ही रहता है. यहां सिर्फ एक ही बात मायने रखती है कि क्या लोगों को समझाया और संतुष्ट किया जा सकता है या नहीं.
यह राजनीतिक पहलू ही है जो लोगों के बहस-मुबाहिसों के मुद्दे और बिंदु तय करता है. और फिर लोगों का यही चिंतन-मनन अक्सर चुनावी लड़ाइयों के नतीजे भी तय करता है. जिस पक्ष की कहानी सच होती है वह जीत हासिल करता है. कांग्रेस को यह बात पता होनी चाहिए.
Guide to Looting India by Nirav MODI
1. Hug PM Modi 2. Be seen with him in DAVOSUse that clout to:
A. Steal 12,000Cr B. Slip out of the country like Mallya, while the Govt looks the other way.
— Office of RG (@OfficeOfRG) February 15, 2018
कांग्रेस का आरोप बेतुका है
कांग्रेस की कहानी में कई विसंगतियां हैं. उदाहरण के तौर पर, प्रधानमंत्री मोदी के साथ घोटाले के मुख्य आरोपी नीरव की तस्वीर. जिसको लेकर कांग्रेस मोदी के खिलाफ हमलावर है. लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस यह बताना भूल गए हैं कि मोदी और नीरव के बीच कोई बैठक नहीं हुई थी. नीरव प्रधानमंत्री मोदी के बुलावे पर दावोस नहीं गए थे बल्कि वह तो खुद ही वहां पहुंच गए थे. उसी दौरान नीरव ने मोदी के साथ तस्वीर खिंचवाई थी.
#NiravModi did not meet PM Modi at Davos. Nirav Modi had arrived in Davos on his own and was present at CII group photo event: Union Minister Ravi Shankar Prasad in Delhi pic.twitter.com/9WINkuz4LQ
— ANI (@ANI) February 15, 2018
घटनाक्रम यह स्पष्ट करता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 23 जनवरी को दावोस की यात्रा की थी. यानी पीएनबी घोटाले के सार्वजनिक होने और धोखाधड़ी में शामिल बैंक कर्मचारी के रिटायरमेंट के दो दिन पहले. ऐसे में कांग्रेस का महज एक तस्वीर के सहारे प्रधानमंत्री पर आरोप लगाना कहां तक जायज है.
सच तो यह है कि घोटाले का यह खेल 2011 में उस वक्त शुरू हुआ था जब मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी. और शायद एनडीए के सत्ता में आने से पहले ही बड़े पैमाने पर पैसों का गोलमाल हो चुका था.
तथ्य तो यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अक्सर ठगी के शिकार बनते रहते हैं. इस तरह वह गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की संख्या में इजाफा कर देते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का नियंत्रण और व्यवस्था ठीक नहीं है. बैंकों के राष्ट्रीयकरण का यह एक दुर्भाग्यपूर्ण साइड इफेक्ट है.
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तथ्य यह है कि कांग्रेस पीएनबी घोटाले का सारा दोष बीजेपी के मत्थे मढ़कर अपना दामन बचा रही है. लेकिन सच्चाई तो यह है कि ऐसे ज्यादातर मामलों से उत्पन्न हुई क्रोनी कैपिटलिज्म की व्यवस्था कांग्रेस की दुर्भाग्यपूर्ण विरासत है. तथ्य यह भी है कि अगर किसी के साथ एक तस्वीर में नजर आना गुनाह है, तो फिर राहुल गांधी भी गुनहगार हैं. क्योंकि कांग्रेस के एक पूर्व नेता ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी भी नीरव के कुछ कार्यक्रमों में शिरकत कर चुके हैं. अगर यह सच है तो राहुल को भी घोटालेबाजों का सहयोगी माना जाना चाहिए.
Live on @ZeeBusiness - Throwing open challenge to @OfficeOfRG - was he not attending events by Nirav Modi who was looting our money #PNBScam - I'm ready to undertake lie detector test that Rahul met him in 2013 event- did he like bridal jewellery - 2011 scam had started - watch https://t.co/jbHow0wnTV
— Shehzad Jai Hind (@Shehzad_Ind) February 15, 2018
सीधी-सरल कहानी से बीजेपी को नुकसान
इन छोटी विसंगतियों को बड़े तथ्य के तौर पर सिर्फ इसलिए पेश किया जा रहा है क्योंकि नीरव मोदी, उनके परिवार के सभी सदस्य और उनके सहयोगी देश छोड़कर चले गए हैं. लिहाजा इस मामले ने एक बार फिर से विजय माल्या केस की यादें ताजा कर दी हैं. साथ ही इससे लोगों की यह धारणा और मज़बूत हो गई है कि सरकार अपने तमाम दावों और इरादों के बावजूद घोटालेबाजों पर नकेल कसने में नाकाम है.
#NiravModi's wife, an American citizen, left India on 6 Jan 2018, Mehul Choksi left the country on 4 Jan 2018., #NiravModi's brother Nishal Modi, a Belgian citizen, left India on 1 Jan 2018. CBI had issued look out circulars against all accused on 31 Jan 2018: Official Sources
— ANI (@ANI) February 15, 2018
फिलहाल लोगों को एक ही सीधी और सरल कहानी समझ में आ रही है. लोगों को लग रहा है कि भारतीय बैंकों से 11,400 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने के आरोपी नीरव मोदी को सरकार ने देश छोड़कर जाने की इजाजत दी है.
वहीं घोटाले को लेकर एक तथाकथित शिकायती पत्र बीजेपी को जहां बैकफुट पर ला रहा है, वहीं कांग्रेस को बढ़त दिलाता दिख रहा है. कांग्रेस के मुताबिक 2016 में प्रधानमंत्री कार्यालय में एक शिकायती पत्र भेजा गया था, जिसमें नीरव मोदी और उनके सहयोगियों की वित्तीय लेनदेन की जांच का अनुरोध किया गया था. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पीएमओ ने उस शिकायती पत्र को बाकायदा स्वीकार भी किया था. लेकिन फिर भी नीरव मोदी और उनके सहयोगियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.
#BREAKING | CNN-News18 has accessed complainant letter to PMO on Nirav Modi. Complainant received acknowledgment from PMO over letter in 2016 | @Ashish_Mehrishi with details. #BigBankScam pic.twitter.com/P6awXgS5ws
— News18 (@CNNnews18) February 15, 2018
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि पीएमओ, वित्त मंत्री और वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू) ने नीरव के खिलाफ शिकायती पत्र पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया. यही वजह है कि घोटाले के आरोपी और डिजाइनर-व्यवसायी नीरव मोदी को भारत से भागने का मौका मिल गया.
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वैसे कांग्रेस से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर उसे नीरव मोदी की वित्तीय गड़बड़ियों की पुख्ता जानकारी थी तो वह दो साल तक शांत क्यों बैठी रही? नीरव के खिलाफ शिकायती पत्र पर सरकार की 'निष्क्रियता' पर कांग्रेस ने कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों नहीं की?
लेकिन तमाम राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों और बहस-मुबाहिसों से पहले ही यह सवाल मुरझा चुके हैं. नीरव मोदी भारत से बचकर निकल गए हैं और यूपीए शासनकाल की तमाम बैंकिंग गड़बड़ियों को खत्म करने की बीजेपी की कवायदों को पलीता लग चुका है. उल्टे बीजेपी सरकार को अब मिली भगत और अक्षम होने के आरोप झेलने पड़ रहे हैं. यह बीजेपी के लिए दोहरा और खतरनाक झटका है.
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