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2019 के महासमर में OBC नरेंद्र मोदी की काट कैसे करेगी कांग्रेस?

देश के लगभग आधे वोटर पिछड़ी जातियों के हैं. लेकिन कांग्रेस की इन्हें लेकर कोई नीति ही नहीं थी. अब उसके सामने मौका है कि इस वर्ग के लिए कुछ ठोस ऑफर करे.

Updated On: Nov 08, 2018 02:39 PM IST

Dilip C Mandal Dilip C Mandal
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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2019 के महासमर में OBC नरेंद्र मोदी की काट कैसे करेगी कांग्रेस?

देश में ओबीसी की इस समय कितनी आबादी है, ये किसी को नहीं मालूम. इसलिए उनकी आबादी जानने के लिए आखिरी उपलब्ध आंकड़े पर भरोसा करते हैं. मंडल कमीशन ने 1980 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत की 52 फीसदी जनता ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग में आती है. मंडल कमीशन का ये अनुमान 1931 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर है क्योंकि उसके बाद हुई किसी जनगणना में एससी और एसटी के अलावा बाकी जातियों और समुदायों को गिना ही नहीं गया.

2011 से लेकर 2016 के बीच देश में एक जाति जनगणना हुई और उस पर 4893 करोड़ रुपए खर्च भी हो गए. लेकिन उसके आंकड़े कभी नहीं आए. इसलिए मंडल कमीशन के अनुमान को सही मानते हुए कहा जा सकता है कि देश में लगभग आधे लोग ओबीसी हैं. संविधान के अनुच्छेद 340 में ओबीसी का मतलब सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग बताया गया है.

देश के आधे लोग ओबीसी हैं तो जाहिर है कि देश के आधे वोटर भी ओबीसी होंगे. देश अगले लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में ये जान लेना दिलचस्प ही नहीं जरूरी भी है देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ओबीसी के लिए क्या ऑफर कर रही है.

जहां तक सत्ताधारी दल की बात है, तो बीजेपी ओबीसी को तीन आधार पर लुभाने की कोशिश करेगी. एक, बीजेपी का प्रधानमंत्री, जो अगले चुनाव में भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार है, खुद ही ओबीसी है और ये बात बार-बार कहता भी है. दो, बीजेपी ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया और तीन, बीजेपी ओबीसी का बंटवारा करके उसमें में दबंग ओबीसी को अलग करेगी और कमजोर ओबीसी जातियों को न्याय दिलाएगी, जिसके लिए सरकार ने रोहिणी कमीशन का गठन किया है. इस कमीशन से कहा गया है कि वो ओबीसी के बंटवारे से जुड़े पहलुओं पर रिपोर्ट दे और बताए कि ये काम कैसे होना है.

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कांग्रेस इनमें से पहले बिंदु पर ज्यादा कुछ नहीं कहती. गुजरात में कांग्रेस के नेताओं ने बेशक ये कहा है कि नरेंद्र मोदी असली ओबीसी नहीं है और उन्होंने अपनी जाति को षड्यंत्र के तहत ओबीसी में शामिल किया है. ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के विधेयक का कांग्रेस ने संसद में समर्थन किया. हालांकि बीजेपी समेत कोई भी राजनीतिक दल ये नहीं बता रहा है कि पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने से ओबीसी को क्या फायदा होगा. ओबीसी के बंटवारे के लिए गठित रोहिणी कमीशन पर कांग्रेस ने अब तक कोई राय नहीं जताई है.

अब बात कांग्रेस की. कांग्रेस की कुछ साल पहले तक कोई ओबीसी नीति नहीं थी. हाल ही में उसने पहली बार अपनी पार्टी में पिछड़ा वर्ग सेल गठित किया है और उसकी अध्यक्षता छत्तीसगढ़ के पार्टी सांसद ताम्रध्वज साहू को सौंपी है.

ताम्रध्वज साहू के नेतृत्व में हाल ही में दिल्ली में पिछड़ा वर्ग का एक सम्मेलन हुआ है और वो देश भर में कांग्रेस पिछड़ा वर्ग सेल की यूनिट गठित करने में लगे हैं. कांग्रेस ने आजादी के कुछेक साल के अंदर उसने चुनाव जीतने का जो फॉर्मूला बनाया वो ब्राह्मण, मुसलमान और दलित गठजोड़ का था. इसमें बाकी जातियां छिटपुट तौर पर जुट जाती थीं.

पिछड़ा वर्ग का एक बड़ा हिस्सा समाजवादी धारा के साथ या फिर किसान नेताओं और क्षेत्रीय दलों के साथ रहा. राममनोहर लोहिया के गैरकांग्रेसवाद के केंद्र में पिछड़ी जातियां ही थीं, लोहिया के नेतृत्व में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी यानी संसोपा का प्रमुख नारा रहा- संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ! कांग्रेस में कई पिछड़े नेता रहे, लेकिन पार्टी ने अलग से पिछड़ों के लिए कोई काम नहीं किया.

इस वजह से संविधान के अनुच्छेद 340 के स्पष्ट निर्देश के बावजूद कांग्रेस की सरकारों ने पिछड़े वर्ग को आरक्षण दिलाने के लिए कोई पहल नहीं की. पहले पिछड़ा वर्ग आयोग यानी काका कालेलकर कमीशन ने ओबीसी आरक्षण की सिफारिश नहीं की. कुल मिलाकर कालेलकर कमीशन सिर्फ ये बता गया कि कांग्रेस पिछड़ों के लिए कुछ भी करने को तैयार नहीं है. जनता पार्टी के कार्यकाल में दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग यानी मंडल कमीशन का गठन हुआ.

लेकिन कमीशन की रिपोर्ट तैयार होने तक जनता पार्टी की सरकार जा चुकी थी और केंद्र में कांग्रेस की वापसी हो गई थी. कांग्रेस की सरकार मंडल कमीशन पर लगभग दस साल तक बैठी रही. 1989 के लोकसभा चुनाव के बाद बनी जनता दल की विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने इसे लागू कर दिया. यानी ओबीसी को केंद्रीय स्तर पर नौकरियों में आरक्षण देने का जो काम संविधान लागू होने के तत्काल बाद हो सकता था, उसमें चालीस साल लग गए. इनमें से ज्यादातर समय देश की सत्ता कांग्रेस के हाथ में थी.

यह दिलचस्प है कि हालांकि मंडल कमीशन लागू करने की घोषणा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने की, लेकिन ये रिपोर्ट वास्तव में लागू हुई कांग्रेस की नरसिंह राव सरकार के समय में. मंडल कमीशन के खिलाफ मुकदमे के कारण विश्वनाथ प्रताप सिंह इसे लागू नहीं कर पाए थे. इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नरसिंह राव सरकार ने केंद्रीय नौकरियों में ओबीसी आरक्षण लागू किया. ये आदेश उस समय के कल्याण मंत्री सीताराम केसरी के मंत्रालय से जारी हुआ, जो खुद भी ओबीसी थे. ओबीसी को केंद्रीय सेवा में पहली नौकरी कांग्रेस के शासन काल में मिली.

ये कितने आश्चर्य की बात है कि कांग्रेस आज इस बात का श्रेय तक लेने को तैयार नहीं है कि केंद्रीय सेवाओं में पहला ओबीसी अफसर कांग्रेस की सरकार ने बनाया. कांग्रेस आज सीताराम केसरी को अपना नेता बताने में किसी भी तरह के गर्व का अनुभव नहीं करती. सीताराम केसरी हालांकि बाद में कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने, लेकिन कांग्रेस उन्हें याद करते हुए हिचकती है. यही स्थिति अर्जुन सिंह के साथ भी है. अर्जुन सिंह ने यूपीए वन सरकार में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रहते हुए केंद्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में ओबीसी आरक्षण का बिल पेश किया. इसकी वजह से बड़ी संख्या में ओबीसी स्टूडेंट्स पहली बार केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में पहुंचे. कांग्रेस इस बात का भी श्रेय लेती नजर नहीं आती. अर्जुन सिंह जैसे बड़े नेता को कांग्रेस भुला चुकी है. पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की मांग काफी समय से चल रही थी. लेकिन कांग्रेस इसे टालते रही और इस मांग को अब नरेंद्र मोदी सरकार ने पूरा किया, जबकि इस मांग का कोई विरोध नहीं था और इससे किसी को कोई नुकसान नहीं होना था.

Rahul Gandhi in Dhar Dhar: Congress President Rahul Gandhi waves at the crowd at a public meeting in Dhar district, Madhya Pradesh, Tuesday, Oct 30, 2018. (PTI Photo) (PTI10_30_2018_000121B)

कांग्रेस की ओबीसी नीति या तो नहीं है, या फिर बेहद ढिली-ढाली है. जब तक सवर्ण और खासकर ब्राह्मण उसके साथ थे, तब तक कांग्रेस की ऐसी नीति का एक मतलब था. लेकिन अब जबकि सवर्णों और ब्राह्मणों का बड़ा हिस्सा बीजेपी में जा चुका है, तब कांग्रेस ओबीसी के पक्ष में आक्रामक क्यों नहीं है, यह समझ पाना मुश्किल है. हालांकि कांग्रेस ने अपने अंदर बदलाव लाने की प्रक्रिया शुरू की है. ओबीसी समाज के अशोक गहलोत अब कांग्रेस संगठन में अध्यक्ष के बाद सबसे महत्वपूर्ण पद पर हैं. कांग्रेस के पास अब ओबीसी सेल भी है. यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस 2019 में ओबीसी के लिए क्या ऑफर करती है. कांग्रेस के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र पर नजर रखिए.

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