प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को मुंबई पहुंच रहे हैं. यह यात्रा राजनीतिक हलकों में बेहद अहम मानी जा रही है.
मराठा वोटों को खींचने की कवायद
मोदी मराठा सरदार छत्रपति शिवाजी महाराज की सबसे लंबी मूर्ति बनाने की महत्वाकांक्षी योजना की नींव डालेंगे. जल पूजन में शामिल होकर मोदी न सिर्फ महाराष्ट्र के सबसे लोकप्रिय महापुरुष से खुद और बीजेपी को जोड़ेंगे बल्कि भगवा गठबंधन के साझीदार शिवसेना के सबसे मुख्य हथियार को भी हथियाने की कोशिश करेंगे.
आने वाले नगर निकाय चुनावों से ठीक पहले. प्रतीकों और भावनात्मक राजनीति के लिहाज से कांग्रेस और एनसीपी को इससे धक्का लगेगा. दोनों ही पार्टियों की कमान मराठा सामंती ताकतों के पास है. इन्हीं दोनों की सरकार ने 2005 में सबसे लंबी मूर्ति बनाने की योजना बनाई थी.
वर्ष 2009 और 2014 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने इसका डंका भी पीटा लेकिन इस पर काम शुरू नहीं कर सके. इसके अलावा बीजेपी के पास आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे मराठा समुदाय को भावनात्मक तौर पर समझाने का भी अवसर मिलेगा.
बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) का चुनाव भी अगले दो महीनों में होना है. शिव सेना अपनी जमीन पर पकड़ बनाए रखना चाहेगी. बीजेपी के साथ उसका चुनाव पूर्व समझौता अभी नहीं हुआ है. लेकिन जिस तरह बीजेपी ने नगर निगम के भीतर अनियमितताओं का पिटारा खोला है उससे शिव सेना सकते में है.
अगर समझौता नहीं हुआ और सब अलग लड़े तो शिवसेना को चुनौती देने वाली मुख्य पार्टी के रूप में बीजेपी सामने आ सकती है. अगर किसी को बहुमत नहीं मिला तो दोनों भगवा दल नतीजे घोषित होने के बाद हाथ मिला सकते हैं. जैसा कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हुआ.
शिवसेना भी उतरी मैदान में
अगर समझौता हुआ भी तो भी बीजेपी झुकने के मूड में नहीं होगी और शिवसेना के साथ सख्ती से पेश आएगी क्योंकि विधानसभा और लोकसभा में बीजेपी प्रभावी स्थिति में है. इस वजह से शिवसेना भी सतर्क है. वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.
दूसरी ओर बीजेपी भी छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर पूरा भावनात्मक फायदा उठाना चाहती है. इसे इससे भी समझा जा सकता है कि मोदी इससे जुड़े समारोह में आने वाले हैं, लेकिन इस समारोह में कौन-कौन शामिल होंगे, यह अभी तक तय नहीं है.
स्थितियां लगभग दादर में अंबेडकर की 125वीं जयंती समारोह जैसी बन रही है. तब इस हाई प्रोफाइल समारोह में शिवसेना प्रमुख उद्भव ठाकरे को आमंत्रित नहीं किया गया था.
मूर्ति के लिए जल पूजन समारोह को राज्यव्यापी स्वरूप देने की कोशिश की जा रही है. जहां-जहां शिवाजी के किले थे वहां से मिट्टी और लगभग सभी नदियों से पानी लाने का आह्वान किया गया है.
शिवाजी के वंशज संभाजीराजे इस मौके पर मुख्य अतिथि होंगे. यही अबंडेकर जयंती समारोह में हुआ था. तब अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर को मोदी के साथ मंच पर बिठाया गया था.
खर्चीली परियोजना
घोड़े पर सवार छत्रपति शिवाजी की मूर्ति 192 मीटर ऊंची होगी. यह स्टैचू ऑफ लिबर्टी से भी ऊंची होगी. नरीमन प्वाइंट से तीन किलोमीटर की दूरी पर अरब सागर में इसे बनाया जाएगा. इसमें म्यूजियम, एम्फीथिएटर, ऑडिटोरियम, तुलजाभवानी का मंदिर और पुस्तकालय भी होगा.
जब कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने ये प्रोजेक्ट सामने रखा था तब इसकी लागत 1000 करोड़ रूपए आंकी गई थी. अब ये लागत 3500 करोड़ रूपए हो सकती है. अंदर ही अंदर कुछ हलकों में इसका विरोध भी हो रहा है. विरोधियों के मुताबिक इस विशालकाय मूर्ति के लिए इतना पैसा बहाने की क्या जरूरत है.
सच्चाई यही है कि करदाताओं के पैसे को किसी और अच्छे काम में लगाया जा सकता था. शिवाजी मेमोरियल बनाया जा सकता था जिसमें छात्र तैराकी सीखते, लड़कियां मार्शल आर्ट में माहिर होती या शहर में कोई बड़ा अस्पताल खोल दिया जाता जहां मुफ्त इलाज की व्यवस्था हो.
कांग्रेस और एनसीपी बैकफुट पर
महान योद्धा शिवाजी महाराज को महाराष्ट्र में ब्राह्मणों का विरोध झेलना पड़ा. वह उन्हें शूद्र मानते थे और कहते थे कि क्षत्रिय का खून उनकी रगों में नहीं है. इस वजह से शिवाजी ने अपने राज्याभिषेक के लिए बनारस से ब्राह्मण बुलाए थे.
शिवाजी छापामार शैली के महानायक थे. उन्होंने एक तरह से नौसेना की भी शुरुआत की. वो अपनी छोटी सैन्य टुकड़ी नावों से इधर से उधर ले जाते थे. लेकिन, उनकी सेना में हर जाति और धर्म के लोग थे. मुसलमानों को भी शीर्ष स्थान मिला. हालांकि शिवसेना हमेशा उन्हें मुस्लिमविरोधी बताती रही है.
कांग्रेस और एनसीपी रक्षात्मक रवैया अपनाए हुए हैं. एनसीपी तो पहले से बैकफुट पर है. इसके कई नेताओं के खिलाफ जांच चल रही है और संस्थापकों में शामिल छगन भुजबल स्रोत से कहीं ज्यादा संपत्ति रखने के मामले में जेल में हैं.
आक्रामक होते मराठा
उधर मराठा समुदाय संघर्ष के रास्ते पर है. उनकी मांगों में सिर्फ आरक्षण ही नहीं बल्कि कई और चीजें शामिल है. वह अहमदनगर में मराठी लड़की से रेप और हत्या के दलित आरोपी को फांसी की सजा देने की मांग कर रहे हैं.
वे दलित प्रताड़ना निवारक कानून भी खत्म करवाना चाहते हैं. उनका आरोप है कि दलित समुदाय इस कानून का दुरूपयोग कर रहा है. ब्राह्मण कवि बाबासाहेब पुरंदरे को महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार देने से भी मराठाओं में गुस्सा है.
जेम्स लेन की किताब सामने आने के बाद से ही मराठा-ब्राह्मण तनाव बढ़ा है. लेन ने अपनी किताब इस बात पर संदेह जाहिर किया है कि शाहाजी ही शिवाजी के पिता थे.
कुलीन मराठा हैं मराठा आंदोलन के पीछे
मराठा समुदाय की कई बड़ी मांगे मान ली गई हैं. इसके बावजूद आंदोलन कायम है. आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में आने के लिए अधिकतम आय की सीमा बढ़ा कर छह लाख रूपए कर दी गई ताकि छात्रों को फायदा हो.
रेपकांड में आरोपी के खिलाफ राज्य सरकार ने कोर्ट से फांसी की सजा की मांग की है और प्रताड़ना निवारक कानून पर पुनर्विचार का भरोसा भी दिया है. इसके बावजूद मराठा मार्चों में लाखों की संख्या में लोग जुट रहे हैं और इसमें करोड़ों रूपए खर्च हो रहे हैं.
इससे पता चलता है कि आंदोलन के पीछे धनाढ्य मराठा कुलीनों का हाथ है जो फड़नवीस सरकार से नाराज हैं. फड़नवीस ने सहकारी बैंकों के निदेशकों पर चुनाव लड़ने से रोक लगा दी और निदेशक मंडल में सरकारी सदस्यों को भी शामिल करने का नियम बनाया.
मराठा कुलीन वर्ग अपनी ताकत सहकारी बैंकों से ही पाता है और इसमें दखल से परेशानी बढ़ना स्वाभाविक है.
दूसरी ओर शिवसेना के लिए अपनी ही जमीन को बचाए रखना बड़ी चुनौती बन गया है. खास कर तब जब साझीदार बीजेपी आक्रामक मुद्रा में आ गई है.
भाजपा के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है. इस वजह से वह हर दांव आजमाएगी. लेकिन अगर शिवसेना बीएमसी चुनाव में हार जाती है तो यह उसके लिए विनाशकारी साबित होगा.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.