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'रेनकोट में मनमोहन' वैसे बात इतनी गलत भी नहीं

यह संभव है कि मनमोहन फिसल गए हों या उन्हें राजनीतिक कीचड़ में पार्टी ने धकेल दिया हो

Updated On: Feb 09, 2017 09:34 PM IST

BV Rao BV Rao
एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट

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'रेनकोट में मनमोहन' वैसे बात इतनी गलत भी नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसद में दिए बयान के बाद पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से आरोप लगाए जा रहे हैं.
मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में कहा था, 'सिर्फ डॉक्टर साहब को ही रेनकोट पहनकर बाथरूम में नहाने की कला आती है. और किसी को नहीं.'
मोदी का इशारा मनमोहन सिंह के राज में हुए रिकॉर्डतोड़ घोटालों के बावजूद उनकी कथित साफ-सुथरी छवि की ओर था.
आप भले कभी कभार ही टीवी देखने वालों में से हों, फिर भी आपने शायद सर्फ एक्सल का विज्ञापन ज़रूर देखा होगा. विज्ञापन की कैचलाइन है, 'अगर दाग से कुछ अच्छा होता है, तो दाग अच्छे हैं.'
 

दूसरे कार्यकाल में बिगड़ी मनमोहन सिंह की छवि

आप सोच सकते हैं कि मैं मनमोहन सिंह को लेकर इस विज्ञापन का जिक्र क्यों कर रहा हूं. कनेक्शन क्या है?

कनेक्शन यह है कि वह आदमी जिसने भारतीय राजनीति में स्वच्छता पुरुष की छवि के साथ शुरुआत की थी उसकी छवि अपने दूसरे कार्यकाल में इतनी बिगड़ी कि लगने लगा कि उन्हें 'दाग अच्छे' लगने लगे हैं.

आम राय यही है कि मनमोहन बाकी नेताओं के जैसे नहीं हैं. उन्हें अब भी भला प्रोफेसर माना जाता है जो भटककर राजनीति में तो आ गए लेकिन अपने आसपास की तमाम राजनीतिक कीचड़ से ऊपर रहे हैं.

यह सब दिखावा है. प्रधानमंत्री रहते हुए मनमोहन कीचड़ से उस तरह तो नहीं खेले जैसे सर्फ एक्सल के विज्ञापन में बच्चा खेलता है लेकिन उन्होंने जानबूझकर अपनी शेरवानी जरूर गंदी करवाई.
सरकार बचाने के लिए किया भ्रष्टाचार से समझौता 
आय से ज्यादा संपत्ति के मामले को लटकाने के बारे में उन्होंने तब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती से डील की. इसे मीडिया ने भले ही राजनीतिक समझदारी का नमूना बताया लेकिन थी तो यह देश की ईमानदार जनता से धोखाधड़ी.
यह संभव है कि मनमोहन फिसल गए हों या उन्हें राजनीतिक कीचड़ में पार्टी ने धकेल दिया हो. लेकिन ईमानदार, साफ, पारदर्शी, पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी प्रधानमंत्री हर राजनीतिक मोड़ पर नहीं फिसला करते.
pm modi
याद करें कि कैसे मनमोहन के राज में सीबीआई ने क्वात्रोची को बोफोर्स केस में बचने दिया. जुलाई 2008 में अपनी सरकार को बचाने के लिए मुलायम सिंह यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में देर की.
मायावती के खिलाफ केस चलाने की मंजूरी (राज्यपाल के जरिए) नकार दी और सीबीआई अदालत से लालू यादव के बरी होने के मामले में अपील करने से इनकार कर दिया.
शिबू सोरेन से हुई डील भी इसी फेहरिस्त में आती है. यह मत भूलिए कि संसद के इतिहास में पहली बार, उनके ही राज में, विश्वास मत पर बहस के दौरान सांसदों ने तीन करोड़ रुपये लहराए थे, निश्चित तौर पर तब सांसदों की कीमत लगाई जा रही थी.
टूजी और कोयला घोटाले पर तो हजारों-लाखों पन्ने काले हो चुके हैं. कुल मिलाकर नेताओं और राजनीतिक दलों ने इतनी बार जनता के भरोसे को तोड़ा कि देश की अंतरात्मा सुन्न हो गई और गठबंधन साझेदारों से तालमेल के लिए मनमोहन को राजनीतिक चतुराई के तमगे मिले.
मनमोहन सिंह के दाग सर्फ एक्सेल से भी नहीं धुलेंगे
सही बात है, तब मनमोहन को लगा होगा कि कपड़े गंदे कर के वो अपनी सरकार तो बचा ही सकते हैं, तब तो दाग अच्छे हुए न?
यह मनमोहन की पसंद ही थी कि वो साफ-सुथरे प्रधानमंत्री से चतुर नेता में तब्दील हो गए. लेकिन राजनीति के गंदे नाले में कूदकर उन्होंने राजनीतिक ईमानदारी से अपना दावा भी खो ही दिया.
सत्ता से बाहर होने के बाद भी उनके कपड़ों पर टूजी और कोयला घोटाले के दाग कायम हैं. सर्फ एक्सेल कितना ही अच्छा क्यों न हो, सारे दाग तो यह भी नहीं धो सकता.

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