प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जयपुर रैली ऐतिहासिक रही. 2 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ जुटी, 2100 करोड़ की योजनाओं का शिलान्यास हुआ और 12 योजनाओं के लाभार्थियों के अनुभव का एक स्क्रीन प्रेजेंटेशन भी दिखाया गया. आधे घंटे से ज्यादा के अपने भाषण में मोदी ने कांग्रेस पर जमकर निशाना भी साधा.
मोदी ने सोनिया और राहुल गांधी पर चल रहे नेशनल हेराल्ड केस पर चुटकी भी ली. मोदी ने कहा कि कांग्रेस अब 'बेल' गाड़ी पार्टी है. हालांकि प्रतिक्रिया में कांग्रेस ने कहा कि सत्ता आने पर वो बीजेपी वालों को बेल लायक भी नहीं छोड़ेंगे.
पर ये तो अब सबको पता है. हम आपको जो बताना चाहते हैं, वो है इस रैली के पहले और बाद की तैयारी, खौफ और नतीजा. रैली पर लगे आरोप और करोड़ों खर्च करने के बाद इस रैली से किसी को भी आखिर हासिल क्या हुआ?
खौफ का नाम रंग काला
इस रैली के लिए बहुत पहले से तैयारी शुरू कर दी गई थी. इस तैयारी के दौरान मीडिया का जिस एक चीज ने सबसे ज्यादा ध्यान खींचा, वो था आयोजकों और अधिकारियों के बीच काले रंग का खौफ. खौफ इस कदर था कि काले रंग के खिलाफ बाकायदा सरकारी आदेश निकाले गए.
सभी को साफ निर्देश थे कि रैली में आने वाले एक इंच भी काले रंग का कोई निशान या कपड़ा न ला पाएं. आलम ये था कि लोगों से काली शर्ट उतरवा ली गई, काले रुमाल रखवा लिए गए, काली टोपी, काली चुनरी और काले मौजों तक को उतरवा लिया गया. यही नहीं, बुर्के में आई जिन महिलाओं से बुरका उतारने को नहीं कहा जा सका, उन्हें वापस ही भेज दिया गया.
दरअसल, 3 महीने पहले विश्व महिला दिवस पर झुंझुनू में आयोजित हुए कार्यक्रम में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को काले झंडे दिखाए गए थे. इसी दिन बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के भी तीन साल पूरे हो रहे थे और प्रधानमंत्री मोदी इसके मुख्य अतिथि थे. बताया जा रहा है कि काले झंडों के लहराए जाने पर प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से गहरी नाराजगी जताई गई थी. इससे मिले सबक का ही नतीजा है कि इस बार खासी चौकसी बरती गई.
वीआईपी संस्कृति से हटने की कोशिश
मोदी सरकार की जिन कामों के लिए चर्चा की जाएगी, उनमें लाल बत्ती संस्कृति पर रोक लगाना भी एक विषय होगा. अब कुछ ऐसी ही कोशिश इस रैली के दौरान वसुंधरा राजे ने भी की है.
मंच पर विशिष्ट अतिथियों को छोड़ कर पंडाल में कहीं भी किसी वीआईपी के लिए कोई कुर्सी नहीं लगाई गई. रैली में आए सभी मंत्री, सांसद, विधायक और बाकी नेता दूसरे लोगों के साथ कार्पेट पर ही बैठे. शायद ये दिखाने की कोशिश हो कि बीजेपी सबका साथ सबका विकास की ही तरह सबको समान भी मानती है.
मंच पर भी चुनिंदा कुर्सियां ही लगाई गई थी. यहां मोदी और राजे के अलावा राज्यपाल, विधानसभाध्यक्ष, गृहमंत्री, प्रदेशाध्यक्ष और 5 केंद्रीय मंत्री ही कुर्सियों पर बैठे थे. हालांकि एक और विषय जानकारों के बीच चर्चा का रहा. वो ये कि पांचों केंद्रीय मंत्रियों में से किसी का भाषण नहीं हुआ. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के अलावा सिर्फ गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने ही भाषण दिया.
रैली का राजनीतिक संदेश
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में 5 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव का पूरा ध्यान रखा. न सिर्फ उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधा बल्कि अपने कार्यकर्ताओं को भी 2 खास संदेश देने की पूरी कोशिश की.
पिछले कुछ दिन से राज्य बीजेपी, चुनाव के लिए अपनी तैयारियों से ज्यादा आपसी कलह को लेकर ज्यादा चर्चा में थी. इतिहास में पहली बार लगभग ढाई महीने तक प्रदेशाध्यक्ष का पद खाली रहने के पीछे भी वसुंधरा और केंद्रीय नेतृत्व के बीच तनातनी ही मानी गई थी. इसी पर कुछ लोग राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की मांग भी उठा रहे थे.
मोदी ने अपने भाषण में कई बार वसुंधरा की तारीफ की. उन्हें बहन कहकर संबोधित किया. सबसे ज्यादा लोकप्रिय मुख्यमंत्री भी बताया. काम करने की जुनूनी भी बताया. ये साफ इशारा था कि चुनाव तो वसुंधरा के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. यानी सत्ता वापस आने की सूरत में भी मुख्यमंत्री का बदला जाना लगभग नामुमकिन है.
यह भी पढ़ें: पीएम मोदी की रैलियों से नहीं पड़ने वाला फर्क, जनता सब जानती है: सचिन पायलट
लेकिन वसुंधरा को शाबाशी के साथ ही उन्हें कंट्रोल करने की भी कोशिश एक साथ ही की. प्रदेशाध्यक्ष के मुद्दे पर उन्होंने इशारा दिया कि मदन लाल सैनी को केंद्रीय नेतृत्व का पूरा समर्थन है. यानी वसुंधरा गुट, सैनी को कमजोर समझ कर दबाने की कोशिश नहीं कर सकता. मोदी ने कहा कि संगठन के काम से जब भी वे राजस्थान आते थे तो मदन लाल सैनी के साथ ही यात्रा करते थे. दिल्ली आफिस में भी मोदी, सैनी और ओम माथुर के दफ्तर अगल-बगल ही हुआ करते थे.
कांग्रेस का पलटवार
मोदी ने चाहे कांग्रेस को कोसा और राजे की पीठ थपथपाई हो. लेकिन कांग्रेस ने उनके विकास के दावों को खोखला बताया. राष्ट्रीय संगठन महासचिव अशोक गहलोत ने पूरे कार्यक्रम को ही फ्लॉप करार दिया. गहलोत ने कहा कि करोड़ों खर्च करवाने के बाद भी पीएम ने राज्य को कोई सौगात नहीं दी.
प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने इस आयोजन की ही निंदा करते हुए सरकार पर जनता की कमाई को बेकार लुटाने का आरोप लगाया. पायलट ने कहा कि सरकारी योजना के लाभार्थियों से संवाद के नाम पर इसे बीजेपी का आयोजन बना दिया गया.
सरकारी अधिकारियों के जिम्मे था आयोजन
वैसे इस रैली पर पहले से ही ऐसे सवाल बहुत ज्यादा उठ रहे हैं. अमूमन ऐसी रैलियों के आयोजन और भीड़ जुटाने का काम पार्टी और स्थानीय नेता ही करते हैं. लेकिन इसबार भीड़ जुटाने का काम प्रशासनिक अधिकारियों के जिम्मे रहा. बाकायदा सरकारी आदेश निकाले गए कि किस जिला कलेक्टर को कितनी भीड़ लानी है और किस आरटीओ को कितनी बसों का इंतजाम करना है.
एक हफ्ते पहले से सारे अधिकारी सरकारी काम छोड़कर बीजेपी की विचारधारा वाले लाभार्थियों को ढूंढने और उन्हें बातचीत का तरीका सिखाने के काम मे जुटे थे. डर था कि कहीं प्रधानमंत्री किसी लाभार्थी से कुछ पूछ न लें. किसानों की नाराजगी को देखते हुए एकबारगी तो उन्हें रैली में ले जाने का कार्यक्रम ही रद्द कर दिया गया था. बाद में आरएसएस से जुड़े किसानों का लाभार्थियों के रूप में चयन किया गया.
बहरहाल, आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह हैं लेकिन रैली के बाद एक बात सबसे अच्छी रही. वो ये कि, सवा 2 लाख लोगों के बाहर से आने के बावजूद न बड़ा ट्रैफिक जाम दिखा और न ही सड़कें गंदगी से बेहाल हुई. शायद पिछले स्वच्छता सर्वेक्षण में जयपुर की ऊंची छलांग और इससे मिली वाहवाही का नतीजा था कि 4 घंटे के अंदर पूरे शहर को स्वच्छ बना दिया गया.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.