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मायावती पर पीएम मोदी का जवाब क्या बीएसपी-बीजेपी के गठजोड़ का इशारा है?

मायावती के बीजेपी के साथ जाने की संभावना को पुष्ट करने के लिए कहा जा रहा है कि बीजेपी के सहयोग से मायावती तीन बार यूपी की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं

Updated On: Jan 02, 2019 05:00 PM IST

Vivek Anand Vivek Anand
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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मायावती पर पीएम मोदी का जवाब क्या बीएसपी-बीजेपी के गठजोड़ का इशारा है?

साल के पहले दिन हुए सबसे बड़े इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी से एक ‘उड़ता’ हुआ सवाल पूछा गया- क्या मायावती बीजेपी के साथ जुड़ सकती हैं? ये उड़ता हुआ सवाल इसलिए है, क्योंकि बिना किसी राजनीतिक संकेत और रुझान के ये सवाल लगातार संभावनाओं के आसमान में उड़ान भर रहा है.

राजनीतिक बहसों में कयास लगाने के माहिर लोग दो तरह की संभावनाओं को पंख देकर बड़े उलटफेर की ओर इशारा दे रहे हैं. पहली- बीजेपी अपने साथ मायावती को लाकर 2019 में विपक्ष के सारे राजनीतिक समीकरणों को धराशायी कर सकती है. दूसरी- हंग असेंबली के हालात में मायावती को टूटी-फूटी सरकार में प्रधानमंत्री की साबूत कुर्सी हासिल हो सकती है और इसमें बीजेपी मददगार साबित होकर एक दलित महिला को प्रधानमंत्री पद दिलवाने का पुण्य हासिल कर कुछ पुराने दाग-धब्बे साफ करने की कोशिश करेगी.

2019 के कठिन चुनावी हालात को देखकर ऐसे हवाई उड़ान काफी दिनों से जारी है. इसलिए साल के पहले दिन के सबसे बड़े इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी से भी यही सवाल पूछ ही लिया गया. इस सवाल पर प्रधानमंत्री मोदी के जवाब ने भी कुछ क्लीयर नहीं किया. उलटे यूं कहें कि उनके जवाब ने  राजनीतिक ‘पतंगबाजी’ के हुनरमंद लोगों को हौसला ही दिया है.

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प्रधानमंत्री मोदी कुछ भी साफ-साफ कहने से बचते हुए बोले- ‘कौन जुड़ सकता है और कौन जुड़ेगा. कोई समझदार आदमी इस बात का जवाब टीवी के सामने नहीं दे सकता.’ उन्होंने न साफ तौर पर जुड़ने की खबर का खंडन किया और न ही ऐसे किसी जुड़ाव को स्वीकार किया. ये प्रधानमंत्री मोदी का स्मार्ट प्ले है. बात बीजेपी और बीएसपी के किसी संभावित गठबंधन की कल्पना करने से ज्यादा इस बयान के पीछे छिपे संदेश में है. बीएसपी प्रमुख मायावती के बीजेपी के साथ जाने की बात को एक किनारे रखकर देखें तो प्रधानमंत्री मोदी के जवाब से दो तरह के संदेश मिलते प्रतीत होते हैं.

पहली- प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ साफ-साफ न बोलकर मायावती के साथ जाने वाले दलों और यूपी में आकार लेते बीजेपी विरोधी गठबंधन के भीतर एक खलबली मचा दी है. दूसरी- मायावती के उस कोर वोटर्स, जिसके बारे में कहा जाता रहा है कि 2014 में उन्होंने बीजेपी को खुलकर वोट किया था, उस समूह को पीएम मोदी ने किसी भी तरह से हर्ट नहीं करते हुए सहलाने का ही काम ही किया है. अभी बीजेपी के लिए सबसे जरूरी है कि वो किसी भी तरह से दलितों की नाराजगी को कम करे.

PM Modi

जिधर झुकेंगी मायावती वहां का पलड़ा भारी

पिछले काफी वक्त से यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन की चर्चा हो रही है. मीडिया सर्वे तक आ चुके हैं कि अगर यूपी में एसपी-बीएसपी का गठबंधन हो जाता है तो मोदी सरकार की वापसी में मुश्किल होगी. हालांकि मायावती ने इस गठबंधन पर अब तक चुप्पी साधे रखी है. एक तरफ मायावती की चुप्पी और दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी के उनके बीजेपी से जुड़ने के सवाल पर कुछ साफ न बोलकर एक संभावना को जिंदा बनाए रखना, बीजेपी विरोधी दलों के आपसी भरोसे की दीवार पर चोट करने जैसा है.

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जिस तेजी से यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन होने की खबर फैली, उस हिसाब से अब तक दोनों पार्टियों की तरफ से गठबंधन का ऐलान हो जाना चाहिए था. अखिलेश ने तो कई मौकों पर अपनी तरफ से एकतरफा ऐलान कर दिया है लेकिन मायावती ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है. सूत्रों के मुताबिक नए साल के पहले महीने में भी गठबंधन पर मायावती अपना रुख साफ नहीं करने वाली हैं. फरवरी तक ही वो अपना स्टैंड क्लियर करेंगी. उनकी चुप्पी को बीजेपी विरोधी पार्टियां संदिग्ध नजर से देखती हैं. प्रधानमंत्री मोदी के बयान ने शक की दीवार को और चौड़ी कर दी है.

वैसे मायावती के बीजेपी के करीब जाने की खबरें पिछले साल भी उड़ी थीं. फूलपुर गोरखपुर और कैराना उपचुनाव के नतीजों के बाद भी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के सवाल पर मायावती की चुप्पी ने इस बात को बल दिया था कि बीएसपी, बीजेपी के साथ भी जा सकती है. पिछले साल के मध्य ये भी खबर आई थी कि बीजेपी ने मायावती को मनाने के लिए महाराष्ट्र के बड़े दलित नेता रामदास अठावले को लगाया गया है. रामदास अठावले मायावती के नाम बीजेपी का संदेश लेकर यूपी की यात्रा पर भी गए थे.

वहां उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि बीजेपी विरोधी गठबंधन के नाम पर समाजवादी पार्टी मायावती को धोखा दे रही है. मायावती को एनडीए ज्वाइन कर लेना चाहिए. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस और समाजवादियों ने दलितों के वोट तो लिए लेकिन उनका विकास नहीं किया. उसका नतीजा रहा कि दलित पिछड़ते गए और इन पार्टियों का कुनबा बढ़ता गया. दलित इस बात को समझते हैं.

Lucknow : UPA's presidential candidate Meira Kumar meets with BSP supremo Mayawati at her residence in Lucknow on Friday. Congress leader Raj Babbar and BSP's SC Mishra are also seen. PTI Photo by Nand Kumar (PTI7_14_2017_000204B)

लखनऊ में पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार और राज बब्बर से मिलतीं मायावती

मायावती अपना राजनीतिक रुख साफ करने में वक्त लेंगी

मायावती के बीजेपी के साथ जाने की संभावना को पुष्ट करने के लिए कहा जा रहा है कि बीजेपी के सहयोग से मायावती तीन बार यूपी की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. 2022 में यूपी की कमान मायावती को सौंपने के वादे के साथ बीजेपी मायावती को एनडीए में खींच सकती हैं. जबकि समाजवादी पार्टी के नाम पर मायावती के साथ हुए गेस्टहाउस कांड की याद दिलाई जाती है. हालांकि हाल-फिलहाल में मायावती ने बीजेपी के साथ जाने के संकेत नहीं दिए हैं.

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ चुनाव के दौरान भी मायावती ने कांग्रेस और बीजेपी से बराबर दूरी बनाए रखने की बात कही थी. मायावती ने दोनों पार्टियों पर तंज कसते हुए कहा था कि एक सांपनाथ है, तो दूसरा नागनाथ. 2016 में मायावती का बीजेपी-कांग्रेस के लिए उछाला जाने वाला सांपनाथ और नागनाथ वाला बयान पॉपुलर हुआ था. जब-तब वो दोनों पार्टियों पर हमले में इस जुमले को उछालती आई हैं. ये अलग बात है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव नतीजों के ऐलान के बाद मायावती ने कांग्रेस सरकार के समर्थन का ऐलान भी कर दिया. फिलहाल मायावती के पॉलिटिक्स पर कुछ भी कयास लगा लीजिए. जब तक गठबंधन का ऐलान नहीं हो जाता, मायावती के पॉलिटिकल मूड स्विंग की कहानियां तैरती रहेंगी.

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