live
S M L

मोदी की जापान यात्रा: पहले दिल मिले अब दोस्ती निभाने का वक्त

पीएम मोदी की जापान यात्रा से दोनों देशों के रिश्ते ऐतिहासिक मोड़ पर हैं.

Updated On: Nov 18, 2016 05:57 PM IST

Kinshuk Praval Kinshuk Praval

0
मोदी की जापान यात्रा: पहले दिल मिले अब दोस्ती निभाने का वक्त

पीएम मोदी की जापान यात्रा से दोनों देशों के रिश्ते ऐतिहासिक मोड़ पर हैं. दोनों के बीच बढ़ती नजदीकियों के चलते असैन्य परमाणु करार पर दस्तखत होने की उम्मीद जगी है. भारत और जापान के बीच एटमी करार पर बातचीत पिछले कई साल से जारी है.

पिछले साल दिसंबर में दोनों देशों के बीच सहमति बन पाई थी लेकिन तकनीकी और कानूनी पहलुओं की वजह से अंतिम करार पर मुहर नहीं लग सकी थी. दरअसल फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में हुई दुर्घटना की वजह से राजनैतिक गतिरोध था.

जापान ही दुनिया में अकेला देश है जो परमाणु हमले का शिकार रहा है. अब अगर ये डील हो जाती है तो भारत में परमाणु संयंत्र स्थापित करने का रास्ता साफ हो जाएगा.

अब रिश्तों को नया आयाम देने के लिये पीएम मोदी जापान रवाना हो गए.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने सुबह ट्विटर पर कहा, ‘पूर्व की ओर यात्रा शुरू, इस बार जापान के साथ वार्षिक शिखर सम्मेलन होगी, प्रधानमंत्री तोक्यो रवाना हुए’

जापान के पीएम शिंजो आबे के साथ पीएम मोदी सालाना शिखर बैठक करेंगे.

एटमी करार के अलावा दोनों देशों के बीच सुरक्षा और अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा होगी.

Modi_Abe_2_Reuters

इन सबके बीच तीन दिवसीय दौरे में मोदी जापान के सम्राट से भी मुलाकात करेंगे.

सत्ता पर काबिज होने के बाद जापान के पीएम शिंज़ो आबे ने भारत को पहली विदेश यात्रा के लिए चुना था. जिसके बाद पीएम मोदी ने जापान की यात्रा की थी. लेकिन चीन ने मोदी के जापान दौरे को लेकर भारत को चेतावनी दी है.

दरअसल चीनी मीडिया ने पीएम मोदी की 'लुक ईस्ट' पॉलिसी के तहत दक्षिण चीन सागर विवाद में किसी भी दखल पर एतराज जताया है. दक्षिण चीन सागर इस समय चीन की सबसे कमजोर नस है. चीन ने दक्षिण चीन सागर मामले में अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल के फैसले को मानने से साफ इनकार कर दिया है.

चीनी मीडिया की एक रिपोर्ट में कहा है कि "अगर भारत ने जापान के साथ मिलकर दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर हस्तक्षेप किया और चीन को अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल का आदेश मानने को बाध्य करने की कोशिश की, तो उसे बड़ा नुकसान हो सकता है।''

वहीं चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में कहा गया है, 'इस विवाद में पड़ने से भारत का कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि नई दिल्ली और बीजिंग के बीच भरोसा टूटेगा.'

चीन ने जापान के साथ संभावित सिविल न्यूकलियर डील पर भी सवाल खड़े किए, तो साथ ही एक बार फिर एनएसजी की सदस्यता के मामले में भारत का विरोध किया है. जाहिर है कि भारत परमाणु अप्रसार संधि में शामिल नहीं है.इसके बावजूद बातचीत के एजेंडे में जापान को भरोसा दिलाने का प्रावधान भी शामिल होगा कि भारत सैन्य उद्देश्यों के लिये जापानी परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल नहीं करेगा.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi