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नागालैंड में शांति प्रक्रिया पर पानी न फेर दे राजनीतिक लापरवाही

देश में यही एक ऐसा राज्य है जहां विपक्ष है ही नहीं; सरकार को विपक्ष से नहीं, अपनों से खतरा है.

Updated On: Feb 07, 2017 03:19 PM IST

Mukesh Bhushan

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नागालैंड में शांति प्रक्रिया पर पानी न फेर दे राजनीतिक लापरवाही

शांति के रास्ते पर लौटते नागालैंड में थोड़ी-सी राजनीतिक लापरवाही 18 साल की मेहनत पर पानी फेर सकती है. क्या इसकी चिंता केंद्र या राज्य सरकार को है?

यह अपने तरह की विडंबना ही कही जाएगी कि वहां हो रहे ताजा उपद्रवों के लिए विपक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. क्योंकि, देश में यही एक ऐसा राज्य है जहां विपक्ष है ही नहीं. सरकार को विपक्ष से नहीं, अपनों से खतरा है.

डेमोक्रेटिक एलायंस ऑफ नागालैंड (डीएएन) में सभी दल शामिल हैं. करीब 20 लाख की आबादी वाले छोटे से राज्य में नागालैंड पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) की सरकार है. इस फ्रंट में भारतीय जनता पार्टी के चार विधायक भी शामिल हैं. इनमें तीन तो कांग्रेस के टिकट पर जीतकर बीजेपी में शामिल हो गए थे.

'सीजफायर' समझौते पर छा सकता है संकट  

उग्रवादग्रस्त राज्य में शांति के लिए प्रमुख उग्रवादी संगठन एनएससीएन (इसाक-मुइवा) के साथ समझौते का प्रयास अब तक सफल रहा है. इस संगठन के साथ केंद्र सरकार ने 1998 में ‘सीजफायर’ किया था.

एक जमाने तक देश के सबसे खूंखार उग्रवादी संगठन के रूप में अपना आतंक रखनेवाले इस संगठन ने अब तक सीजफायर का सम्मान किया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी केंद्र की सत्ता संभालने के बाद शांतिवार्ता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है. सितंबर 2014 में ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी के चीफ आरएन रवि को शांतिवार्ता के लिए मध्यस्थ बनाया गया.

नगालैंड

दीमापुर: सुरक्षा बल गश्त करते हुए. बंद के समर्थकों ने हाईवे को ब्लाक कर दिया था. हड़ताल का आह्वान महिलाओं को  म्युनिसिपल चुनावों में 33 फीसदी आरक्षण देने के खिलाफ किया था. (पीटीआई)

मोदी ने गृहमंत्रालय के सुझाव को दरकिनार कर 1976 बैच के आइपीएस अफसर रवि को यह विशेष दायित्व दिया. समझा जाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की सलाह पर ऐसा किया गया. रवि डोभाल की गुडबुक में रहे हैं.

रवि ने भी मोदी और डोभाल का विश्वास टूटने नहीं दिया है. अगस्त 2016 में एनएससीएन (इसाक-मइवा) और केंद्र सरकार के बीच फाइनल बातचीत हो चुकी है. समझौते के प्रारूप पर सहमति बन चुकने की घोषणा केंद्र सरकार और एनएससीएन (इसाक-मुइवा) दोनों की तरफ से की जा चुकी है. हालांकि समझौते के बिंदुओं का खुलासा किसी पक्ष ने नहीं किया है.

समझौते का खुलासा क्यों नहीं?

समझौते का विवरण करीब पांच माह से ज्यादा समय से गोपनीय बना हुआ है. इसका लाभ उठाते हुए विभिन्न राजनीतिक दल अटकलें लगा रहे हैं और अपना-अपना राजनीतिक स्थान सेट करने में लगे हुए हैं.

समझा जाता है कि मार्च में मणिपुर विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यह गोपनीयता बरती जा रही है. क्योंकि, इसका असर वहां भी पड़ सकता है. अगले साल नागालैंड में भी चुनाव होना है.

एनएससीएन (इसाक-मुइवा) सहित राज्य के अन्य संगठनों के लिए ‘नागालैंड की संप्रभुता’ बनाए रखना एक मुख्य मुद्दा रहा है. जबकि, भारत सरकार संविधान के दायरे में रहकर अधिकतम स्वायत्तता देने की हिमायती रही है. जब तक औपचारिक रूप से सामने नहीं आ जाता तबतक समझौते के बिंदुओं के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता.

लेकिन, समझा जा रहा है कि दशकों तक भारतीय फौज से लोहा लेते रहनेवाले  एनएससीएन (इसाक-मुइवा) को संप्रभुता की मांग छोड़ने के लिए राजी कर लिया गया है.

उसे इस भरोसे पर तैयार किया गया है कि स्थानीय आबादी को अपनी जातीय और सांस्कृतिक पहचान बचाए रखने के लिए भारतीय संविधान में पर्याप्त प्रावधान पहले से ही मौजूद हैं. इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा.

नागालैंड को संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा हासिल है. जिसका अर्थ यह है कि भारत सरकार के बनाए गए कोई भी कानून यहां तबतक प्रभावी नहीं होंगे जबतक विधानसभा से इसे पारित नहीं करा लिया जाता. इसी के तहत वहां जाने के लिए ‘इनरलाइन परमिट’ की व्यवस्था भी है.

ऐसे समय में जब शांति समझौते के बिंदुओं को लेकर अस्पष्टता बरकरार है, यूएलबी चुनावों में संविधान के खंड 243 टी के प्रावधानों को लागू कराने का प्रयास कई अन्य आशंकाओं को हवा देने का मौका प्रदान करता है.

लोगों को इस बात का भी डर है कि स्मार्ट सिटी जैसी विभिन्न योजनाओं के लिए बाद में उनपर कई तरह के टैक्स लादे जा सकते हैं. म्यूनिसिपल एरिया में जमीन के साथ स्थानीय आबादी से रिश्ते पर भी असर पड़ सकता है.

राजनीतिक दलों और सरकार की हालिया लापरवाही ने ऐसी ही आशंकाओं और उन्हें हवा देनेवाले संगठनों को एक नया मौका दे दिया है. यह प्रचारित किया जा रहा है कि बीजेपी की गोद में खेलनेवाले मुख्यमंत्री जिलिंयांग की सरकार दरअसल राज्य को मिले विशेष दर्जे में केंद्र की घुसपैठ कराना चाहते हैं.

मोदी से हस्तक्षेप की चाह ने डाला ‘आग में घी’

Kohima: The Kohima Municipal Council office which was set ablaze by Naga tribals during their violent protest, in Kohima on Friday. PTI Photo (PTI2_3_2017_000262B)

प्रदर्शनकारियों ने कोहिमा म्युनिसिपल कौंसिल के दफ्तर को जला दिया (पीटीआई)

राजनीतिक लापरवाही सरकार विरोधियों को रोज नया मौका दे रही है. यूएलबी इलेक्शन के मुद्दे पर ताजा विवाद का समाधान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप से निकालने की चाह ने ‘आग में घी’ का काम किया है.

राज्य कैबिनेट ने शनिवार को अपनी एक आपात बैठक में प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप का आग्रह करने का निर्णय लिया है. सीएम के मीडिया सेल से जैसे ही यह जानकारी बाहर आई, नगालैंड ट्राइवल एक्शन कमेटी (एनटीएसी) ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. इस संगठन को एनएससीएन (इसाक-मुइवा) का समर्थन मिल रहा है.

राज्य कैबिनेट ने यह तय किया है कि संविधान की अनुसूची 9 ए के कुछ प्रावधानों में अध्यादेश के माध्यम से संशोधन करने की मांग करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को एक मेमोरेंडम दिया जाएगा. इसपर राज्य के सभी 60 विधायकों और दो सांसदों के हस्ताक्षर होंगे. संविधान के इस खंड में म्यूनिसिपल चुनावों से संबंधित प्रावधान किए गए हैं.

सरकार के फैसले का विरोध कर रहे एनटीएसी का तर्क है कि संविधान के खंड 371 ए के तहत राज्य को ऐसे अधिकार प्राप्त हैं कि वह विधानसभा में संविधान के प्रावधानों का संशोधन कर सकता है. इसी का उपयोग करते हुए राज्य सरकार ने नागालैंड म्यूनिसिपल एक्ट-2001 बनाया था.

लेकिन, ताजा विवाद के समाधान के लिए केंद्र सरकार से आग्रह करने का निर्णय और वह भी अध्यादेश लाने की मांग करना बताता है राज्य सरकार ने अपने अधिकार केंद्र को बेच दिए हैं.

ताजा विवाद की वजह

ताजा विवाद संविधान के खंड 243 टी को राज्य में लागू करते हुए यूएलबी इलेक्शन में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के कारण उत्पन्न हुआ है. यह कानून देश के सभी राज्यों को लागू करना अनिवार्य है. मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग की कैबिनेट चाहती है कि मोदी सरकार अध्यादेश जारी कर नागालैंड को इस अनिवार्यता से मुक्त कर दें.

राज्य के आदिवासी समूहों के सुप्रीम संगठन नगा होहो का तर्क है कि संविधान के 243 टी के प्रावधानों को लागू करने से स्थानीय ‘कस्टमरी लॉ’ का उल्लंधन होता है, जिसकी रक्षा के लिए संविधान के खंड 371 ए के तहत प्रावधान किया गया है.

यह भी पढ़ें: नागालैंड में हिंसा, प्रदर्शनकारियों ने सीएम का घर फूंका

यदि यूएलबी इलेक्शन में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के लिए इस कानून को लागू किया जाता है तो नागालैंड को मिले विशेष अधिकारों में दखल होगा.

nagaland violence

एनटीएसी ने मोदी को मेमोरेंडम देने के कैबिनेट के फैसले को एक और सबूत के रूप में लिया है. इससे यह साबित होता है कि सीएम जेलियांग ने राज्य के हितों को बेच दिया है. यह संगठन सीएम से इस्तीफे की मांग पर अड़ा हुआ है.

संगठन की पहल से मंगलवार 7 फरबरी को सभी आदिवासी समूहों के सुप्रीम संगठन की एक बैठक बुलाई गई है. इसके जवाब में सीएम ने भी बुधवार 8 फरबरी को विभिन्न सगठनों के साथ बैठक करने का फैसला किया है. इन बैठकों के नतीजों पर सबकी निगाह टिकी रहेगी.

बंद हैं सरकारी कामकाज

पिछले 28 जनवरी से इस मुद्दे पर उबल रहे राज्य में तमाम सरकारी कामकाज बंद हैं. राज्य सचिवालय समेत सारे दफ्तरों पर ताले लगा दिए गए हैं. राजधानी कोहिमा में सीमित आवाजाही की छूट है तो अन्य शहरों में कर्फ्यू जैसी स्थिति है.

पुलिस फायरिंग में दो युवकों की जान चली गई है तो कई दफ्तरों को जला दिया गया है अन्य सरकारी संपत्तियों को क्षति पहुंचाई गई है. सीएम को हटाने और बचाने के लिए सरगरमियां तेज हो गई है.

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