तीसरी बार मुख्यमंत्री बने ओ पन्नीरसेल्वम ने अपने कार्यकाल के पहले हफ्ते में ही सबको अपने कामकाज से प्रभावित किया है. इसका बड़ा कारण ये भी है कि पहले ही मान लिया गया था कि उनसे उम्मीदें काफी कम हैं.
ये सरकार अपनी अपारदर्शिता के लिए जानी जाती रही है. इस बार ऐसा नहीं दिखा.
तूफान वरदा से पहले अन्नाद्रमुक सरकार के मुखिया की आवाज असरदार तरीके से नीचे तक पहुंची. ये सराहनीय है. दूर तक संदेश पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा लिया गया.
जैसे ही ये साफ हुआ कि तूफान आंध्र प्रदेश के काकीनाड़ा और नेल्लोर के बीच नहीं. बल्कि चेन्नई के उत्तर में दस्तक देगा, पूर्व चेतावनी प्रणाली सक्रिय हो गई.
24 घंटे पहले 12 दिसंबर से ही लोगों को सलाह और चेतावनी मिलने लगी. सबसे पहले लोगों को अपने घरों में रहने की सलाह दी गई.
विशाखापत्तनम में 2014 में आए तूफान हुदहुद और 2016 में हैदराबाद की बाढ़ से ये सबक मिला था कि अगर लोग सुरक्षित ठिकानों पर रहें तो नुकसान बहुत कम हो सकता है.
सही समय पर दी गई जानकारी
इस बार निचले इलाके के लोगों को बाहर निकाला गया. और मरीना बीच पर कड़ी नज़र रखी गई ताकि कोई मछुआरा समंदर में जाने की गलती न करे.
चेन्नई पुलिस ने क्षेत्रवार व्हाट्स एप ग्रुप बनाए. इसमें नगर निकायों और विधायकों ने भी अहम भूमिका निभाई. इसके जरिए सही समय पर जानकारी दी जा रही थी.
तमिलनाडु आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने अपने ट्विटर हैंडल का भरपूर इस्तेमाल किया. न सिर्फ जानकारी दी जा रही थी बल्कि लोगों के सवालों का भी जवाब दिया जा रहा था.
बिजली मंत्री थंगामणि चेन्नई में कब कहां बिजली कनेक्शन वापस बहाल किया जाएगा इसकी पल-पल की जानकारी दे रहे थे. इस कठिन समय में भी अम्मा कैंटीन हमेशा खुले रहे जहां लोगों को फ्री में खाना दिया गया.
तमिलनाडु का जनसंपर्क विभाग सभी मंत्रियों और नौकरशाहों की भूमिका लगातार बताता रहा.
असरदार सामुदायिक आपदा प्रबंधन सिस्टम की जरूरत
पन्नीरसेल्वम किस तरह समीक्षा बैठकें कर रहे थे और राहत सामान बांट रहे थे. उसकी तस्वीरें शेयर की गईं. अन्नाद्रमुक का ट्विटर हैंडल भी राजनीतिक फायदा उठाने और वाहवाही लूटने के बदले लोगों से संवाद कायम कर रहा था.
आपदा प्रबंधन के जानकार डब्ल्यूजी प्रसन्ना कुमार कहते हैं कि 'सरकार का दखल काफी असरदार रहा. उत्तर-पूर्वी मॉनसून इस तरह की चुनौतियों से दो-चार कराता रहता है'.
उन्होंने कहा 'समय-समय पर तैयारी की प्रैक्टिस होनी चाहिए. चेन्नई में आगे चल कर असरदार सामुदायिक आपदा प्रबंधन सिस्टम बनाने की जरूरत है. ताकि स्थानीय निकाय और आम जनता एक-दूसरे को सहयोग कर सकें'.
पिछली बार से इस बार तैयारी बेहतर
पिछले दिसंबर के हालात से तुलना कीजिए जब जयललिता मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रही थीं. तब चेन्नई नगर आयुक्त ही सरकार का चेहरा भी थे और कमियों को बचाने की कमजोर कड़ी भी. मंत्री और पूरा राजनीतिक तंत्र गायब नजर आया.
इसके बावजूद अन्नाद्रमुक के प्रवक्ता इसकी पूरी कोशिश करते रहे कि कोई आरोप पोएज गार्डेन की तरफ न जाए. और ये कहा गया कि अम्मा के कारण ही चेन्नई बच गया.
राहत सामान का वितरण भी सही तरह से नहीं किया गया. ये काम निजी तौर पर कुछ लोगों ने किया. जिनमें फिल्म स्टार भी शामिल थे.
ये ही नहीं, अन्नाद्रमुक के उत्साही कार्यकर्ताओं ने राहत समान से लदी गाड़ियों को रोक कर राशन-पानी के पैकेट पर अम्मा की तस्वीरें चिपका दीं.
अन्नाद्रमुक को इसकी कीमत चुकानी पड़ी. कई इलाकों में जब पार्टी के नेता पहुंचे तो लोगों ने हूट कर उन्हें भगा दिया. इस साल हुए चुनाव में भी गुस्से की झलक दिखी. चेन्नई में अन्नाद्रमुक के 16 में से 10 उम्मीदवार हार गए.
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि तूफान वरदा से निपटने का तरीका आदर्श था. दरअसल अन्नाद्रमुक अभी अपनी नेता जयललिता के निधन से उबरी नहीं है.
शनिवार तक तो पार्टी के नेता शशिकला से पार्टी की कमान अपने हाथ में लेने की अपील करते नजर आए.
चेन्नई के सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रमोहन कहते हैं कि, 'अगर नगर निकाय ने दिसंबर में इस तरह के तूफान से निपटने की योजना बनाई होती तो 500 से ज्यादा पेड़ नहीं गिरते'.
चंद्रमोहन कहते हैं, 'अगर 100 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा गति वाला तूफान आने की आशंका है तो पेड़ों की टहनियां काटनी पड़ती हैं. इससे हवा का आवेग रूकता नहीं है. अगर ऐसा किया जाता तो जिस तरह पेड़ जड़ से ही उखड़े हैं वैसा नहीं होता'.
चेन्नई एयरपोर्ट का रन-वे डूबने के लिए कुख्यात
हमें पता है कि आंध्र और तमिलनाडु के तटीय इलाकों में इस तरह का तूफान आता रहता है. ऐसे में एक केंद्रीकृत कंट्रोल सेंटर बनाने की जरूरत है जो आपदा के समय जनता, मीडिया और दूसरी एजेंसियों को एक साथ सूचना पहुंचाए. इससे नुकसान कम से कम होगा.
तूफान वरदा के कारण जितने पेड़ उखड़े हैं, उससे शहर की हरियाली खत्म सी हो गई है. इसकी भरपाई में बरसों लग जाएंगे. हालांकि मानवीय क्षति कम रखने में प्रशासन सफल रहा.
बारिश होते ही चेन्नई एयरपोर्ट का रन-वे डूबने के लिए कुख्यात सा हो गया है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है. चाहे बारिश कितनी भी हो. अगर रोशनी फ्लाइट लैंडिंग या टेक ऑफ के लायक है तो हवाई अड्डा चालू रहना चाहिए. पर इसके लिए जरूरी है कि रनवे डूबा हुआ न हो.
फिलहाल शहर टूटी हुई टहनियों, खिड़कियों के कांच और हर तरफ बिखरे होर्डिंग के टुकड़ों से जूझ रहा है. इससे निपटने की तैयारी भी जोरों पर है.
जिंदगी जल्द ही सामान्य हो जाएगी. बस उम्मीद है कि वरदा से भी जो सबक मिले हैं उससे सीखते हुए भविष्य में और बेहतर तैयारी की जाएगी.
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