गुरुवार को कांग्रेस ने राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को खड़ा किया. मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री हैं और पार्टी चाहती है कि नोटबंदी के फैसले को अकादमिक भाषा में भी गलत साबित किया जाए. मनमोहन सिंह ने सपाट शब्दों में कुछ कड़ी बातें कही थीं. पर नरेन्द्र मोदी ने अगले ही दिन जो जवाब दिया है, उससे लगता है कि उनके हौसले कम नहीं हुए हैं. परीक्षा इस बात की है कि पिछले दो-तीन दिन से शुरू हुई विपक्षी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का सामना वे किस प्रकार करते हैं.
शुक्रवार को संविधान दिवस पर हुए समारोह में और बठिंडा की रैली में मोदी ने कहा, कालाधन रखने वालों को संभलने का मौका नहीं मिल रहा है, इसलिए वे परेशान हैं. उनका कटाक्ष विपक्षी राजनीतिक दलों और खासतौर से कांग्रेस पर है. उन्होंने कहा, उनके पास काला धन है और इसीलिए वे परेशान हैं. जिनका पैसा खुद का है, वे खुश हैं. आज हर बैंक के पास उसका मोबाइल ऐप है. हर बैंक इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा देता है. ऐसे में यह जरूरी है कि नौजवान इसकी ओर रुख करें.
यह बात शहरी युवा को पसंद भी आएगी, पर क्या गांव-देहात इसे मंजूर कर लेंगे? मोदी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि देश को डिजिटल करेंसी की ओर रुख करना चाहिए. उधर विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अर्थ-व्यवस्था का काफी बड़ा हिस्सा खेती और परम्परागत कारोबारों से जुड़ा है, जो बैंकिंग से जुड़े नहीं है. अलबत्ता नोटबंदी के बाद दो हफ्ते से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी सरकार और पार्टी जनता के मन में विश्वास बनाए रखने में कामयाब है. बावजूद कई मौतों की खबरों के अभी तक हालात काबू में हैं.
विपक्ष के ताजा अभियान और राष्ट्रव्यापी आंदोलन की धमकी का असर अगले तीन-चार रोज में और मुखर होगा. सोमवार को ‘आक्रोश दिवस’ पर जनता की प्रतिक्रिया से कुछ बातें साफ होंगी. सवाल सरकार के प्रबंध कौशल का भी है. करेंसी के वितरण की स्थितियां सुधरीं तो राजनीतिक मोर्चे पर सरकार आश्वस्त हो सकती है.
जनता की परेशानियों पर कोई सर्वे नहीं
तमाम दिक्कतों के बावजूद जनता का समर्थन अब भी मिल रहा है. भारत के मीडिया हाउसों ने जो सर्वे कराए हैं, उनमें से ज्यादातर इस फैसले के पक्ष में हैं. अमेरिकी इंटरनेट अखबार हफिंगटन पोस्ट ने सर्वे सी-वोटर से जो सर्वे कराया है, उसकी राय भी है कि इस फैसले से काले धन वाले परेशान हैं और जनता को परेशानी हो रही है, पर वह इसे सहन करने को तैयार है. प्रधानमंत्री के सर्वे को प्रचारात्मक मान भी लें, पर अभी ऐसा कोई सर्वे सामने नहीं आया है, जो जनता की बेचैनी को व्यक्त करता हो. शायद इसी वजह से विपक्षी दलों ने मीडिया पर भी उंगलियां उठानी शुरू कर दी हैं.
पिछले बुधवार को ममता बनर्जी के नेतृत्व में जंतर-मंतर पर रैली हुई. तकरीबन 200 सांसदों ने संसद भवन में गांधी प्रतिमा पर अपना विरोध व्यक्त किया. क्या यह राजनीति जनता के बीच लोकप्रिय होगी? या दूसरे शब्दों में कहें तो क्या विरोधी दल जनता को उकसाने में कामयाब होंगे? सीपीएम के अखबार गणशक्ति ने कोलकाता के एक बैंक के खाते का जिक्र करते हुए कहा कि बीजेपी ने इस फैसले के पहले ही अपने नोट बैंकों में जमा कर दिए थे. मायावती ने कहा कि भाजपा ने अपना पैसा विदेश भेज दिया. इधर खबरें आईं हैं कि बीजेपी ने बिहार में जमीनें खरीद लीं.
सरकार का वास्तविक उद्देश्य क्या है?
क्या मोदी सरकार इन विरोधों का सामना करते हुए जनता का विश्वास पाने में कामयाब होगी? क्या अगले कुछ दिनों में स्थिति सामान्य होने लगेगी? इस फैसले के पीछे सरकार का वास्तविक उद्देश्य क्या है? सरकार काले धन पर लगाम लगाना चाहती है या ज्यादा से ज्यादा कारोबार को बैंकिग के दायरे में लाने की उसकी योजना है? मनमोहन सिंह ने गुरुवार को राज्यसभा में कहा, यह नोटबंदी 'संगठित लूट व कानूनी डाके' का मामला है. उन्होंने चेतावनी भी दी कि इससे भारत की अर्थव्यवस्था में दो फीसदी की कमी आएगी.
इस साल अर्थ-व्यवस्था में गिरावट आने की बात काफी विशेषज्ञ कह रहे हैं, पर यह भी माना जा रहा है कि इसका दूरगामी लाभ मिलेगा. मनमोहन सिंह का कहना था कि दो फीसदी का अनुमान कम से कम है, आंकड़ा इससे भी ज्यादा हो सकता है. पर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उनपर तंज कसा कि जिनके शासनकाल में इतना अधिक कालाधन पैदा हुआ और घोटाले हुए उन्हें उनमें खराबी दिखाई नहीं दी लेकिन अब वे काले धन के खिलाफ युद्ध को गलती मान रहे हैं. इसे लूट कहते हैं.
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