नोटबंदी के मुद्दे पर तकरार जारी है. तकरार है एक दूसरे पर सियासी बढ़त लेने की. सब इसी उम्मीद में मैदान में कूद पड़े हैं.
संसद का सत्र चल रहा है, लिहाजा संसद के भीतर और बाहर यह लड़ाई खुलकर दिख रही है. जनता बैंकों और एटीएम मशीनों के सामने लाईन में लगी है. नेता संसद परिसर में लाईन में लग रहे हैं.
बाहर परेशान जनता संसद की कार्यवाही पर नजर लगाए बैठी है. इस उम्मीद में कि उसे होने वाली परेशानी का कोई समाधान निकल जाए. लेकिन, जब चर्चा नहीं हो पा रही तो समाधान की गुंजाइश कहां?
सरकार का दावा: उठाए जरूरी कदम
सरकार का दावा है कि जरूरी कदम उठाए गए हैं. जल्द ही परेशानी दूर होगी. लेकिन, विपक्ष मानने को तैयार नहीं है.
विपक्ष सीधे प्रधानमंत्री से जवाब मांग रहा है. इससे कम पर संसद की कार्यवाही चलने का सवाल ही नहीं है. यही सवाल सरकार को सताए जा रहा है. सत्ता पक्ष और विपक्ष की जिद ने संसद के काम-काज को ठप कर रखा है.
विपक्ष जनता के साथ अपनी हमदर्दी दिखा रहा है. लिहाजा, तमाम अन्तर्विरोधों के बावजूद विपक्षी सांसद एक साथ संसद परिसर में जमा हुए. संसद परिसर में गांधी प्रतिमा के सामने नोटबंदी पर सरकार के कदम का विरोध करने के लिए 13 विपक्षी दलों के सांसद पहुंचे.
इन दिनों परंपरा बन गई है. विरोध करना है तो संसद परिसर में बापू की छांव का सहारा लिया जाता है.
सत्य के प्रतीक बापू की प्रतिमा के सामने हर दल के लोग समय-समय पर आते हैं. गुहार लगाते हैं, संसद के भीतर हमारी नहीं सुनी जा रही है.
लेकिन, सत्य के पुजारी के सामने प्रदर्शन करने वालों में कौन सही और कौन झूठ बोल रहा है. इसका आकलन करना मुश्किल हो जाता है.
क्योंकि, गांधी पर दावा सब करते हैं. सबका हक भी है, लेकिन, चर्चा और बहस के बजाए सभी हो-हंगामे में लग जाते हैं.
विपक्ष की तरफ से ममता बनर्जी पैदल मार्च निकाल चुकी हैं. लगातार ममता का प्रदर्शन जारी है. संसद के भीतर और बाहर टीएमसी आक्रामक है. कांग्रेस भी इस मुद्दे पर संसद से लेकर सड़क तक हमलावर है.
राहुल का वार, जेपीसी की मांग
विपक्षी दलों की तरफ से प्रधानमंत्री से जवाब मांगा जा रहा है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है प्रधानमंत्री संसद में आकर बयान देने के बजाए बाहर क्यों बयान दे रहे हैं.
राहुल आक्रामक अंदाज में कहते हैं. ‘वित्त मंत्री को नहीं मालूम था, लेकिन, बड़े –बड़े ट्रेडर दोस्त हैं, उन्हें पता था. इसके पीछे एक स्कैम था. अपने लोगों को पहले बता दिया था. इसलिए अब जेपीसी जांच हो.’
दरअसल, राहुल दिखाना चाहते हैं कि नोटबंदी के फैसले से गरीब तबका ही सबसे ज्यादा परेशान है. बड़े बड़े ट्रेडर्स को कोई दिक्कत नहीं हो रही है.
दूसरी तरफ पीएम मोदी भी इस लडाई को अमीर बनाम गरीब की लडाई ही बताने में लगे हैं. पीएम का दावा है कालेधन के खिलाफ इस लड़ाई में सबसे ज्यादा मार पड़ी है तो अमीर तबके को. गरीब के माथे पर तो सिकन तक नहीं है.
हंगामे के बीच संसद की कार्यवाही ठप है. आखिरकार जिम्मेदार कौन है. बहस के लिए सरकार तैयार है, लेकिन, विपक्ष को प्रधानमंत्री के बगैर बहस बेमानी लगता है.
प्रधानमंत्री ने रैलियों में या फिर दूसरे फोरम से नोटबंदी पर बयान तो दिया है, लेकिन, संसद में अबतक इस मुद्दे पर चुप हैं.
इसलिए सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री आखिरकार संसद में बयान देने के लिए तैयार क्यों नहीं हो रहे.विपक्ष के सवालों से क्या प्रधानमंत्री भाग रहे हैं या फिर सही मौके का इंतजार कर रहे हैं.
ऐप के जरिए मांगा जवाब
मोदी ने अपने ऐप पर लोगों से दस सवालों का जवाब मांगा है. जनता के बीच जाकर नब्ज टटोल रहे हैं. परेशानी दूर होने तक का इंतजार करना चाहते हैं. शायद उसके बाद मोदी विपक्षी वार पर पलटवार करें.
विपक्ष की तरफ के ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) की मांग की जा रही है. विपक्ष को लगता है जेपीसी के माध्यम से सरकार को बेहतर तरीके से घेरा जा सकता है. लेकिन, सरकार इसके लिए तैयार होती नहीं दिख रही है.
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के वक्त विपक्ष में रहते एनडीए ने जेपीसी की मांग पर पूरा सत्र नहीं चलने दिया था. अब नोटबंदी पर जेपीसी की मांग कर राहुल गांधी सरकार पर पालिटिकल माइलेज लेना चाहते हैं.
लेकिन, सरकार चर्चा और बहस के लिए तैयार होने की बात कर विपक्ष की मांग को खारिज कर दे रही है. लिहाजा सहमति के आसार कम नजर आ रहे हैं.
संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने लोकसभा में कहा ‘हम चाहते हैं इस मुद्दे पर बड़ी बहस हो और हर पहलू पर बहस हो.’
दरअसल, सरकार की कोशिश है तीन से चार दिन तक बहस हो जिसमें भ्रष्टाचार और कालेधन के मुद्दे पर विपक्ष को घेरा जा सके.
उधर, विपक्ष 28 नवंबर को आक्रोश दिवस मनाने का ऐलान कर चुका है. फिलहाल, नोटबंदी पर मचे संग्राम का समाधान निकलता नजर नहीं आ रहा.
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