पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रथयात्रा को लेकर हाय-तौबा और धरना-प्रदर्शन जारी है. 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने अपनी इस रथयात्रा से काफी उम्मीदें पाल रखी हैं. लेकिन पार्टी की प्रस्तावित रथयात्रा का चक्का अदालत में जाकर फंस गया है. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने रथयात्रा पर राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखते हुए उसपर रोक लगा दी है. जिसके बाद बीजेपी ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है.
दरअसल बीजेपी की पश्चिम बंगाल इकाई बीते गुरुवार को उस वक्त खासे जोश और विजयी मुद्रा में थी, जब कलकत्ता हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने राज्य सरकार के फैसले को अमान्य करार देते हुए पार्टी की प्रस्तावित रथयात्रा को हरी झंडी दे दी थी. लेकिन बीजेपी की यह खुशी ज्यादा देर तक टिकी नहीं रह सकी. सिंगल जज के फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार ने बिना देर किए फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सरकार ने राज्य में कानून-व्यवस्था की दुहाई देते हुए बीजेपी की रथयात्रा पर रोक की अपनी मांग दोहराई. इस बार मामला हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के पास पहुंचा. कोर्ट ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई की और सिंगल बेंच के फैसले पर स्टे ऑर्डर लगा दिया. यानी बीजेपी की रथयात्रा पर राज्य सरकार की रोक को ही बरकरार रखा. हालांकि हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने बीजेपी को यह सुझाव भी दिया कि, वो चाहे तो सुप्रीम कोर्ट जाकर अपनी बात रख सकती है. हाईकोर्ट ने कहा कि, बीजेपी सुप्रीम कोर्ट जाकर बता सकती है कि, पश्चिम बंगाल में कैसे और क्यों उसके राजनीतिक कार्यक्रम को रोका जा रहा है.
यहां दो अलग-अलग मुद्दे उभर कर सामने आते हैं: पहला यह कि, पश्चिम बंगाल में रथयात्रा पर राज्य सरकार की रोक के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने में बीजेपी को कई सियासी फायदे हैं. दूसरा यह कि, रथयात्रा पर रोक के बाद बीजेपी लगातार बयानबाजी और हाय-तौबा कर के तृणमूल कांग्रेस सरकार के अलोकतांत्रिक चरित्र पर लोगों का ध्यान केंद्रित करने के प्रयास में जुटी है. बीजेपी खासकर यह जताना चाहती है कि, ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी सरकार राज्य में बीजेपी और उसके कार्यकर्ताओं का दमन कर रही है, यहां तक कि पार्टी को रैलियों-रथयात्राओं जैसे राजनीतिक कार्यक्रमों के आयोजन तक की अनुमति नहीं दी जाती है.
बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में 3 रथयात्रा निकालने की योजना बनाई थी
आइए सबसे पहले हम बीजेपी की बयानबाजी और हाय-तौबा की बात करते हैं. दरअसल बीजेपी ने दिसंबर महीने की शुरुआत में पश्चिम बंगाल में 3 अलग-अलग हिस्सों में रथयात्रा निकालने की योजना बनाई थी. इनमें से एक यात्रा उत्तरी बंगाल के कूचबिहार के एक मंदिर से शुरू होनी थी, जबकि दूसरी यात्रा दक्षिण 24 परगना जिले के सागर से शुरू होना थी, जबकि तीसरी यात्रा बीरभूम जिले में स्थित तारापीठ से शुरू होनी थी. पहली रथयात्रा 7 दिसंबर से तो दूसरी 9 दिसंबर और तीसरी 14 दिसंबर से निकाली जानी थी.
बीजेपी की तीनों रथयात्राओं को राज्य की सभी 42 लोकसभा सीटों और 294 विधानसभा क्षेत्रों से होकर कोलकाता में खत्म होना था. जहां एक विशाल जनसभा के आयोजन का कार्यक्रम प्रस्तावित था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी शिरकत करने वाले थे.
लेकिन जब बीजेपी की इस सियासी योजना पर सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप लगे, तब पार्टी ने उसे 'गणतंत्र बचाओ यात्रा' के नाम का जामा पहनाकर फिर से पेश कर दिया. ऐसे में बीजेपी की हाय-तौबा और तृणमूल कांग्रेस पर यह आरोप लगाना कहां तक न्यायसंगत है कि, वो अलोकतांत्रिक तरीके अपनाकर देश की लोकतांत्रिक साख पर बट्टा लगा रही है. क्या रथयात्रा को लेकर बीजेपी की मंशा को संदेह से परे माना जा सकता है.
बीजेपी का यह आरोप भी तथ्यात्मक रूप से निराधार है कि, टीएमसी सरकार उसे राज्य में रैलियों वगैरह की इजाजत नहीं देती है. केस की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में रिकॉर्ड पेश करते हुए बताया कि, पश्चिम बंगाल में बीजेपी को पिछले 2 साल में 21,000 रैलियों और सभाओं की इजाजत दी गई. जाहिर है, ऐसे में बीजेपी की यह दलील कोरा झूठ साबित हो जाती है कि, उसे राज्य में पार्टी के प्रचार-प्रसार के कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा रही है.
यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि, 2014 के बाद से जिन राज्यों में बीजेपी सत्ता में है या रही है, वहां उसने विपक्षी दलों को अपनी सियासी गतिविधियों को बेरोकटोक जारी रखने की कितनी इजाजत और रियायत दी? आंकड़े उठाकर देखने पर पता चलता है कि, इस साल मई में त्रिपुरा में बीजेपी सरकार ने कांग्रेस को रैली करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था. यही नहीं सरकारी आदेश का उल्लंघन करने के आरोप में करीब 400 कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी किया गया था. जबकि राजस्थान में बीजेपी सरकार ने दलित नेता जिग्नेश मेवाणी, पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को रैलियां आयोजित करने की इजाजत देने से बार-बार इनकार किया.
जून 2017 में राहुल गांधी को मंदसौर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी
मध्य प्रदेश की तत्कालीन बीजेपी सरकार ने जून 2017 में राहुल गांधी को मंदसौर जिले में प्रवेश करने की अनुमति से इनकार कर दिया था. राहुल वहां पुलिस फायरिंग में मारे गए 5 लोगों के परिजनों और किसानों से मिलना चाहते थे. जबकि इसी साल अक्टूबर में किसानों के मार्च को शुरू में दिल्ली में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी गई थी. पुलिस ने जबरदस्त बल प्रयोग कर के किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर ही रोक दिया था. हालांकि बाद में केंद्र सरकार ने उन्हें दिल्ली में दाखिल होने की इजाजत दे दी थी.
यह उदाहरण तो महज बानगी भर हैं. बीजेपी शासित राज्यों में विपक्षी दलों के दमन के प्रयासों की लंबी फेहरिस्त है. बहरहाल यह उदाहरण बीजेपी की उन दलीलों को खारिज करने के लिए पर्याप्त हैं, कि बीजेपी सरकारों ने कभी भी विपक्षी दलों की राजनीतिक गतिविधियों को रोकने या उन पर प्रतिबंध लगाने का काम नहीं किया है. लेकिन पश्चिम बंगाल में अपनी रथयात्राओं पर प्रतिबंध लगने के बाद बीजेपी ने हाय-तौबा मचा रखी है. बीजेपी यह ढोंग कर रही है कि, भारत में अचानक लोकतंत्र का ह्रास (नाश) हो गया है, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस ने उसे रथयात्रा निकालने की इजाजत नहीं दी है. पश्चिम बंगाल के लिए बीजेपी की यह हाय-तौबा सरासर पाखंड नजर आती है.
बीजेपी की रथयात्रा के विरोध में राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में खासी पुख्ता दलीलें पेश की गईं. राज्य सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार को अदालत में तर्क दिया कि, तृणमूल कांग्रेस सरकार को सिर्फ बीजेपी की रथयात्रा पर एतराज है. राज्य सरकार को बीजेपी की रैली या जनसभाओं जैसे अन्य आयोजनों पर कोई आपत्ति नहीं है. सिंघवी ने तर्क दिया कि, बीजेपी की रथयात्रा तकरीबन 39 दिन तक चलने की उम्मीद है. ऐसे में सरकार से यह उम्मीद करना उचित नहीं होगा कि, वो राज्य में कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए पुलिसबलों को बीजेपी की रथयात्रा की पूरी अवधि तक व्यस्त रखे. सिंघवी ने यह भी बताया कि, बीजेपी की रथयात्रा से राज्य की यातायात-व्यवस्था भी प्रभावित होने की आशंका है क्योंकि, कुछ इलाकों में राजमार्गों पर बीजेपी के काफिले एक किलोमीटर तक लंबे हो सकते हैं.
रथयात्रा के खिलाफ सरकार की पेश की गई मुख्य दलील राजनीतिक रही
लेकिन बीजेपी की रथयात्रा के खिलाफ राज्य सरकार की तरफ से पेश की गई मुख्य दलील राजनीतिक रही. सिंघवी ने कोर्ट में कहा कि, रथयात्रा के लिए तैयार किए गए नारे उत्तेजक थे. सांप्रदायिकता से लबरेज उन नारों से बंगाल में सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने का खतरा था. राज्य सरकार ने यह तर्क बीजेपी की रथयात्रा पर अपने प्रतिबंध के फैसले को सही ठहराने के उद्देश्य से पेश किया था. दरअसल सरकार ने कहा था कि, प्रस्तावित रथयात्रा कार्यक्रम के अनुसार, बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं के जुलूस कई ऐसे इलाकों से भी गुजरेंगे जो सांप्रदायिक रूप से काफी संवेदनशील हैं. इसके अलावा रथयात्रा कई धार्मिक स्थलों से होकर भी गुजरेगी. ऐसे में खतरा और बढ़ने की संभावना है. सरकार ने यह भी तर्क दिया कि, खुफिया सूत्रों के हवाले से पता चला है कि, रथयात्रा के दौरान जुलूसों में बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे सांप्रदायिक संगठनों के भी शामिल होने की संभावना है. लिहाजा बीजेपी को प्रस्तावित कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी जा सकती थी.
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिक पैंतरों के इतर देखा जाए तो, हमें यह स्वीकार करना होगा कि, बीजेपी और संघ परिवार से संबद्ध अन्य संगठन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर के और अल्पसंख्यक कार्ड खेलकर ही पनपे हैं. हिंदू राष्ट्र के तौर पर देश को बहुसंख्यकों का स्वर्ग बनाने का इनका विजन बेहद डरावना है. वास्तव में, बीजेपी ने बंगाल में भी पहले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में हाथ आजमाए और फिर सांप्रदायिक हिंसा की आग को हवा दी. लिहाजा बीजेपी को रथयात्रा आयोजित करने की इजाजत देने से इनकार कर के टीएमसी सरकार ने समझदारी ही दिखाई है.
बीजेपी नेता और प्रोपेगेंडा टीम यह कहती नजर आ रही है कि, दक्षिणपंथी हिंदुत्व पार्टी तेजी से बंगाल में अपने पैर पसार रही है. लिहाजा उसकी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पार्टी यानी टीएमसी ने जानबूझकर बीजेपी की रथयात्रा पर प्रतिबंध लगाया है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले दिनों कहा था कि, पश्चिम बंगाल में बीजेपी इस बार 22 लोकसभा सीटें जीतेगी. वहीं बीजेपी की राज्य इकाई अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पूर्वानुमान से भी आगे के ख्वाब सजाए बैठी है. बंगाल बीजेपी ने दावा किया है कि, 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी 26 सीटें जीतेगी.पार्टी के इस दावे को फिलहाल एक सुनहरा सपना ही माना जा सकता है.
ममता बनर्जी सबसे ज्यादा लोकप्रिय, बीजेपी का कोई नेता उनके आगे नहीं ठहरता
लोकप्रियता के मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में सबसे आगे हैं. बीजेपी का कोई भी नेता ममता के आगे नहीं ठहरता है. बीजेपी की राज्य इकाई के पास किसी भी मामले में विश्वसनीय नेतृत्व का अभाव है. चुनावी दांव-पेंच के मामले में भी पश्चिम बंगाल में फिलहाल तृणमूल कांग्रेस का कोई सानी नहीं है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से लोगों के मोहभंग के बाद बीजेपी ने भले ही राज्य में अपने वोट बैंक का विस्तार किया है, लेकिन जमीनी स्तर पर टीएमसी की पकड़ बेहद मजबूत है. ऐसे में बीजेपी कहीं से भी सत्तारूढ़ पार्टी को चुनौती देने की स्थिति में नजर नहीं आती है. लिहाजा पूरा जोर लगाने के बाद भी बीजेपी अगर पश्चिम बंगाल में 2 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब हो जाए, तो उसे खुद को भाग्यशाली समझना चाहिए. लेकिन यह भी देखना होगा कि, अति आत्मविश्वास के चलते बीजेपी कहीं अपनी मौजूदा 2 जीती हुई सीटों को ही न गवां बैठे.
राजनीतिक और वैचारिक रूप से, बीजेपी पश्चिम बंगाल में निरंतर डटी हुई है और अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है. यही वजह है कि, पार्टी अपनी बढ़त और भविष्य की जीत के दावे कर रही है. उधर तृणमूल कांग्रेस भले ही लोकतांत्रिक कार्यशैली की मिसाल न हो, लेकिन यह बात बीजेपी की रथयात्रा पर प्रतिबंध लगाए जाने से साबित नहीं होती है. किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए किसी भी स्थिति में बीजेपी से ज्यादा अलोकतांत्रिक होना कठिन है.
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