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नॉर्थ ईस्ट की हार: अरविंद केजरीवाल नहीं अमित शाह से सीखें राहुल गांधी

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में पार्टी की करारी हार हुई है इसपर राहुल गांधी क्या बोलेंगे

Updated On: Mar 03, 2018 06:29 PM IST

Ravishankar Singh Ravishankar Singh

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नॉर्थ ईस्ट की हार: अरविंद केजरीवाल नहीं अमित शाह से सीखें राहुल गांधी

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए गुजरात, हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के नतीजों ने एक बार फिर से सदमा दे दिया है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी और खासकर पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को सोचना होगा कि दिल्ली के किसी कोने में बैठ कर फेसबुक और ट्वीटर के जरिए समस्या उठा कर दूर-दराज रहने वाले लोगों के मिजाज को बदला नहीं जा सकता है. देश के दूर-दराज रहने वाले लोगों के मन को बदलने के लिए पार्टी को जमीन पर और बूथ लेवल पर काफी काम करना पड़ेगा.

बीजेपी त्रिपुरा में जहां सरकार बनाने जा रही है वहीं मेघालय में भी बीजेपी गठबंधन की सरकार बनने के पूरे आसार दिख रहे हैं. नागालैंड में भी बीजेपी जबरदस्त प्रदर्शन कर दूसरे नंबर पहुंच गई है. पूर्वोत्तर के राज्यों में भगवा लहर ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि इस देश में अब भी मोदी लहर बरकरार है.

पिछले कई दिनों से पूर्वोत्तर के तीन राज्यों खासकर त्रिपुरा का चुनाव देश की मीडिया में चर्चा का केंद्र बना हुआ था. राजनीतिक विश्लेषकों के द्वारा त्रिपुरा चुनाव को लेकर काफी कुछ लिखा और पढ़ा भी जा रहा था. आखिरकार सभी विश्लेषकों की भविष्यवाणी त्रिपुरा को लेकर तकरीबन सही ही साबित हुई. त्रिपुरा में चुनाव से पहले ही बीजेपी और लेफ्ट के बीच कड़ी टक्कर की बात सामने आ रही थी. बाद में एग्जिट पोल में भी बीजेपी की जीत दिखाई गई थी, लेकिन चुनाव परिणाम इतने चौकाने वाले होंगे, इसका अंदाजा किसी को भी नहीं था. वहीं 60 सदस्यीय नागालैंड में एनपीएफ और बीजेपी गठबंधन ने अच्छा प्रदर्शन किया. मेघालय में बेशक कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है, लेकिन वहां पर बीजेपी, एनपीपी और निर्दलीय मिल कर सरकार बना लेंगे ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है.

राहुल के करिश्मे

बात अगर कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की जाए तो हाल के कुछ उपचुनावों के परिणाम भले ही उनके फेवर में आए हों पर उसमें राहुल गांधी का करिश्मा या मैनेजमेंट का कोई लेना देना नहीं था. वहां की जनता ने सत्ता पक्ष की नाराजगी का खामियाजा कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को जीत दिला कर दिया, जिसे राहुल गांधी ने अपनी उपलब्धियों के तौर पर भुनाने की पूरी कोशिश की. कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में कोलारस एवं मुंगावली विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों की जीत पर बधाई देते हुए ट्वीट कर इसे ‘बदलाव की आहट’ करार दिया था.

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इससे पहले कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान में अलवर एवं अजमेर लोकसभा सीट और मांडलगढ़ विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव में भी जीत हासिल कर बीजेपी को सकते में ला दिया था. लेकिन, राहुल गांधी शायद भूल गए कि जिन जगहों पर कांग्रेस पार्टी के अलावा दूसरी पार्टियां जनता के लिए विकल्प दे रही हैं, वहां पर कांग्रेस पार्टी लगातार पिछड़ती ही चली जा रही है या फिर उसका सफाया हो रहा है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अब सोचना होगा कि मोदी सरकार की विफलता गिना कर वह चुनाव नहीं जीत सकती है. बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कैडर निचले स्तर पर जा कर जिस तरह से मेहनत कर रहे हैं उस तरह की मेहनत कांग्रेस पार्टी के वर्करों में नहीं देखने को मिल रही है. केंद्र सरकार या मोदी सरकार की नाकामयाबियों को आरएसएस और बीजेपी के वर्कर मेहनत कर भरपाई कर रहे हैं.

कांग्रेस को बीजेपी पर भरोसा

वहीं कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं और उसके थिंकटैंक को लगता है कि वह एंटी इंकम्बेंसी फेक्टर पर ही लगातार चुनाव जीत जाएंगे? देखा जाए तो आरएसएस या बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस पार्टी की क्षमता अभी भी न के बराबर है. हाल के कुछ सालों में देखा गया है कि कांग्रेस पार्टी और उनके नेताओं की स्ट्रेटजी बीजेपी के एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर पर ज्यादा निर्भर रही हैं.

Cong win bye-elections in Rajasthan

कांग्रेस पार्टी को करीब से जानने और समझने वाले पत्रकार संजीव पांडेय फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘देखिए कांग्रेस पार्टी को जो वोट मिल रहा है वह बीजेपी की नाराजगी की वजह से मिल रही है. राजस्थान उपचुनाव और गुजरात विधानसभा में कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन देखने को जो मिल रहा है, वह बीजेपी की नाराजगी के कारण है. क्योंकि इन जगहों पर जनता के सामने कांग्रेस पार्टी का कोई विकल्प मौजूद नहीं है. राहुल गांधी को अगर भविष्य में पार्टी को खड़ा करना है तो उनको सोचना होगा कि निचले स्तर पर कार्यकर्ताओं को कैसे खड़ा किया जाए. कांग्रेस पार्टी का बूथ मैनेजमेंट लेवल पर सोचने की रणनीति बिल्कुल फेल है. मौजूदा हालात में और इस राजनीतिक परिस्थिति में बीजेपी का बूथ मैनेजमेंट कांग्रेस पार्टी से कहीं आगे निकल गया है.’

संजीव पांडेय आगे कहते हैं, ‘देखिए कांग्रेस पार्टी उन राज्यों में तो वापसी कर सकती है, जिन राज्यों में बीजेपी पिछले 10-15 सालों से शासन कर रही है. मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस वापसी कर सकती है. इसमें राहुल गांधी की रणनीति या उपल्बधि से ज्यादा जनता की नारजगी महत्वपूर्ण है. इन राज्यों में जनता अगर बीजेपी से नाराज है तो विकल्प के तौर पर जनता के पास कांग्रेस के अलावा कोई और पार्टी नहीं है.

लेकिन, कांग्रेस पार्टी उन राज्यों में सिमटती जा रही है जहां पर कांग्रेस विचारधारा के वोटर हैं वो वहां के दलों को मुकाबला देने में विफल हैं. हम आपको बता दें कि अभी उड़ीसा में उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस का टोटल वोट बीजेपी की तरफ शिफ्ट कर गया. कांग्रेस का वोटर जो बीजेडी को रिप्लेस करना चाह रहा था, लेकिन वह वोटर देखा कि कांग्रेस बीजेडी को रिप्लेस नहीं कर सकता तो वह बीजेपी की तरफ शिफ्ट कर गया.

उड़ीसा उपचुनाव से यह साबित हो गया है कि कांग्रेस विकल्प देने में असमर्थ साबित हो रही है. यही कुछ नजारा त्रिपुरा में भी देखने को मिला. यही पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रहा है. राहुल गांधी के खतरे की घंटी यह है कि अभी भी जमीन पर बीजेपी का जो मैनेजमेंट है उसका सामना करने में वे फेल हैं. कांग्रेस अभी भी इसी बात पर चुनाव लड़ रही है कि जो वोटर बीजेपी से नाराज होगी तो खुद-व-खुद हमारे पास लौट जाएगी, लेकिन यह थ्योरी उन्हीं राज्यों में सफल हो रहा है, जहां कांग्रेस पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी है. जिन राज्यों में तीसरी पार्टी है वहां के वोटर कांग्रेस के छिटकते जा रहे हैं.’

बूथ पर कमजोर पार्टी

हाल के कुछ चुनावों की बात करें तो यह साबित होता है कि कांग्रस पार्टी एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर से जीत मिली है. पंजाब में कांग्रेस पार्टी इसलिए जीती क्योंकि वहां की जनता आकालियों से काफी ऊब चुकी थी. कांग्रेस के प्रदेश स्तर, जिला स्तर के नेता और ब्लॉक स्तर के नेताओं के प्रबंधन को सही करना होगा.

वहीं और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जनता विकल्पहीनता के चक्कर में कांग्रेस को चुन रही है. ट्विटर य़ा फेसबुक के जरिए कांग्रेस पार्टी कुछ लोगों को भले ही अपनी तरफ मोड़ सकती है, लेकिन इससे बूथ लेवल मैनेजमेंट नहीं किया जा सकता है.

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वाकई कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को बीजेपी और खासकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह से कुछ सीख लेनी चाहिए. राहुल गांधी को सीख लेनी चाहिए कि किस तरह चुनाव लड़ा जाता है और जीता जाता है. बीजेपी जिस तरह से और जिस हद तक जा कर बूथ लेवल मैनेजमेंट कर चुनाव जीत रही है वह अपने आप में काबिले तारीफ है. बीजेपी का एक के बाद एक जीत हासिल करना कोई तुक्का तो नहीं हो सकता?

ट्विटर, फेसबुक या सोशल साइट्स के जरिए सवाल-जवाब कर बेशक कुछ लोगों को आप अपने तक खींच कर ला सकते हैं, पर मास लेवल पर आपको अपने आपको साबित करने के लिए उनसे जुड़ना पड़ेगा. पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने कहा था कि हम अपने आपको अगले दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल से भी बड़ी जीत हासिल करेंगे. हाल के गुजरात चुनाव में भी पार्टी की हार पर राहुल गांधी बोले थे कि यह पार्टी के लिए मॉरल विक्टरी है. अब जबकि पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में पार्टी की करारी हार हुई है इसपर राहुल गांधी क्या बोलेंगे?

अब समय आ गया है कि राहुल गांधी को अरविंद केजरीवाल टाइप की राजनीति करने के बजाए बूथ लेवल पर जनता से सीधे संवाद कर उसकी परेशानी को समझ कर राजनीति करनी पड़ेगी. कुछ साल पहले तक अरविंद केजरीवाल भी अपने राजनीतिक पारी की शुरुआत में नरेंद्र मोदी से सवाल-जवाब किया करते थे. लेकिन, हाल के कुछ सालों में अरविंद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला करने के बजाए मुद्दा ढूंढ कर हमला करते हैं. अरविंद केजरीवाल ने सोशल साइट्स पर हमला करना छोड़ लगभग छोड़ ही दिया. लेकिन, अरविंद केजरीवाल की इस आदत को राहुल गांधी और उनकी टीम ने अब अपना लिया, जो कि उनके लिए सही साबित नहीं हो रही है.

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