पिछले साल इसी अगस्त महीने में गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 60 से अधिक बच्चों की अकाल मौत ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. योगी आदित्यनाथ सरकार को चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ा था. उस घटना के एक साल बाद अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति सुधारने के नाम पर अन्य उपायों के अलावा, स्वास्थ्य विभाग ने एक कदम ये उठाया है कि अब अस्पताल के अधिकारियों ने स्वास्थ्य बुलेटिन देना ही बंद कर दिया है. न्यूज़ 18 की एक खबर के मुताबिक पिछले बारह महीनों में जानलेवा इन्सेफलाइटिस रोग के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक ये भी निर्णय लिया गया है.
शायद पिछले साल की घटना के बाद हुए चौतरफा हमलों और आलोचनाओं की वजह से ये कदम उठाया गया है. बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल गणेश कुमार ने कहा, 'अब हम प्रधान सचिव के आदेशों के अनुसार इन्सेफलाइटिस के कारण मौत का सारा डाटा मुख्य चिकित्सा अधिकारी को भेजते हैं और अपने स्तर पर अब हम किसी भी मौत के आंकड़े जारी करने के लिए अधिकृत नहीं हैं.'
नाम न बताने की शर्त पर एक स्थानीय पत्रकार ने कहा कि हर बारिश के पूर्वी-उत्तर प्रदेश में कई जिलों में बच्चों को अकाल मौत का शिकार बनाने वाली इस बीमारी की खबरों को फैलने से रोकने के लिए इन उपायों को अपनाया गया है. 'जब आपके पास मृत्यु आंकड़ों की सही संख्या ही नहीं होगी, तो आप उन पर लिखेंगे कैसे? सरकार सिर्फ आंकड़ें ही नहीं छिपाना चाहती बल्कि खुद को भी शर्मिंदगी से बचाना चाहती है. वरना पिछले 10 सालों से रोजाना दिए जाने वाले मेडिकल बुलेटिन को बंद नहीं किया जाता.'
नए नियमों के अनुसार, मौतों का आंकड़ा हर सोमवार को सीएमओ कार्यालय को भेजा जाता है. इसके बाद, पूरे जिले और बीआरडी अस्पताल में कुल मौत की एक रिपोर्ट बनाई जाती है. इसके अलावा, डाटा केवल एईएस (एक्यूट इन्सेफलाइटिस सिंड्रोम) के कारण हुई मौतों की संख्या को बताता है, जापानी इन्सेफलाइटिस की नहीं. इसके पहले, बीआरडी अस्पताल में जापानी इन्सेफलाइटिस के कारण मौतों की सही संख्या को बताने के लिए एक दैनिक बुलेटिन जारी किया जाता था.
इस साल मानसून एक महीने की देरी से आया है और बारिश पिछले हफ्ते से ही शुरु हुई है. मच्छरों के प्रजनन के लिए हालात अब अनुकूल हो रहे हैं. ऐसे में लोगों को इन्सेफलाइटिस के एक और प्रकोप डर है. क्योंकि इसके लिए यही मौसम सबसे उपयुक्त होता है. साल दर साल ये बीमारी आती है सैंकड़ों बच्चों को काल के गाल में समा देती है. हालांकि डॉ. गणेश कुमार का कहना है कि अस्पताल मरीजों की भारी संख्या और किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है.
लेकिन जब डॉ. गणेश को बताया गया कि अस्पताल में अभी 16 डॉक्टरों की कमी है तो वो बताते हैं- 'ये मुख्यत: सैलरी की समस्या के कारण है. हमने खाली पदों को भरने के लिए इश्तिहार दिया था लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ. अब हमने सरकार से सैलरी बढ़ाने के लिए लिखा है और उम्मीद करते हैं कि हमें जल्दी ही इसकी इजाजत मिल जाएगी.'
अब मेडिकल ऑक्सीजन खरीदने में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका को खत्म करके सीधा निर्माताओं से सीधे खरीदा जा रहा है. पिछले साल इस बात के आरोप लगे थे कि बीआरडी कॉलेज में बड़ी संख्या में बच्चों की मौत पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति न होने की वजह से हुई थी. हालांकि, अस्पताल की साफ सफाई अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है.
तराई क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए जापानी इन्सेफलाइटिस कोई नई बीमारी नहीं है. पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार के सीमावर्ती इलाकों और यहां तक कि नेपाल के कुछ हिस्सों से भी मरीज इन्सेफलाइटिस के उपचार के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल आते हैं. क्योंकि इस क्षेत्र में कई वर्षों से इस खतरे से लड़ने वाली यह सबसे बड़ी सरकारी सुविधा है. एईएस मुख्य रूप से जेई और स्कब टाइफस (एक गैर वायरल जीवाणु संक्रमण) के कारण होता है. देश के इस हिस्से में मौजूदा मानसून का मौसम इसे और भी बदतर बनाता है.
इस बीमारी से लड़ने के लिए, योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक वर्षीय योजना तैयार की है. इसमें शुरुआती टीकाकरण, प्रभावित आवास से सूअरों को अलग करना, बीमारी को फैलने से रोकने के लिए तत्काल प्रतिक्रिया टीमों को भेजना, पीने के पानी की सुविधा सिर्फ 'भारत मार्क -2' टैप से या फिर हैंड पंप से ही देने को प्रोत्साहित करना शामिल है. साथ ही माता-पिता को ये बताना कि वो अपने बच्चों को मिट्टी में सोने न दें और अगर अगर उन्हें कोई लक्षण दिखता है तो 108 पर एम्बुलेंस हेल्पलाइन को तुरंत कॉल करें.
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