मोदी सरकार के खिलाफ ये पहला अविश्वास प्रस्ताव है. सबको पता है कि इसका नतीजा क्या निकलने वाला है. लेकिन सभी पार्टियां और उनके नेताओं ने अपनी-अपनी मुश्कें कस रखी हैं. सरकार चाहती है कि वो सिर्फ संसद में विश्वास मत ही हासिल नहीं करे बल्कि विपक्ष की बखिया उधेड़ दे. विपक्षा चाहता है कि भले ही उसका अविश्वास प्रस्ताव गिर जाए लेकिन संसद में बहस से वो सरकार को बदनाम करके हार कर भी बाजीगर बन जाए. अविश्वास प्रस्ताव तो पहले भी लाए गए हैं, पहले भी सरकारें गिरी हैं, पहले भी सरकारों ने जोड़-तोड़ करके विश्वास मत हासिल किया है. लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव उन सबसे अलग है.
अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष का रवैया दिलचस्प रहा है. संसद के पिछले सत्र में टीडीपी और कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियां सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस देती रहीं लेकिन स्पीकर ने उसे मंजूर नहीं किया. विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का कुछ मतलब नहीं था लेकिन विपक्ष प्रस्ताव देकर सरकार को देश के सामने कटघरे में खड़े कर रही थी, प्रस्ताव मंजूर नहीं होने की वजह से विपक्ष को सरकार बनिस्बत रणनीतिक बढ़त मिली हुई थी. पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया. सरकार और विपक्ष के बीच बयानबाजी के सिवाय कोई काम नहीं हुआ.
मॉनसून सत्र शुरू होने के पहले ही साफ हो गया था कि सत्र की शुरुआत ही सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से होगी. टीडीपी ने पहले ही बोल दिया था कि वो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएगी. लेकिन टीडीपी समेत समूचे विपक्ष को ये अंदाजा नहीं रहा होगा कि इस बार अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करने में सरकार इतनी जल्दबाजी दिखाएगी. विपक्ष की रणनीति पहले ही वाली थी. अविश्वास प्रस्ताव के बहाने मोदी सरकार को देश की जनता की निगाहों में कटघरे में बनाए रखने का. लेकिन लोकसभा स्पीकर ने प्रस्ताव को मंजूर कर विपक्ष को अचानक से झटका दे दिया.
प्रस्ताव मंजूर होने के दो दिन के भीतर सदन में चर्चा करवाने की व्यवस्था कर ताबड़तोड़ दूसरा झटका दिया गया. इतनी जल्दी में सबकुछ हुआ कि किसी दल को ज्यादा सोचने का मौका तक नहीं मिला. कंफ्यूजन विपक्ष में ही नहीं बल्कि एनडीए के उन सहयोगी दलों के बीच तक रहा जो साथ होकर भी मोदी सरकार की कई मुद्दों पर मुखालफत कर रही थी. शिवसेना में भ्रम की स्थिति रही. अब तक मोदी सरकार के खिलाफ तीखे हमलावर अपनाए हुए शिवसेना के सामने मुश्किल थी कि वो इस आपात स्थिति में क्या रुख अख्तियार करे.
पहले खबर आई कि शिवसेना मोदी सरकार के साथ होगी और प्रस्ताव के खिलाफ वोट करेगी. फिर शायद शिवसेना के नेताओं को लगा कि थोड़ी जल्दबाजी हो गई. इतने दिनों तक मोदी सरकार को हर मुद्दे पर घेरने के बाद अविश्वास प्रस्ताव पर बिना सोचे समझे सरकार का समर्थन करने से जनता के बीच कुछ अच्छा संदेश नहीं जाएगा. आखिर में प्रस्ताव पर चर्चा के दिन शिवसेना के नेता संजय राउत की तरफ से बयान दिया गया कि अभी तक पार्टी ने अपने रुख के बारे में फैसला नहीं किया है.
गुरुवार दोपहर तक पार्टी ने अपने सांसदों को व्हिप जारी कर दिया था. सारे सांसदों को सदन में मौजूद रहने की ताकीद की गई थी. खबर थी कि पार्टी सरकार के समर्थन में वोट करेगी. शुक्रवार सुबह पार्टी ने यू टर्न ले लिया. उद्धव ठाकरे के निकट सहयोगी हर्षल प्रधान ने बताया, 'उद्धवजी ने सभी सांसदों से शुक्रवार को दिल्ली में मौजूद रहने के लिए कहा है और पार्टी के निर्णय के बारे में शुक्रवार को सुबह शिवसेना अध्यक्ष उन्हें बताएंगे.' बताया गया कि व्हिप गलती से जारी हो गया था. शिवसेना के इस कंफ्यूजन से कांग्रेस और एनसीपी को उस पर हमला करने का मौका मिल गया. उन्होंने कहा कि शिवसेना के ढोंग का पर्दाफाश हो चुका है. प्रस्ताव से चर्चा के ऐन पहले शिवसेना ने ऐलान किया कि वो अविश्वास प्रस्ताव का बहिष्कार करेगी. पार्टी के सांसद वोटिंग में शामिल नहीं होंगे.
ऐसा कंफ्यूजन सिर्फ शिवसेना के साथ ही नहीं है बाकी पार्टियों में भी है. ये देखना दिलचस्प होगा कि सरकार के समर्थन में कितने वोट हासिल होते हैं? किन पार्टियों के भीतर सेंध लगती है? कौन से नेता अपनी पार्टी की विचारधारा से अलग अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनते हैं?
लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा और वोटिंग से पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया है. लिखा है, 'हमारे संसदीय लोकतंत्र में आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है. मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे साथी सांसद इस मौके पर तर्कसंगत, व्यापक और बिना हंगामे की चर्चा को सुनिश्चित करेंगे.' प्रधानमंत्री मोदी आश्वस्त हैं कि इस मुकाबले में सरकार की बड़ी अंतर से जीत मिलने वाली है. सरकार की कोशिश ये है कि संसद में भाषण के जरिए पूरे देश के सामने विपक्ष के अब तक हमलों का माकूल जवाब देकर हिसाब बराबर कर दिया जाए.
सरकार की तरफ से गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वीरेंद्र सिंह मस्त और अर्जुन मेघवाल अपनी बात रखेंगे. एनडीए के सहयोगी दल भी सरकार के बचाव में खड़े होंगे. हरसिमरत कौर बादल और रामविलास पासवान एनडीए सरकार का बचाव करेंगे. राहुल गांधी बहस की शुरुआत करेंगे. राहुल गांधी के भाषण को लेकर ट्विटर पर पहले ही लोग टूट पड़े हैं. कभी राहुल गांधी ने कहा था कि उन्हें संसद में बोलने का मौका ही नहीं दिया जाता. अगर दिया जाए तो भूकंप आ जाएगा.
आज उन्हें बोलने का मौका दिया गया है और सब भूकंप की प्रतीक्षा में हैं. ट्विटर पर राहुल के जमकर मजे लिए जा रहे हैं. सुबह-सुबह केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने ट्वीट किया कि भूकंप के मजे लेने के लिए तैयार हो जाइए.
भूकंप के मज़े लेने के लिए तैयार हो जाइए ।
— Giriraj Singh (@girirajsinghbjp) July 20, 2018
सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के उस भाषणों का लोग मजाक बना रहे हैं. ट्वीटर पर #BhookampAaneWalaHai टॉप ट्रेंड कर रहा है. बीजेपी आईटी सेल के धुरंधर राहुल गांधी पर पिल के पड़ गए हैं. अमित मालवीय ने पूछा है कि अगर 15 मिनट में एक बार भूकंप आता है तो 38 मिनट में कितनी बार भूकंप आएगा.
कांग्रेस को संसद में 38 मिनट बोलने का समय मिला है. तेजिंदर पाल बग्गा ने लिखा है कि इस भूकंप को रिक्टर स्केल पर नहीं, बल्कि लॉफ्टर स्केल पर नापा जाएगा. अविश्वास प्रस्ताव से पहले माहौल सरगर्म हो चुका है. पक्ष और विपक्ष के बयानों के अंधड़ में हकीकत को टटोलना मुश्किल होने वाला है.
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