जिस मुस्तैदी से लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार किया और उससे भी ज्यादा तत्परता सत्र के दूसरे ही दिन इस फैसले से दिखाई कि अविश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को ही बहस करा ली जाए, उससे विपक्ष भौंचक्का रह गया है. आपको याद होगा कि इस साल बजट सत्र का आधा हिस्सा, विपक्ष की इसी मांग पर हो-हल्ले में खराब हो गया था.
अब ये बात चर्चा का विषय बन गई है कि बीजेपी नेतृत्व ने मॉनसून सत्र में अचानक इतनी तत्परता से अविश्वास प्रस्ताव मान क्यों लिया. खास तौर पर तब, जब बजट सेशन में विपक्ष के इतने शोरगुल के बाद भी वह अविश्वास प्रस्ताव के लिए नहीं मानी थी और सत्र का खत्म होने तक ये मांग टालने की कोशिश करती रही. इस बारे में फ़र्स्टपोस्ट ने कई बड़े नेताओं से बात की कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी इस सत्र में तुरंत अविश्वास प्रस्ताव के लिए तैयार हो गई. हम आपको बताते हैं सरकार ने ऐसा क्यों किया.
पहली वजह, कांग्रेस और उसकी करीबी पार्टियां मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के लिए बहुत दिनों से जिद कर रही थीं लेकिन वह जल्दी में नहीं थी. वे ये नहीं चाहती थीं कि सदन के फ्लोर पर बहस इतनी जल्दी हो जाए. क्योंकि वे जानते थे कि एक बार अगर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा, बहस और वोटिंग हो जाएगी, तो उनके पास कोई ऐसा मुद्दा नहीं रह जाएगा जिस पर वे इस सत्र में सरकार को घेर सकें.
देश में मॉनसून आ चुका है और कई हिस्सों में बारिश से मुल्क सराबोर भी हो चुका है, तापमान काफी नीचे आ चुका है. लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनावों के सिर पर आ जाने से राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई हैं. इन सभी राज्यों में होने वाले चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस की सीधी-सीधी टक्कर है और माना जा रहा है कि इन राज्यों में चुनावों के जो नतीजे आएंगे, उनका असर 2019 के संसदीय चुनावों पर जरूर पड़ेगा. जाहिर है कांग्रेस और उनकी सहयोगी पार्टियों को यही पसंद आता कि पूरा सत्र तूफानी रहे और रोज हंगामा होता रहे.
बुधवार को स्पीकर के अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार करते ही जरा सदन की कार्यवाही पर ध्यान दीजिए. सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने स्पीकर से आग्रह किया कि वे अविश्वास प्रस्ताव पर बहस और मतदान के लिए 10 दिन के भीतर ही कोई तारीख सुनिश्चित कर दें. मतलब ये कि वे चाहते ही नहीं थे कि अविश्वास प्रस्ताव पर बहस तुरंत हो जाए. याद रखिए, ये सत्र सिर्फ 18 दिनों का है, जिसमें तीन शुक्रवार भी हैं, जो आमतौर पर प्राइवेट मेंबर्स बिजनेस के लिए ही होते हैं.
दूसरी वजह, अविश्वास प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार करने और तीन दिन के भीतर ही करा लेने से बीजेपी, कांग्रेस और राहुल गांधी को बेनकाब करना चाहती है. इस साल अप्रैल में कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा था कि अगर उन्हें 15 मिनट के लिए संसद में बोलने का मौका मिले, तो नरेंद्र मोदी सदन में खड़े नहीं हो पाएंगे. शायद उनका मतलब ये था कि अगर वो बोलने के लिए खड़े हुए, तो अपनी वाक कला से मोदी को हरा देंगे और अंतत: मोदी को संसद से भागना पड़ेगा.
इससे पहले भी राहुल ने कहा था कि संसद में सरकार उन्हें बोलने नहीं देती, क्योंकि वे अगर बोले तो भूकंप आ जाएगा. बीजेपी के राज्यसभा सांसद और मीडिया सेल के मुखिया अनिल बलूनी ने कहा, 'राहुल को जरूर बोलना चाहिए और अगर उनकी इतनी हैसियत है, तो बोलें और भूकंप को आने दें.'
तीसरी बात, सोनिया गांधी ने कहा है कि मोदी सरकार को गिराने के लिए उनके पास संख्या बल पर्याप्त है. उन्होंने कहा, 'कौन कहता है कि हमारे पास संख्या बल नहीं है ?' पिछली बार भी 1999 में उन्होंने ऐसा ही बयान दिया था. तब वे राष्ट्रपति से मुलाकात कर राष्ट्रपति भवन से बाहर निकली थीं और दावा किया था, 'हमारे पास 272 सांसद हैं और हमें उम्मीद है कि और भी सांसद हमारे साथ आ जाएंगे.'
बाद में उनकी बात झूठ साबित हुई और इस बार तो अगर संख्या की बात करें तो कांग्रेस उस बार से ज्यादा कमजोर जमीन पर खड़ी है. बीजेपी नेताओं ने सोनिया के बयान का मजाक उड़ाना शुरू ही कर दिया है. संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार का बयान आया, 'सोनिया जी गणित में बड़ी कमज़ोर हैं और संख्या सही-सही गिन नहीं पातीं. 1999 में भी वो इस गिनती में फेल हुईं और इस बार भी वो ग़लत ही गिन रही हैं.'
चौथी बात, ऐसे सदन में जिसमें स्पीकर को छोड़ कर कुल सांसदों की संख्या 534 (10 सीटें खाली) हैं, प्रस्ताव लाने वाली टीडीपी के कुल सांसद 16 हैं और समर्थन करने वाली सबसे बड़ी पार्टी के 48 सांसद हैं. लोकसभा में फ्लोर पर मोदी सरकार को हराने के लिए कांग्रेस को कुल 268 सांसदों का समर्थन चाहिए, जो सदन में मौजूद रहें और वोट भी करें. उधर बीजेपी के अपने सांसद ही 273 हैं.
पांचवी वजह, अविश्वास प्रस्ताव को तुरंत मान लेने से कांग्रेस के हाथ से प्रस्ताव लाने का मौका निकल गया और शुक्रवार की सुबह बहस की शुरुआत करने का मौका भी वे चूक गए. अगर बहुत जल्दी कोई मौका मिला भी, तो वह स्पीकर की लिस्ट में तीसरे नंबर पर ही मिल पाएगा और वह भी कांग्रेस वक्ता को एक तय समय में ही बोलना होगा.
आमतौर पर जो नेता सबसे पहले बोलता है, वही दिन भर की बहस का एजेंडा तय करता है. पहले बोलने वाला कांग्रेस का नहीं होगा और जो भी होगा, उसे खूब समय मिलेगा. हालांकि कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम उन 8 नेताओं की सूची में है, जिन्होंने स्पीकर को अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है, लेकिन टीडीपी नेता के श्रीनिवास ने प्रस्ताव सबसे पहले दिया था.
छठी वजह, बीजेपी इस मौके का इस्तेमाल कर देश को यह बताना चाहती है कि विपक्ष की एकता के दावे कितने खोखले हैं. ये इसी बात से साबित होता है कि प्रस्ताव देने के लिए आठ पार्टियों के आठ नेता अलग-अलग स्पीकर के पास गए. यानी विपक्षी पार्टियों में या तो कोई समन्वय नहीं है या फिर हर पार्टी दूसरी पार्टियों के खिलाफ अपनी अहमियत साबित करना चाहती है. तो फिर एका कहां है ?
सातवीं वजह ये कि अगर बीजेपी, एनडीए सांसदों की वर्तमान संख्या 314 से ज़्यादा सांसदों का समर्थन लेने पर सफल रहती है, तो यह विपक्ष के लिए बहुत बड़ी हार होगी और आने वाले दिनों में चर्चा का विषय भी बनेगी. एआईएडीएमके ने पहले ही कह दिया है कि वह प्रस्ताव के पक्ष में वोट नहीं करेगी और सदन में सरकार का साथ देगी. बता दें कि लोकसभा में एआईएडीएमके के कुल 37 सांसद हैं.
आठवीं वजह, शुक्रवार को प्रस्ताव पर बहस कराने का मतलब ये है कि सरकार नहीं चाहती कि विपक्ष को सदन की कार्यवाही में रुकावट डालने का मौका मिले. सरकार को संसद से कुछ महत्वपूर्ण बिल भी पास कराने हैं, जैसे तीन तलाक, जीएसटी , जम्मू-कश्मीर में गवर्नर रूल की संपुष्टि और वे 6 महत्वपूर्ण बिल भी जो अध्यादेशों को हटाने के लिए लाए जाएंगे.
इनमें आर्थिक अपराध पर भगोड़ों के लिए बिल, 12 साल से कम की उम्र की लड़कियों के साथ रेप के लिए फांसी की सज़ा के प्रावधान वाला बिल, इनसाल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड संशोधन बिल, क्रिमिनल लॉ संशोधन बिल, कॉमर्शियल कोर्ट्स संशोधन बिल 2018 शामिल हैं. भगोड़ों के लिए जो बिल आना है , वह इसलिए खास है क्योंकि उसके पास होने से उन लोगों की संपत्तियां ज़ब्त की जा सकेंगी, जो आर्थिक अपराध कर, देश के कानून से बचने के लिए, देश से बाहर भाग गए हैं.
ये बिल मार्च 2018 में लोकसभा में लाया गया था. उस के बाद ही इसके लिए एक अध्यादेश 21 अप्रैल 2018 को लाया गया. क्रिमिनल लॉ संशोधन बिल भी बलात्कार के लिए सज़ा बढ़ाने और 12 साल की बच्चियों से बलात्कार पर मृत्युदंड के लिए लाया जाना था. इसके अलावा इन्सालवेंसी और बैंकरप्सी बिल भी इस कानून में मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए है.
नवीं वजह ये कि, अविश्वास प्रस्ताव के लिए तुरंत मान जाने से सरकार ये संदेश देना चाहती है कि विपक्ष के किसी भी मुद्दे से सरकार डरती नहीं है. दसवीं और सबसे महत्वपूर्ण वजह ये कि बोलने में माहिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ये एक शानदार मौका होगा, जब पूरा देश उन्हें बोलते हुए देखेगा और सुनेगा.
ये ऐसा मौका होगा जब प्रधानमंत्री एक बार फिर पूरे देश के सामने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाएं, राहुल गांधी और बाकी विपक्ष को अपने चिर-परिचित अंदाज़ में माकूल जवाब दें. बहस के आखिर में मोदी का जवाब, ऐसा भी हो सकता है कि आगे कई दिनों तक लोग उसकी चर्चा करें. यानी शुक्रवार की शाम मोदी के भीतर के ‘रॉक स्टार वक्ता’ की शाम होगी. फिलहाल अभी तक तो सदन में अपने भाषणों से उन्होंने अपने समर्थकों और चाहने वालों को निराश नहीं किया है.
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