मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर आंध्र प्रदेश की दो क्षेत्रीय पार्टियां टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस ने नोटिस दे रखा है. दोनों आंध्र प्रदेश विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर इन दोनों पार्टियों ने सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की है.
खासतौर से टीडीपी का रुख ज्यादा आक्रामक है जो अबतक मोदी सरकार में शामिल थी, लेकिन, एक झटके में ही सरकार से बाहर भी हो गई और फिर एनडीए से नाता भी तोड़ लिया. अब एक कदम और आगे बढ़कर टीडीपी ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस भी लोकसभा में दे दिया है.
लेकिन, सवाल है कि जब अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस टीडीपी ने दे दिया है तो फिर वो हंगामा क्यों कर रही है. पहले सदन के बाहर संसद परिसर में हंगामा , फिर लोकसभा के भीतर हंगामा और हंगामे के कारण लोकसभा की कार्यवाही का स्थगित हो जाना यह क्या इशारा कर रहा है.
गंभीर है तो हंगामा क्यों?
क्या टीडीपी अविश्वास प्रस्ताव को लेकर गंभीर है? क्या वाईएसआर कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव को लेकर गंभीर है? अगर है तो फिर हंगामा क्यों किया जा रहा है? लोकसभा स्पीकर तो बस इतना ही कह रही हैं कि संसद में जबतक हंगामा नहीं थमता और सदन सुचारू रूप से नहीं चलता तबतक वो अविश्वास प्रस्ताव पर विचार नहीं करेंगी.
तो फिर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखे टीडीपी के सांसद स्पीकर की बात क्यों नहीं मान लेते? अगर वो हंगामा नहीं करते तो फिर सदन की कार्यवाही ठीक से चलती और स्पीकर फिर उनके अविश्वास प्रस्ताव पर विचार करतीं.
सरकार ने पहले ही साफ कर दिया है कि अविश्वास प्रस्ताव पर वो चर्चा के लिए तैयार है. फिर टीडीपी और वाईएसआर के सांसदों को आपत्ति किस बात की है जो हंगामा कर रहे हैं. शायद उनका मकसद ही यही है, जिस हंगामे के जरिए वो पॉलिटिकल माइलेज लेने में लगे हैं.
टीडीपी के लोकसभा में 16 सांसद हैं, उन्हें संसद में अविश्वास प्रस्ताव को मूव करने के लिए 50 से ज्यादा सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी, वरना यह प्रस्ताव मंजूर ही नहीं होगा. अगर वाईएसआर कांग्रस भी टीडीपी के साथ आ जाती है तो उस हालत में उसके 9 सांसदों को मिलाकर यह आंकड़ा 25 तक हो सकता है. उधर 9 सांसदों वाली सीपीएम ने भी अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने का फैसला किया है. तो फिर यह आंकड़ा 34 हो जाता है. फिर भी अविश्वास प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के समर्थन की दरकार होगी.
नफे-नुकसान का आकलन कर रही है कांग्रेस
फिलहाल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. हालांकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस प्रस्ताव के पक्ष में खड़ी हो सकती है. फिर भी वो अपने नफा-नुकसान का आकलन कर रही है. सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस को लग रहा है कि वो अविश्वास प्रस्ताव का अगर समर्थन करती है तो भी उसका गिरना तय है. ऐसे में आसानी से इस प्रस्ताव को गिराकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर से मजबूत होकर निकलेंगे. इस वक्त कई उपचुनावों में हार के बाद कांग्रेस अभी आक्रामक मुद्दा में है, लेकिन, अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा और बहस के बाद विपक्ष की हार सरकार के लिए बड़ी संजीवनी के तौर पर सामने आएगी.
दूसरी तरफ, आंध्र प्रदेश में टीडीपी से ही कांग्रेस की सबसे बड़ी लड़ाई है. अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार का विरोध कर प्रदेश की राजनीति में जो भी सियासी फायदा लेना होगा, उसका फायदा टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस को ही मिलेगा. कांग्रेस को तो कुछ भी फायदा नहीं मिलेगा. इसीलिए कांग्रेस थोडी सोच-समझ कर अभी कदम उठाना चाहती है. हो सकता है कि अविश्वास प्रस्ताव के वक्त कांग्रेस टीडीपी का समर्थन कर दे. लेकिन, वो ज्यादा उत्साहित नहीं लग रही है.
विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर लड़ाई टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस के बीच भी है. दोनों राज्य के सबसे बड़े हितैषी दिखाने में लगे हैं. इसी खींचतान में हंगामा ज्यादा हो रहा है. विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर हंगामा कर सदन की कार्यवाही स्थगित करने की कोशिश से इन दोनों ही दलों की मंशा पर सवाल खड़ा हो रहा है.
लेकिन, इससे अधिक की फिलहाल उम्मीद नहीं की जा सकती है, क्योंकि इनको सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से ज्यादा इस मुद्दे पर हंगामा कर मुद्दा गर्माए रखने में ज्यादा दिलचस्पी है जिससे सियासी फायदा उठाया जा सके.
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