भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के आरोपों पर पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया आई है. शाह ने आरोप लगाया था कि पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी विकास संबंधी काम के मामले में जम्मू-कश्मीर के तीनों क्षेत्रों में भेदभाव कर रही थी. उनके मुताबिक, इसी वजह से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को जम्मू-कश्मीर की गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने इन आरोपों पर सख्त प्रतिक्रिया जताते हुए साफ किया कि उनकी पार्टी एजेंडा ऑफ अलायंस (एओए) को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध थी.
पीडीपी अध्यक्ष ने ट्विटर से बीजेपी पर साधा निशाना
बीजेपी की तरफ से समर्थन वापस लिए जाने के कारण मुख्यपंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद पहली बार महबूबा मुफ्ती ने ट्विटर के जरिए अपने पूर्व सहयोगी (बीजेपी) पर निशाना साधा है. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद से महबूबा मुफ्ती ने आक्रामक विपक्ष जैसा रुख अख्तियार कर लिया है. महबूबा केंद्र सरकार को चेतावनी दे रही हैं कि अगर राज्य के विशेष दर्जे के साथ छेड़छाड़ की जाती है, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे.
साथ ही, उन्होंने छह ट्वीट के जरिए संकेत दिए हैं कि वह आगे आने दिनों में इन मुद्दों को उठाने जा रही हैं. महबूबा ने खास तौर पर राज्य के विशेष दर्जे के मामले का प्रमुखता से जिक्र किया है. इससके अलावा, उन्होंने इस साल जनवरी में कठुआ में 8 साल की बच्ची से रेप और उसकी हत्या पर भी अपना रुख पेश किया है.
जानकारों का मानना है कि महबूबा राज्य की एक और अहम पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस से भी ज्यादा विपक्ष की तरह बर्ताव कर रही हैं. जाहिर तौर पर सरकार गिरने के बाद इन गतिविधियों के मद्देनजर नेशनल कॉन्फ्रेंस भी खुद को अजीबोगरीब स्थिति में पा रही है.
पीडीपी के नेताओं के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी के साथ उनका गठबंधन टूटने से महबूबा मुफ्ती गठबंधन राजनीति की बेड़ियों से मुक्त हो गई हैं और अब वह पूरी तरह से खुलकर राजनीति कर रही हैं. महबूबा ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल से मुलाकात कर राज्य के लिए विशेष दर्जे को कायम रखने को लेकर अपनी सरकार का पक्ष पेश किया.
गठबंधन से अलग होने के बाद राजनीतिक जुमलेबाजी में जुटे शाह !
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह जब पिछले शनिवार को जम्मू पहुंचे, तो उन्होंने कहा, 'पीडीपी सरकार ने जम्मू और लद्दाख से भेदभाव किया.' शाह की इस टिप्पणी पर महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट कर कहा, 'जम्मू और लद्दाख से भेदभाव के आरोपों का वास्तव में कोई आधार नहीं है. हां, घाटी में लंबे समय से उपद्रव रहा है और 2014 में आई बाढ़ भी बड़ा संकट था, लिहाजा इस इलाके पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत थी. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि बाकी जगहों पर किसी भी तरह से विकास का कम काम हुआ.'
Allegations of discrimination against Jammu & Ladakh have no basis in reality. Yes, the valley has been in turmoil for a long time & the floods of 2014 were a setback, therefore needed focused attention. But that does not mean that there was any less development elsewhere. 3/6
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) June 24, 2018
महबूबा ने कई ट्वीट कर आगे कहा, 'जमीन पर नतीजे सब देख सकते हैं. अगर ऐसा कुछ है, तो उन्हें अपने मंत्रियों के प्रदर्शन की समीक्षा करनी चाहिए, जो मुख्य तौर पर जम्मू क्षेत्र की नुमाइंदगी करते थे. अगर कुछ ऐसा था, तो पिछले 3 साल में राज्य या केंद्र स्तर पर किसी ने भी इस तरह की बात नहीं की.'
Results on the ground for all to see. If anything they should review the performance of their own ministers, who largely represented the Jammu region if there were any such concerns, none among them either at state or central level talked about it during the last 3 years. 4/6
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) June 24, 2018
उन्होंने पूछा, 'शुजात की हत्या के बाद जम्मू-कश्मीर में अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर चिंता जताए जाने के बाद यानी उनके विधायक अब भी घाटी के पत्रकारों को धमकाते हैं. ये विधायक कठुआ केस के बाद अपनी भूमिका के लिए कुख्यात हैं और यहां तक कि उन्हें दंड भी दिया गया है. लिहाजा, वे उनके खिलाफ क्या कर रहे हैं?'
महबूबा का यूटर्न, भेदभाव का राग अलापने में जुटी बीजेपी
रमजान के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से एकतरफा युद्धविराम का ऐलान किए जाने के बाद महबूबा ने फर्स्टपोस्ट को दिए इंटरव्यू में आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन रोकने के लिए केंद्र सरकार की काफी तारीफ की थी. उस वक्त उन्होंने कहा था कि इससे रमजान के पवित्र महीने के दौरान शांति का माहौल बनाए रखने में मदद मिलेगी. उनका कहना था, 'यह पहल उन चीजों में शामिल हैं, जिसको लेकर हम प्रतिबद्ध हैं.'
उस वक्त फर्स्टपोस्ट के साथ इंटरव्यू में महबूबा ने कश्मीर मामले को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह में जिस तरह का भरोसा दिखाया था, पिछले रविवार को उनका बयान इसके ठीक उलट था.
चुनावी सीजन में जम्मू के खिलाफ भेदभाव का मामला बार-बार उछाला जाता है, जिसका मकसद कश्मीर और कश्मीरी नेताओं के खिलाफ माहौल बनाना होता है. इस मुद्दे का इस्तेमाल सांप्रदायिक गोलबंदी के लिए भी किया जाता है. जानकारों का कहना है कि जम्मू में आर्थिक विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर के मोर्चे पर जो काम हुआ है, वह कश्मीर से ज्यादा ही है.
शाह ने जम्मू में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, 'हम किसी ऐसी सरकार का हिस्सा नहीं हो सकते, जो जम्मू और लद्दाख क्षेत्र के साथ भेदभाव करती हो और यह शांति बहाल करने में नाकाम रही. हम राज्य में ऐसी कोई सरकार नहीं चलने देंगे.'
दरसअल, अमित शाह बीजेपी की राजनीति के लिहाज से मजबूत क्षेत्रों- जम्मू और लद्दाख के संदर्भ में बात कर रहे थे, जहां पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में सभी 3 संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी. राज्य में अगली बार चुनाव होने पर कथित कम विकास और भेदभाव का मुद्दा जम्मू में सबसे बड़ा मुद्दा होगा और राष्ट्रीय बहस में भी इसके प्रमुखता से उभरने की संभावना है.
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