बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के आरजेडी की अगले महीने प्रस्तावित रैली में भाग लेने को लेकर अटकलों के बीच जेडीयू ने स्पष्ट किया कि अगर उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को आमंत्रण मिलता है तो उसमें वह निश्चित तौर पर भाग लेंगे.
जेडीयू की राज्य कार्यकारिणी की बैठक के बाद पार्टी के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा, 'हम लोग रैली में निश्चित तौर पर भाग लेंगे, अगर आरजेडी हमारे नेता नीतीश कुमार जी को आमंत्रित करेगी.'
पहले कहा जा रहा था कि जेडीयू 27 अगस्त को आरजेडी की पटना में प्रस्तावित 'भाजपा हटाओ, देश बचाओ' रैली में भाग नहीं लेगा.
हालांकि जेडीयू की ओर से इस बयान से लगता है कि महागठबंधन एक और बड़े संकट में है. यूं तो आमंत्रण के इंतजार की बात कहकर जेडीयू ने रैली को लेकर चल रहे बवाल को थोड़ा ठंडा करने की कोशिश की है, लेकिन यह साफ-साफ दिखाता है कि सबकुछ ठीक नहीं हैं.
क्या नीतीश को अभी तक नहीं मिला न्योता?
लालू यादव इस रैली के लिए कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं के अलावा मायावती, अखिलेश यादव जैसे कई विपक्षी नेताओं को बुलावा भेज चुके हैं. ऐसे में यह अद्भुत है कि सरकार में अपने सहयोगी जेडीयू को ही उन्होंने न्योता नहीं भेजा है.
रैली को लेकर नीतीश के रुख से साफ है कि वह फिलहाल अपने सहयोगियों से बेहद खुश नहीं है. रविवार को उनके बयान से भी साफ हो गया कि वह जल्द सुलह-शांति के मूड में नहीं हैं.
वैसे रविवार को नीतीश कुमार ने निशाने पर कांग्रेस को रखा. उन्होंने कांग्रेस से साफ शब्दों में कह दिया है कि वे किसी के पिछलग्गू नहीं हैं. नीतीश ने रविवार को पटना में राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि कोई गलतफहमी में न रहे कि वे किसी के पिछलग्गू हैं. वे सहयोगी हैं और सहयोगी की तरह रहेंगे.
नीतीश कुमार ने कांग्रेस के नेताओं से साफ शब्दों में कहा कि खुशामद करना उनकी फितरत में शामिल नहीं है. जाहिर है कि नीतीश राष्ट्रपति चुनाव उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस से खुश नहीं हैं.
नीतीश ने कहा कि कांग्रेस ने पहले गांधी की विचारधारा को छोड़ा, फिर नेहरू की नीतियों की भी तिलांजलि दी. उन्होनें नसीहत भरे लहजे में कहा कि हमको किसी से सीख लेने की जरूरत नहीं है.
आरजेडी और कांग्रेस के नोटबंदी का विरोध किए जाने के बाद जेडीयू द्वारा इसका समर्थन किए जाने से इन दलों के बीच मतभेद राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के रामनाथ कोविंद का जदयू द्वारा समर्थन किए जाने से और भी गहरा गया था.
नीतीश के तेवर जाहिर
नीतीश के तेवर से स्पष्ट है कि फिलहाल सरकार चलाने की मजबूरी की आड़ में वे अपने किसी सहयोगी के सामने किसी मुद्दे पर झुकने के लिए तैयार नहीं हैं.
नीतीश ने विपक्ष की एकता की चर्चा करते हुए कहा कि पहले असम चुनाव के पूर्व और दूसरी बार उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले उन्होंने पहल की, लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने नहीं होने दिया और दोनों जगह भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी.
बिहार में महागठबंधन के भविष्य पर उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं से पार्टी के काम पर ध्यान देने के लिए कहा. नीतीश ने कहा कि गठबंधन कैसे चल रहा है, जो होना है वह होगा और हम सही समय पर निर्णय लेते हैं. लेकिन हम किसी की परवाह नहीं करते हैं.
जाहिर महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है और अभी लालू यादव को 'देश बचाओ' रैली से पहले गठबंधन बचाने की चिंता रहेगी. नीतीश जानते हैं कि अपने काम और फैसलों से वह बिहार की जनता में अभी भी सबसे लोकप्रिय नेता हैं. कोविंद के समर्थन को भी उन्होंने दलित और बिहारी अस्मिता से जोड़ा है. ऐसे में वह जल्दी झुकने वाले नहीं.
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