बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि वो किसी भी हाल में सांप्रदायिकता को बर्दाश्त नहीं करेंगे. उनका यह कड़ा संदेश केंद्रीय मंत्रियों के लिए था जिन्होंने पिछले दिनों बिहार के अलग-अलग इलाकों में हुई घटनाओं को लेकर बयान दिया था.
पिछले साल जुलाई में एनडीए गठबंधन में दोबारा लौटने के बाद नीतीश और बीजेपी के बीच हुई इसे पहली तकरार माना जा रहा है. हालांकि 2013 में जब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ 17 साल पुराने अपने गठबंधन से अलग हुए थे उस दौरान भी उन्होंने बिहार में सांप्रदायिकता की राजनीति होने नहीं दी थी.
गठबंधन खत्म करने के महज 2 महीने बाद सितंबर, 2013 में नीतीश ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (नेशनल कमिशन ऑफ माइनॉरिटीज) के एक कार्यक्रम में बोलते हुए चर्चित तौर पर कहा था, 'हमें कभी टोपी लगानी पड़ेगी तो कभी तिलक भी लगाना पड़ेगा.'
बाद में बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में नीतीश को अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी लालू यादव के साथ सरकार बनाते हुए देखा गया. लेकिन पिछले साल जुलाई में उलटफेर करते हुए वो फिर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में लौट आए. इन 4 वर्षों के दौरान नीतीश कुमार की पार्टी की 2014 के आम चुनाव में बुरी तरह हार हुई. हालांकि इसके अगले साल वो लालू के साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाने में कामयाब रहे.
'वोट की नहीं बल्कि वोट देने वालों की चिंता करते हैं'
दरअसल सोमवार को पटना में नीतीश ने कहा था कि 'उन्हें वोट की चिंता नहीं है, लेकिन वो वोट देने वालों की चिंता करते हैं. यह देश प्रेम, सहिष्णु और सद्भाव से आगे बढ़ेगा.' उन्होंने कहा कि हम गठबंधन में रहते हुए अल्पसंख्यकों से जुड़े मसलों पर कोई समझौता नहीं करेंगे. हम एलांयस में जरूर हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर काम करते हैं.
उनके इस बयान को केंद्रीय मंत्रियों गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे की बयानबाजी पर नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है.
पिछले दिनों गिरिराज सिंह ने दरभंगा में एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ नारा लगाने के लिए लोगों को उकसाया और वीडियो वायरल होने के बाद ट्वीट भी किया. वहीं अश्विनी चौबे ने भागलपुर में दो समुदायों के बीच भड़की हिंसा और तनाव को लेकर बयान दिया था.
नीतीश अररिया उपचुनाव के दौरान बिहार बीजेपी के अध्यक्ष नित्यानंद राय के दिए उस बयान से भी खफा थे जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर यहां आरजेडी जीती तो यह आईएसआई (पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस) का गढ़ बन जाएगा. समझा जाता है कि नीतीश ने इस बयान को लेकर अपनी असहमति जताई थी.
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